मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

सोनिया का आदर हयूम का अनादर


दिनेश शाक्य 
ए.ओ.हयूम और सोनिया गांधी, दोनों ऐसे विदेशी नाम हैं, जिनका कांग्रेस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ए.ओ.हयूम जंहा काग्रेस के संस्थापक है और सोनिया गांधी काग्रेस की अध्यक्ष है। लेकिन, जहां एक ओर विदेशी मूल की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांघी को कांग्रेसी स्वीकार कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के संस्थापक ए. ओ. हयूम से कांग्रेसियों को गुरेज है। 
दो-तीन पार्टियों को छोड़कर दुनिया में शायद ही किसी राजनीतिक पार्टी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जितनी लंबी जिंदगी नसीब हुई हो। देश की परिस्थितियां इतनी बदल चुकी है कि 28 दिसंबर 1885 और 28 दिसंबर 2011 के बीच एक भी साझा बात खोजना असंभव लगता है लेकिन कांग्रेस में कुछ साझा बातें सहज ही देखी जा सकती हैं। करीब 126 साल पहले इस पार्टी के केंद्र में थियोसॉफिकल सोसाइटी से जुड़े एक अनोखे यूरोपीय व्यक्तित्व ए.ओ.हयूम थे,जबकि आज इसके केंद्र में यूरोपीय मूल की एक अन्य व्यक्तित्व सोनिया गांधी हैं।
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम ! एक ऐसा नाम है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उसने गुलामी के दौर मे अपने अंदाज मे ना केवल जिंदगी को जिया बल्कि अपनी सूझबूझ से देश को काग्रेस के रूप मे एक ऐसा नाम दिया जो आज देश की तस्वीर और तदवीर बन गया है। 
4 फरवरी 1856 को इटावा के कलक्टर के रूप मे ए.ओ.हयूम की तैनाती अग्रेज सरकार की ओर से की गई। हयूम की एक अग्रेज अफसर के तौर पर कलक्टर के रूप मे पहली तैनाती है।
ए.ओ.हयूम  इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। आते ही हयूम ने अपनी कार्यक्षमता का परिचय देना शुरू कर दिया। 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से हयूम ने खुद के अंश से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर ना के बराबर रहा होगा तभी तो सिर्फ 2 ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आई। 
हयूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम हयूम से हयूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है।
हयूम ने अपने कार्यकाल के दौरान इटावा शहर मे मैट्रिक शिक्षा के उत्थान की दिशा मे काम करना शुरू किया। जिस स्कूल का निर्माण हयूम ने 17500 की रकम के जरिये कराया वो 22 जनवरी 1861 को बन कर के तैयार हुआ और हूयम ने इसको नाम दिया हयूम एजोकेशन स्कूल। इस स्कूल के निर्माण की सबसे खास बात यह रही कि हयूम के प्रथमाअक्षर एच शब्द के आकार का रूप दिया गया। आज इस स्कूल का संचालन इटावा की हिंदू एजूकेशलन सोसाइटी सनातन धर्म इंटर कालेज के रूप मे कर रही है। 
हयूम ने इटावा मे गुलामी के दौर मे अग्रेजो के लिये एक प्रार्थना स्थल चर्च का निर्माण कराया उसके पास ही इटावा क्लब की स्थापना इसलिये कराई ताकि बाहर से आने वाले मेहमानो को रूकवाया जा सके क्यो कि इससे पहले कोई दूसरा ऐसा स्थान नही था जहा पर मेहमानो को रूकवाया जा सके। सिंतबर 1944 को हुई जोरदार वारिस मे यह भवन धरासाई हो गया जिसे नंबवर 1946 मे पैतीस हजार रूपये खर्च करके पुननिर्मित कराया गया था। 
1857 के गदर के बाद इटावा मे हयूम ने एक शासक के तौर पर जो कठिनाईया आम लोगो को देखी उसको जोडते हुये 27 मार्च 1861 को भारतीयो के पक्ष मे जो रिपोर्ट  अग्रेज सरकार को भेजी उससे हूयूम के लिये अग्रेज सरकार ने नाक भौह तान ली और हयूम को तत्काल बीमारी की छुटटी नाम पर ब्रिटेन भेज दिया। एक नंबवर 1861 को हूयूम ने अपनी रिर्पोट को लेकर अग्रेज सरकार ने माफी मागी तो 14 फरवरी 1963 को पुनः इटावा के कलक्टर के रूप मे तैनात कर दी गई। 
हूयूम को अग्रेज अफसर के रूप मे माना जाता है जिसने अपने समय से पहले बहुत आगे के बारे मे ना केवल सोचा बल्कि उस पर काम भी किया। वैसे तो इटावा का वजूद हयूम के यहा आने से पहले ही हो गया था लेकिन हूयूम ने जो कुछ दिया उसके कोई दूसरी मिसाल देखने को कही भी नही मिलती एक अग्रेज अफसर होने के बावजूद भी हूयूम का यही इटावाप्रेम हूयूम के लिये मुसीबत का कारण बना।
हयूम ने गुलामी के दौर मे इटावा को जो कुछ दिया उसकी अस्क आज भी बाकायदा देखने को मिलता है हूयम को कू्रर शासक माना जाता है इसमे कोई दो राय नही है लेकिन हूयूम ने इटावा मे यह जरूर पा लिया था अगर इन लोगो पर शासन करना तो क्रूरता के बजाये नम्रता का भाव प्रदर्शित करना पडेगा और हयूम ने किया भी वही लेकिन हयूम की यही नम्रता हयूम के लिये मुसीबत बन गई। 
साल 1858 के मघ्य मे हयूम ने  राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया,जिसका उददेश्य इटावा में शांति स्थापित करना था। अपने उददेश्य के मुताबिक इस सेना को यहां पर शांति स्थापित करने में काफी हद तक सफलता मिली थी। रक्षक सेना की सफलता को देखते हुये 28 दिसंबर 1885 को मुबंई में ब्रिटिश प्रशासक ए.ओ.हयूम ने काग्रेंस की नीवं डाली जो आज देश की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी हैं। इटावा में स्थानीय रक्षक सेना के गठन की भी बडी दिलचस्प कहानी है। 1856 में ए.ओ.हयूम इटावा के कलक्टर बन कर आये। 
देश के प्रमुख राजनैतिक दल काग्रेंस की स्थापना उत्तर प्रदेश के इटावा में 1858 के मध्य में क्रांतिकारियों से निपटने के लिये गठित की गई रक्षक सेना की सफलता से प्ररित हो कर की गई थी। आजादी पूर्व इटावा के कलक्टर रहे काग्रेंस संस्थापक ए.ओ.हयूम ने इटावा में क्रांतिकारियों से निपटने में कामयाबी पाई। रक्षक सेना से प्रेरण लेकर 28 दिसंबर 1885 को बंबई में काग्रेंस की स्थापना अंग्रेज सरकार के लिये सेफ्टीवाल्व के रूप में की थी। फिर भी कांग्रेस के स्थानीय नेता विदेशी मूल की होने के बावजूद सोनिया गांधी को तो अपना सर्वोच्च नेता मानते हैं लेकिन ए ओ हयूम से कोई नाता नहीं जोड़ना चाहते। 
ए.ओ.हयूम ने वर्ष 1885 में मुंबई में अखिल भारतीय काग्रेंस की नींव डाली परन्तु इटावा में इसका प्रभाव बहुत पहले ही देखने को मिलने लगा था। एक छोटे से पंडाल में एकत्रित होकर कभी कभी प्रस्ताव पास कर लेना इसका उददेश्य था।
इटावा में अपने कलक्टर कार्यकाल के दौरान हयूम ने अपने नाम के अग्रेंजी शब्द के एच.यू.एम.ई.के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी हयूम की दूरदर्शिता की याद दिलाते है लेकिन इटावा के काग्रेंसी किसी भी तरह का हयूम का महिमामंडन करने से परहेज करते हुये नजर आते है।  भले ही इटावा के कांग्रेसी इस बात पर गर्व महसूस करते हो की हयूम को इटावा में कार्यकाल के दौरान इस तरह का इल्म हुआ की भारतीयो को एक तार में जोडने के इरादे से एक दल की जरूरत है लेकिन जब बात आती है कि उन्हे याद करने के सवाल पर तो इटावा के काग्रेसी एक दूसरे की ओर देखने लगते है। अब बदलते हुए दौर में इटावा के काग्रेंसियों का कोई गुरेज नहीं होगा कि ए.ओ.हयूम की कोई प्रतिमा या स्टेचू स्थापित किया जाये।
स्कॉटलैंड से चुने जाने वाले एक ब्रिटिश सांसद की संतान एलन ऑक्टेवियन ह्यूम 1857 के गदर के दौरान इटावा के कलेक्टर थे और वहां उनकी क्रूरता की कुछ कहानियां भी प्रचलित हैं। लेकिन बाद में उनकी पहचान एक अडियल घुमंतू पक्षी विज्ञानी और शौकिया कृषि विशेषज्ञ की बनी। 
ए.ओ.ह्यूम भारत देश के अपमान से जुडा हुआ शब्द है इस लिये देश के काग्रेंसी उनसे नफरत करते है,आजादी के दौरान देश के स्वतंत्रता सेनानियों के नरसंहार के लिये हयूम को दोषी मानते हुये काग्रेंसी उनसे परहेज करते दिख रहे है। 1857 के गदर के दौरान हयूम अग्रेज शासक के साथ कू्रर तानाशाह के रूप मे सामने आ चुके है उनके कारनामे इतिहास के पन्नो मे दर्ज है इसलिये हयूम के कारानामो का ज्रिक करना उचित नही रहेगा।
हिंदु एजूकेशन सोसायटी इस बाबत बेहद खुश है क्यो कि वो काग्रेस सस्ंथापक निर्मित स्कूल की रखवाली करके अपने आप को अभीभूत महसूस करते है।  इस सोसायटी के मौजूदा सचिव अतुल शर्मा का कहना है कि हयूम साहब ने स्कूल का निर्माण तो कराया लेकिन संचालन के लिये इस स्कूल को हिंदु एजूकेशन सोसायटी को ही बेच दिया करीब 40 हजार रूपये मे हयूम साहब ने इस स्कूल को बेचा और आज यह स्कूल सनातन धर्म इंटर कालेज के नाम से संचालित हो रहा है। 
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को पक्षियो से खासा प्रेम काफी रहा है। इटावा मे अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर हयूम ने 165 से अधिक चिडियो का संकलन करके रखा था एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी। इसके अलावा कलक्टर आवास मे ही बरगद का पेड पर 35 प्रजाति की चिडिया हमेशा बनी रहती थी। साइवेरियन क्रेन को भी हयूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड मे देखे गये सारस क्रेन से भी लोगो को रूबर कराया था। 
+ डा.राजीव चौहान,सचिव,सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर
15 अगस्त,1947 को जब देश आजाद हुआ था तब देश में विदेशी आक्रांताओ के खिलाफ जोरदारी के साथ माहौल बना हुआ था ऐसे में हयूम की कोई भी तस्वीर या फिर प्रतिमा की स्थापना देश हित में नहीं हो सकती थी इस लिये अपने संस्थापक की कोई भी प्रतिमा इटावा तो क्या देश किसी भी दूसरे हिस्से में स्थापित नहीं है लेकिन जब उनसे सोनिया के विदेशी होने के सिलसिले से जुडा हुआ सवाल किया गया तो वे सही ढंग से जबाब दे पाने की हालत में नही  दिखे अलबत्ता वे इतना जरूर कहते है कि अगर अब हयूम की कोई तस्वीर या फिर प्रमिता की स्थापना की जाती है तो उन्हें क्या शायद किसी भी काग्रेंसी को कोई गुरेज नहीं होगा। इसके अलावा वो यह कहने से कतई नही चूकते है कि हयूम का इटावा के उत्थान मे किये गये योगदान को किसी भी सूरत मे भुलाया नही जा सकता है एक विदेशी होने के बावजूद हयूम के मन कही ना कही भारत प्रेम था। 
+ सूरज सिंह यादव,वरिष्ठ काग्रेस नेता
ए.ओ.हयूम और इटावा का गहरा नाता रहा है और हमेशा रहेगा। हयूम के बारे मे हर कोई जानता है कि उन्होने इटावा मे ही काग्रेस की स्थापना का खाका खींच लिया था। आज भले ही इटावा को मुलायम सिंह यादव के जिले के रूप मे पहचाना जाता हो लेकिन हकीकत मे इटावा मुलायम का नही बल्कि हयूम का शहर है क्यो कि हयूम ही वो शख्स थे जो इटावा को वजूद मे लाये हयूम से पहले इटावा सिर्फ कागजो मे ही इटावा था धरातल पर इटावा बनाने का काम हयूम ने किया। कहा जाता है कि 1857 के गदर के बाद हयूम के मन मे यह बात घर कर गई कि प्रखर राष्ट्रवाद की जो आग सारे देश मे फैल गई है उसको बिना भारतीयो का साथ लेकर किसी भी सूरत मे कामयाबी नही पाई जा सकती है। तभी हयूम ने 1858 मे दुबारा अपनी तैनाती के दौरान स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया जिसके जरिये हयूम ने इटावा मे पनपे जनअसंतोष को शांत करने मे ना केवल कामयाबी पाई बल्कि अपने मिशन मे कामयाब भी हुआ और 1867 मे इटावा से हटने के बाद 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय यूनियन का गठन किया जो बाद मे इंडियन नेशनल काग्रेस के रूप मे तब्दील हो गई। 
+ वाचस्पति द्विवेदी,प्रवक्ता,काग्रेस ईकाई,इटावा 

मौत की पटरियो से गुजरती रेलगाडिया


दिनेश शाक्य 
देश के सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिल्ली हावडा रेलमार्ग पर इन दिनो रेल यात्रियो की जान मुश्किल मे फंसी हुई नजर आ रही है रेल यात्रियो की जान मुश्किल मे फंसने की वजह मानी जा रही इस रेलवे मार्ग पर आये दिन रेल पटरियो का टूटना। लगातार टूट रही रेल पटरियो को लेकर अब रेल यात्रियो को रेल हादसो का खतरा सताने लगा है।
इटावा मे रेल पटरियो के टूटने के वाक्ये थमने का नाम नही ले रहे है। इटावा मे बलरई से लेकर साम्हो तक रेलमार्ग सबसे अधिक खतरे वाला माना जा रहा है क्यो कि सर्दी का मौसम अभी सही से शुरू भी नही हुआ और रेल पटरिया टूटना शुरू हो गयी है साल 2010 मे डाउन लाइन की करीब 60 से अधिक बार रेल पटरिया कई स्थानो पर टूटी थी। उसके बाद रेल विभाग ने प्रभावित समझे जाने वाली रेल पटरिया को बदल दिया था लेकिन इस बार आया है अप लाइन की रेल पटरियो पर कहर । 
रेलवे की तरफ से बताया जा रहा है कि इन पटरियो की मियाद 12 साल के करीब और 800 मिलियन जीएमटी तक का भार ढोने की होती है लेकिन यह पटरिया तो उससे भी अधिक भार ढो चुकी है।
इटावा के कर्मक्षेत्र पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के फिजिक्स के रीडर डा0सतेंद्र कुमार सिंह का मानना है कि रेलवे ठेके प्रथा के तहत काम कर रहा है हो सकता है कि जो रेल पटरियो को पहले बिछाया गया रहा होगा उसकी क्वालिटी मानक के अनुरूप सही ना रही हो।
फतेहपुर मे कालका मेल हादसे के बाद कई यात्री रेल गाडियो के अलावा मालगाडिया दुर्घटनाग्रस्त हुई। इन हादसो के पीछे सबसे अहम बिंदु रेल पटरियो का या तो कमजोर होना या फिर क्षतिग्रस्त होना माना गया। खराब रेल पटरियो को लेकर रेलवे विभाग को काफी समय से चेताया जाता रहा है उसके बाद रेल विभाग ने खराब रेल पटरियो को दुरूस्त कराने के लिये रेल ग्रेडिंग मशीन को अमरीका से मंगवाया एक ऐसी ही मशीन देश से सबसे अहम माने जाने वाले रेलमार्ग पर दिल्ली हावडा पर कमजोर और क्षतिग्रस्त रेलपटरियो को दुरूस्त करवा दिया गया लेकिन अभी भी रेल पटरियो को टूटने से रोका नही जा सका है। 
वैसे तो रेल पटरियो को बहुत मजबूत माना जाता है लेकिन जब कोई रेल गाडी हादसे का शिकार होती है तो रेल पटरी ताश के पत्तो की भांति बिखर जाती है।
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर मे हुये कालका मेल हादसे के बाद भी रेल अमले की जांच मे यह बात सामने आई की रेल हादसा का कारण रेल पटरी का पहले से टूटा होना पाया गया उसके बाद इसी रेलवे रूट पर कई रेल हादसे पेश आये। 27 जुलाई को इटावा मे सराय भूपत के पास पैसेंजर रेल गाडी के पलटने को लेकर रेल पटरी ही क्षतिग्रस्त होना माना गया। पहले से ही रेल पटरियो के टूटने को लेकर मंथन मे जुटे रेल अमले ने आनन फानन मे अमरीकन रेल ग्रेडिंग मशीन को मंगवा कर कमजोर पटरियो को खोजने का काम शुरू कर दिया है।
रेलवे अफसरो के अनुसार फिलहाल अभी देश मे सिर्फ दो ही ऐसी मशीन आई है जो कमजोर रेल पटरियो को खोजने का काम कर रही है। जिनमे एक देश की सबसे अहम रेलवे रूट दिल्ली हावडा पर कमजोर पटरियो को खोज रही है। इस मशीन की खासियत यह है यह मशीन पूरी की पूरी कम्प्यूटरीकृत है जिसमे सब कुछ आन स्क्रीन ही होता है। इटावा और इटावा के आसपास रेल पटरियो को दुरूस्त करने का काम करने मे लगी हुई यह मशीन दिल्ली हावडा रेल मार्ग पर अब तक करीब 700 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी है। इस मशीन मे आगे और पीछे कई कैमरे लगे हुये है। यह मशीन लुधियाना से हावडा तक की रेलवे पटरियो को जांचने का काम कर चुकी है। 
बताते चले कि इटावा मे करीब 60 किलोमीटर के दायरे मे सर्दी के मौसम से लेकर अब तक करीब 100 से अधिक जगह पर रेल पटरियो को टूटने के मामले सामने आ चुके है जिसके बाद से लगातार रेल पटरियो को बदलने की मांग कई बार होती रही है। 

रविवार, 25 दिसंबर 2011

आखिर दांव की ओर मुलायम के कदम


दिनेश शाक्य 
दांव तो सिर्फ दांव ही होता है जिसका इस्तेमाल हर मौके पर किया जा सकता है लेकिन राजनीति मे चलता है सबसे अधिक आखिर दांव। जिसे हर नेता अपने आप को सत्ता सीन होने की गरज से बार ऐसे ही दांव चलने का सिगुफा छोडता है जिसमे कुछ कामयाब होते है कुछ नाकामयाबी का दंश झेल करके आगे पीछे होते रहते है। साल 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव की तिथि का ऐलान कर दिया गया है उत्तर प्रदेश मे 5  राज्यों  के साथ ही चुनाव कराने का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न करवाये जाएंगे। पहले चरण के लिए अधिसूचना 10 जनवरी को जारी की जाएगी पहले चरण के लिए मतदान 4 फरवरी को संपन्न होगा। इसके बाद 8 फरवरी, 11 फरवरी, 15 फरवरी, 19, फरवरी, 23 फरवरी और 28 फरवरी को विभिन्न चरणों में मतदान करवाये जाएंगे। 
यह चुनाव कई राजनैतिक दलो के लिये आखिर दांव के माफिक होता हुआ नजर आ रहा है इस आखिर दांव मे सबसे बडा दांव लगा है मुख्यविपक्षी समाजवादी पार्टी का। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिये प्रभावी ढंग से संधर्षरत है लेकिन समाजवादी पार्टी मे हुये हालिया उठापटक के बाद सपा मे कई स्तर का संकट दिख रहा है। साल 2012 के विधानसभा मे चुनाव मे समाजवादी पार्टी को अपना वजूद बरकरार रखने का खतरा मडरा रहा है यह तभी संभव है जब समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश मे सरकार बने लेकिन आज के हालात इस बात की पुष्टि नही करती कि सपा की एक बार फिर से उत्तर प्रदेश मे सरकार बनने जा रही है। भले ही तमाम एक्जिट पोल समाजवादी पार्टी के पक्ष मे आकंडे सबसे बडे दल के रूप मे काबिज होने के दे रहे हो लेकिन ऐसी गिनती का कोई आकांडा सामने नही आ पा रहा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे सपा की सरकार उत्तर प्रदेश मे बनने का संकेत दे रहे हो। 
खेत खलिहान और किसानो के हिमायती समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के जीवन का करीब करीब यह ऐसा आखिर चुनाव माना जा सकता है जिसमे सपा कुछ कमाल करने का सपना संजो करके रखे हुये है। ऐसे मे क्या मुलायम सिंह यादव का यह सपना हकीकत मे अमली जामा पहन पायेगा या फिर सिर्फ सपना ही बन करके रह जायेगा। मुलायम सिंह यादव के सामने कई किस्म का संकट बताया जा रहा है एक बात सपा मे अभी तक सीटो का सही ढंग से बटबारा नही हो सका है रोज रोज किसी ना किसी प्रत्याशी को बदला जा रहा है इससे साफ हो रहा है कि सपा की टिकट वितरण प्रणाली मे कही ना कही लोच साफ समझ मे आ रही है तभी तो ऐसा माहौल देखा जा रहा है। 
समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का गांव इटावा से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है सैफई गांव। जहा के लोग मुलायम सिंह यादव से इस बाबत उम्मीद लगाये बैठे हुये है कि सपा की आने वाले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनेगी और गांव देहात और किसानो का भला होगा। मुलायम सिंह यादव से उम्र मे एक दो साल बडे सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह का कहना है कि मुलायम सिंह यादव किसान के बेटे है इस लिये वे किसानो की तकलीफो को भली भाति समझते है किसान इस समय बेहद परेशान है मायावती के राज मे किसानो की कोई मदद किसी भी स्तर पर नही हो रही हे चाहे उसे खाद की जरूरत हो या फिर बीज की। किसी भी चीज की भरपाई नही हो पा रही है ऐसे मे सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही उत्तर प्रदेश की बिगडी हुई किस्मत का सितारा बुलंद कर सकते है। मुलायम सिंह यादव के सहपाठी रहे दर्शन सिंह करीब 35 साल से सैफई से मुलायम सिंह यादव के प्रेम के चलते प्रधान बनते चले आ रहे है। मुलायम सिंह यादव की वजह से दर्शन सिंह के खिलाफ कोई भी आदमी चुनाव मैदान मे उतरने की हिम्मत नही कर पाता ऐसे मे दर्शन को प्रधान तो बनना ही होगा। किसी भी के लिये इतना सब कुछ करने वाले के लिये दुआ तो निकलेगी ही इसी लिये दर्शन सिंह भी मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का ताज पहनाने के लिये दुआ करने मे लगे है। 
2007 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता से मुलायम सिंह यादव बेदखल हो गये थे और मायावती की ताजपोशी होते ही मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई मे जारी विकास कार्य को विराम लग गया। यहा पर कई करोड की लागत से बन रहा है मल्टी परपच स्टेडियम,सैफई हवाई अडडे,इटावा मैनपुरी रेल परियोजना और किसानो को रोजगार देने की नीयत से बनाया जा रहा दुग्ध विकास केंद्र का निर्माण अधर मे लटक गया है। इसी इलाके के कुइया गांव के प्रधान चंदगीराम का मानना है कि मुलायम सिंह यादव की जब तब ताज पोशी नही होती तब यह विकास योजनाये ठप ही पडी रहेगी और मुलायम की वापसी के बिना इनका कोई भी तारणहार नही हो सकता है। इसलिये अब की बार मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री बने। यह तो रही मुलायम सिंह यादव के गांव के लोगो की ऐसा ही उनके जिले इटावा के लोगो का भी सोचना है। 
2012 के चुनाव मे जहा मे सत्तारूढ बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत का एहसास करने के लिये एक बार फिर से वापसी का सपना सजोये बैठी हुई है वही समाजवादी पार्टी बसपा को पद से हटाने के लिये संधर्षरत नजर आ रही है इसके लिये उनको पूरे उत्तर प्रदेश के दौरे पर अपने पिता के उस क्रांतिरथ को लेकर निकले हुये है जिससे 1989 मे मुलामय सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने मे कामयाबी पाई थी उसी तर्ज पर अखिलेश यादव को क्रांतिरथ सौपा गया है। जो अब तक करीब करीब पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा सत्ता हासिल करने के लिये कर चुके है उनके मुकाबले काग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी उनके ही आगे पीछे यात्राये करने मे लगे हुये है। दोनो युवाओ के बीच इस बात की भी र्स्पधा बनी हुई है कि अपने अपने दल का जनाधार बढा करके अपने अपने दल को मजूबती प्रदान करना।
मुलायम सिंह यादव के प्रभाव वाले मध्य उत्तर प्रदेश मे सपा कई किस्म के संकटो के दौर से गुजर रही है जहा मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी मे उनकी समधिन उर्मिला यादव ने बगाबत कर दी है वो काग्रेस मे आकर इसी क्षेत्र के करहल विधानसभा से सपा को ही चुनौती देने के लिये अखाडे मे कूद चुकी है उर्मिला यादव धिरोर विधानसभा से 1992 और 1997 मे सपा से एमएलए रह चुकी है। इसके अलावा एटा संसदीय इलाके के पूर्व सपा सांसद देवेंद्र यादव भी ताल ठोक करके बसपा मे जाने के बाद एक बार फिर से नये दल काग्रेंस मे चले गये है। 24 दिसबंर को देवेंद्र के कद को नापने के लिये काग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कासगंज मे काग्रेस की रैली करा के देवेंद्र की ताकत को नाप गये सबसे हैरत की बात है कि रैली से पहले ही देवेंद्र की विवाहित बेटी बासु यादव को पटियाली विधानसभा का टिकट भी दे डाला गया है। 
2009 के संसदीय चुनाव मे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के मेहबरबानी के चलते राममंदिर आंदोलन के कभी नायक रहे कल्याण सिंह एटा सांसद बन चुके है। इस सीट से कल्याण को जितवाने के लिये मुलायम सिंह यादव ने अपने दल के प्रत्याशी को चुनाव मैदान मे नही उतारा था। मुलायम सिंह यादव के सहयोग से सांसद बनने के बाद दोनो के बीच अमर सिंह के बयानो के बाद बेहद कटुता आ हो गई है। कल्याण के विकल्प के रूप मे मुलायम अपने पुराने साथी मुस्लिम नेता आजम खा को वापस ले आये है जिन पर सपा के मजबूत वोट बैंक को एक जुट करने का दारोमदार है। 
बात कर लेते है फिरोजाबाद संसदीय सीट से पार्टी के कद्दावर लोगों को जनता की अदालत में खड़ा करने की बजाय जिस प्रकार से उन्होंने अपनी कुल वधु पर दांव खेला जिसमे घर की बहू डिंपल यादव की हार के बाद तो वास्तविकता में मुलायम अपना आत्मसम्मान ही खो बैठे और इसकी बजह साफ है कि मुलायम के परिवार की यह पहली घटना है कि वर्चस्व बनाने के बाद मुलायम परिवार का कोई सदस्य पहली मर्तवा जनता की अदालत में अपने ही परिवार के उस सदस्य के सामने बौना साबित हुआ, जिसने राजनीति के गुर उन्हीं सपा मुखिया से सीखे थे।  अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की हार ने आज मुलायम को तोड़ दिया हैं हालांकि अब वह इससे निजात पाने की मुहिम छेड़ना चाहते हैं परंतु शायद अब उनके तरकस में वह तीर नहीं रह गए जिनकी बिना पर वे अपने रूठों को मना सके और पार्टी की मुख्य धारा से जोड़ सकें। 
मुलायम सिंह यादव एक बार नहीं तीन-तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इतना ही नहीं मुलायम केंद्र में एच.डी. देवेगौडा और इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्व काल में देश के रक्षा मंत्री भी रहे। मुलायम जिस राजनीति को साधते हुये कांग्रेस के दरवाजे पर पहुँचे हैं, असल में वह राजनीति देश में उस वक्त की पहचान है, ऐसे में मुलायम की लोहिया से सोनिया के दरवाजे तक की यात्रा के मर्म को समझना होगा। यहां पर इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि काग्रेंस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मुददे को जितना देश के दूसरे नेताओ ने नहीं उछाला हेगा उससे कहीं अधिक मुलायम सिंह यादव ने उछाल कर एक खाई पैदा कर ली थी एक समय तो ऐसा लगता था कि जैसे मुलायम सिंह यादव से बडा कोई दूसरा राजनैतिक दुश्मन सोनिया गांधी नहीं होगा लेकिन मुलायम सिंह यादव के इस गुस्से का शायद बदला सोनिया गांघी ने परमाणु मुददे पर कांग्रेस के लिये सपा से समर्थन लेकर मुलायम सिंह यादव को ठेंगा दिया। 
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी का उदय कांग्रेस के विरोध की राजनीति के साथ शुरू हुआ था परंतु जिस प्रकार से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस की जड़ों को खोखला कर दिया था कमोवेश उसी तरीके से जुलाई 2009 में परमाणु करार के मुद्दे पर केन्द्र सरकार बचा कर एक बार फिर से राजनैतिक एंव ऐतिहासिक भूल कर डाली ,इस भूल ने मुलायम को वामपंथियों से दूर कर दिया,यह भूलें यहीं पर थम जाती तब भी ठीक था। मुलायम सिंह यादव काग्रेंस को अपना खास समझने लगे कि 2009 के संसदीय चुनाव में फिर चुनावी खाका बना डाला,मुलायम को अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब आखिरी दौर में काग्रेंस के युवराज राहुल गांधी ने गठबंधन की राजनीत बंद करने की घोषणा कर दी।
1997 मे मायावती ने राजनैतिक तौर पर मुलायम सिंह यादव को कमजोर करने की गरज से इटावा को बांट करके औरैया को जिले का दर्जा दिया था उसके बाद इस जिले मे भी सपा की हालत अच्छी नही मानी जा रही है मुलायम के सबसे खास रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धनीराम वर्मा अपने बेटे को नेता बनाने के चक्कर मे मुलायम सिंह से दूर जा चुके है। महेश वर्मा धनीराम वर्मा के बेटे है जो बसपा के चुनाव पर मुलायम के बेटे अखिलेश यादव से कन्नौज लोकसभा के चुनाव 2009 मे हारने के बाद औरैया जिले की बिधूना सीट पर हुये उपचुनाव मे महेश वर्मा बसपा से जीत पाकर एमएलए बन गये। इससे पहले महेश के पिता और मुलायम सिंह यादव के सबसे खास धनीराम वर्मा एमएलए थे।
मैनपुरी लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद है इस सीट पर किशनी विधानसभा से सपा की एमएमए संध्या  कठेरिया भी बागी हो कर बसपा मे जा चुकी है। मैनपुरी जिले की धिरोर विधानसभा को नये परिसीमन मे खत्म करके उसका आधा हिस्सा करहल और आधा फिरोजाबाद जिले की नवसृजित सीट सिरसागंज मे जोड दिया गया है। इस सीट से कभी एमएलए और मुलायम सरकार मे राजस्व मंत्री रहे बाबूराम यादव के बेटे अनिल यादव को भाजपा ने करहल से प्रत्याशी बना करके सपा के लिये मुश्किल खडी कर दी है। 
मुलायम सिंह यादव के गृहनगर इटावा मे भी सपा के दिन बेहतर नही कहे जा सकते है क्यो कि मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर से बसपा ने एक बागी सपाई मनीष यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। मनीष यादव परंपरागत सपाई है साल 2003 मे इनके भाई समाजवादी पार्टी की छात्र ईकाई के अध्यक्ष दलवीर सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी इस हत्या के बाद से मनीष यादव के खिलाफ कई अपराधिक मामले सपा सरकार मे दर्ज कराये गये परिणामस्वरूप मनीष ने बदले स्वरूप शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ चुनाव मैदान मे उतरने की मन बनाया तो मायावती ने उसे पूरा भी कर दिया। मनीष यादव कहते है कि मुलायम सिंह यादव का तिलस्म अब टूट रहा है पिछले साल हुये पंचायत चुनाव मे इसी इलाके से शिवपाल सिंह यादव का बेटा आदित्य यादव जिला पंचायत पद के लिये खडा हुआ था लेकिन मुलायम के तिलस्म के बाबजूद भी वो हार गया। इस लिये यह कहा जा सकता है कि मुलायम चूक गये है। 
इटावा सदर सीट से मुलायम सिंह यादव के सबसे खास और 2002 मे पहली बार जीते महेंद्र सिंह राजपूत 2007 के चुनाव मे सपा से जीते लेकिन उनका मन सपा नेताओ से उचट गया तो बसपा मे चले गये इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमे बसपा ने महेंद्र को उम्मीदवार बनाया और महेंद्र लगातार तीसरी बार जीत करके हैट्रिक कायम की। यह तो यह है मुलायम सिंह यादव के घर का हाल तो पूरे उत्तर प्रदेश का हाल खुद आंका जा सकता है। 
मुलायम ने अपने घर की सीट इटावा सदर से सपा को काबिज कराने के लिये अपने दल से दो बार के सांसद रहे रधुराज सिंह शाक्य पर दांव खेला है जो बसपा के महेंद्र सिंह राजपूत से मुकाबला करेगे। 
इस सबके बाबजूद सपा के छोटे बडे नेताओ को पूरा भरोसा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत ही नही मिलेगा बल्कि सपा सरकार बना करके एक नया आयाम कायम करेगी और माया के लूट राज से लोगो को राहत देगी। ऐसे मे यही कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव का आखिर दांव जरूर कामयाब होगा क्यो कि राजनैतिक विशेषज्ञ यह मानते है कि मायाराज मे जो कुछ भी काला सफेद हुआ लोगो ने देखा है उससे निजात दिलाने मे सपा ही कामयाब हो सकती है इसलिये जिस समय जनमत का दिन आयेगा उस दिन आम मतदाता मायाराज के कारनामो को ही मददेनजर रख करके मतदान करेगा।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

सब्जियो का राजा आलू बना राजनेताओ का मुददा



दिनेश शाक्य
सब्जियो के राजा आलू की बरबादी को लेकर देश भर का किसान जंहा एक ओर फूट फूट करके आंसू बहा कर दुखी है वही दूसरी ओर देश के राजनेता किसानो के दर्द मे उनके साथ खडे होने के बजाय आलू को राजनीति का मुख्यमुददा बनाये हुये है। 
काग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भले ही खेतो मे फेंके जा चुके आलू की भारी खेप देखने के बाद  आलू की बरबादी पर चिंता जता करके किसानो की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की लेकिन किसानो का दर्द किसी भी मायने मे कम नही हुआ है। वही दूसरी ओर राज्य की मुखिया मायावती आलू किसानो की बरबादी पर अपनी कडी प्रतिक्रिया देते हुये केंद्र की यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराती है इस सबसे इतर समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव माया सरकार को आलू की बरबादी के लिये जिम्मेदार ठहराते है। ऐसे मे सिर्फ यही कहा जा सकता है कि किसानो की आलू बरबादी राजनेताओ को अपनी राजनीति चमकाने का मौका दे रही है। 
आलू उत्पादन में अग्रणी माना जाने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद में आलू किसानों की कमर तोड़ दी है। आलू उत्पादकों के साथ ही कोल्ड स्टोरेज संचालकों का भी दिवाला निकलता हुआ नजर आ रहा है। हजारों कुंटल आलू को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर बाहर फेंका जा रहा है। यह स्थिति स्वास्थय के नजरिए से भी समाज के लिए काफी घातक साबित होगी। दुर्भाग्य यह है कि अभी तक इन बदहाल आलू किसानों के बारे में न तो राज्य सरकार ने ही कोई विचार किया है और न ही केंद्र सरकार के पास ही इन गरीब किसानों के बारे में कोई योजना है।
इटावा जनपद में आलू किसानों की बदहाली की बजह ही आलू बन गया है। नए आलू की आवक ने शीतगृह में रखे पुराने आलू को सीधी चुनौती दी। परिणामस्वरूप बाजार में बिक रहे नए आलू की कीमत तीन रुपए प्रति किग्रा होने के कारण किसानों ने अपने पुराने आलू के बारे में सोचना ही छोड़ दिया। इसकी बजह है कि आगरा, कानपुर व लखनऊ जैसे महानगरों में भी पुराना आलू बीस रुपए प्रति पैकेट की दर से बिक रहा है। जबकि यदि किसान शीतगृह से अपना आलू निकालता है तो उसे एक सौ 25 रुपए प्रति पैकेट शीतगृह संचालकों को किराए के रूप में देना होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट, वारदाना तथा मजदूरी अलग से। ऐसे में आलू किसानों ने अपना आलू शीतगृहों से नहीं निकालना ही मुनासिब समझा।
इस वर्ष किसान आलू उत्पादन करने के साथ से ही पछता रहे हैं। गत वर्ष आलू उत्पादन अच्छी तरह होने के कारण पहले जहां शीतगृह में आलू रखना इन किसानों के लिए एक चुनौती थी तो अब आलू निकालना उनके लिए आसान नहीं है। 
अब स्थिति ऐसी हो गई है कि आलू किसान अपने आलू को शीतगृहों से उठाने की स्थिति में नहीं है। इसकी बजह है कि बाजारों में आलू की कीमतों में रिकार्ड गिरावट माना जा रहा है। ऐसी स्थिति में शीतगृह संचालकों के पास भी शीतगृह खाली कराने के लिए अथवा आलू को सड़ने से बचाने के लिए पहले ही आलू फंेकना मजबूरी बन गया है। वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि शीतगृहों के बाहर आलू के ढेरों के गुबार आसानी से देखे जा सकते हैं। ऐसे में गरीब तबके के लोग कई-कई किमी दूर से आलू बीनने के लिए आ रहे हैं और आलू ले जा रहे हैं परंतु आलू किसान अपने इस आलू को देख-देखकर रोने को बाध्य हैं।
कई शीतगृहो के संचालक राहुल गुप्ता कहना है  कि इस बार नए आलू की आवक जल्दी हो गई और उस पर भी आर्थिक मंदी का दंश। ऐसे में बेचारे आलू किसान अपना आलू जेब से खर्च कर कैसे निकालें। वह कहते हैं कि आलू की कीमतों में आई गिरावट के कारण शीतगृह संचालकों को भी भारी क्षति का सामना करना पड़ रहा है। वह बताते हैं कि इस वर्ष एक-एक शीतगृह संचालक को कम से कम एक करोड़ रूपए की क्षति का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार से आलू उत्पादन में जहां किसान बर्बाद हुआ है वहीं शीतगृह संचालकों का भी दिवाला निकला है।
समाजवादी पार्टी के एमएलए और उत्तर प्रदेश मे नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर के सियाराम शीतगृह संचालक पंकज यादव बताते हैं कि यदि राज्य व केंद्र सरकार चाहे तो किसानों की दुखती रगों पर मुआवजे का मरहम लगा सकतीं हैं। हालांकि इसमें काफी देर हो गई है लेकिन अभी भी किसानों को राहत दी जा सकती है। वह बताते हैं कि पहले एक बार इसी प्रकार की स्थिति बनने पर राज्य सरकार ने शीतगृहों पर कैंप लगवा कर सौ रूपए प्रति कुंटल के हिसाब से आर्थिक सहायता दी थी।
आलू उत्पादन में किसानों एवं शीतगृह संचालकों को हुई आर्थिक क्षति के बाद अब लोगों के स्वास्थय पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। शीतगृहों से निकाले गए आलू में सड़े आलू की मात्रा भी काफी है। ऐसे में आलू बीन रहे समीपवर्ती क्षेत्रों के लोग आलू बीन रहे हैं और इस प्रकार से वह अपने स्वास्थय के साथ खिलबाड़ कर रहे हैं। 
डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त जिला अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सक डा.जी.पी.चौधरी कहते हैं कि शीतगृहों से आलू बाहर फेंकने के कारण एक तो वातावरण प्रदूशित हो रहा है और वातावरण दुर्गंधयुक्त होगा। आलू सड़ने के बाद उसमें उत्पन्न होने वाले वैक्टीरिया पानी के माध्यम से आसपास के लोगों के शरीर में प्रवेश करेंगें तो डायरिया, कोलरा व फूड पॉयजनिंग जैसे रोग उत्पन्न होंगें। इससे बचने के लिए डा. जी.पी.चौधरी बताते हैं कि जिला प्रशासन एवं स्थानीय लोग शीतगृहों के आसपास उस क्षेत्र की सफाई कराएं जहां आलू फेंका गया है और आलू को बस्ती से दूर जाकर कहीं फिंकवाएं अन्यथा माहमारी की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
ऐसे मे जब नीयत और नीति खोटी हो तो कोई भी योजना फलीभूत नहीं होती। ये बात शायद हुक्मरान समझते हुए भी समझना नहीं चाहते। इसीलिए वर्ष 2010 में आलू की सरकारी खरीद कराने की योजना का आगाज होने से पहले ही अंत हो गया। नतीजतन आलू किसान एक बार फिर हाय-हाय मचाते हुए खून के आंसू रोने को मजबूर हैं।
गन्ना, गेहूं और धान की तर्ज पर आलू की फसल की सुधि बीते वर्ष ली गई, लेकिन देर से जोर-शोर तैयारी के साथ अप्रैल महीने में शासन ने आलू की सरकारी खरीद का शासनादेश जारी किया था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। ज्यादातर आलू कोल्ड में भंडारित हो जाने के कारण इटावा जनपद में एक किलो आलू भी नहीं खरीदा जा सका। उद्यान विभाग के सूत्रों की मानें तो अपनी कमियों पर नजर दौड़ाने के बजाय सरकारी तंत्र ने खामियां गिनाकर योजना को ही फ्लाप करार दे दिया। जिले स्तर से भी सही जमीनी जानकारियां ऊपर तक नहीं पहुंचाई गईं, जिससे किसानों की किस्मत संवरने का सपना आज तक अधूरा है।
वर्ष 2011 में तो आलू खरीद के मुद्दे का किसी को ख्याल ही नहीं आया। नतीजन परवान चढ़ने से पहले ही आलू किसानों के भले के लिए शुरू यह नेक कोशिश धड़ाम हो गई। आलू की सरकारी खरीद की योजना कहां गई ? इस सवाल का जवाब अब कोई नहीं दे रहा है। किसानों की मानें तो सरकार आलू खरीद कराने लगे तो बिचौलियों पर ब्रेक लगेगा। जब कमाई का नंबर आता है तो मुनाफा व्यापारी कमाते हैं, लेकिन मंदी की मार से बरबाद सदैव किसान होते हैं। 


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

दिन और रात मे चीरा जा रहा है यमुना का सीना





दिनेश शाक्य 
अवैध खनन पर रोक लगाने के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के आदेशो को बलाये ताक मे रख कर इटावा मे यमुना नदी मे बडे पैमाने पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरो की मिली भगत से अवैध बालू खनन किया जा रहा है।
दिन के उजाले मे तो बालू का खनन किया जा रहा है रात के अंधेरे मे भी बडे पैमाने पर बालू खनन को किया जा रहा है । एक नही करीब 300 से अधिक टैक्टरो के जरिये बालू खनन करके यमुना नदी के स्वरूप बिगाडा जा रहा है। यमुना नदी में अवैध खनन बेरोकटोक जारी है।     सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली चोरी का रेत विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं। इस गोरखधंधे को विभागीय व पुलिसिया संरक्षण भी खुले आम मिला हुआ है। तभी तो पुलिस और प्रशासनिक अफसरो इस बालू खनन पर चुप्पी साधे हुये है और यमुना नदी का सीना चीरने मे बालू माफिया युद्वस्तर पर लगे है। जिस जगह से यमुना नदी से बालू खनन किया जा रहा है उससे चंद कदम की दूरी पर यमुना तलहटी मे पुलिस चौकी बनी हुई है जहा पर करीब एक दर्जन से अधिक पुलिस वाले हमेशा तैनात रहते है जिनका काम इस इलाके मे होने वाले अवैध काम पर अकुंश लगाने का होता है लेकिन इस चौकी के पुलिस कर्मी इस अवैध खनन को मनमाफिक वसूली के जरिये को संरक्षण देकर यमुना का बरवाद करवाने मे जुटे हुये है। 
सबसे हैरत की बात तो यह है कि इलाकाई पुलिस केवल उन्हीं ट्रैक्टर चालको के खिलाफ कार्रवाई करती है जो समय पर सुविधा शुल्क नहीं पहुंचाते। इसी कारण यमुना नदी की सीमावर्ती थानो को मलाईदार थाने मे गिना जाता है। गौरतलब है कि यह गोरखधंधा हाईकोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाकर चल रहा है।
यमुना नदी में प्रतिबंध के बावजूद अवैध खनन बदस्तूर जारी है। यमुना में और यमुना के साथ लगते इलाकों में दिन ढलते ही बालू भरना शुरू हो जाता है। कोर्ट की रोक के बावजूद यमुना के साथ लगते इलाको में खनन का कार्य जोरो पर है। इन क्षेत्रों में खनन सरेआम देखा जा सकता है। जेसीबी मशीनों द्वारा टैक्टर ट्रालियो मे रेत भरी जा रही है। रात भर यहां पर अवैध खनन करने वालों का राज हो जाता है। जो कि पूरी रात यमुना में से बालू निकालते हैं और रात को ही इसे दूर दराज के इलाको मे भेज देते हैं। खनन होने के बाद माल लेकर अंधेरे-अंधेरे ही हजारों की तादाद में गाडिय़ां रवाना हो जाती है। 
प्रशासन के लाख दावों के बावजूद यमुना नदी पार अवैध खनन रू कने का नाम नहीं ले रहा है। यमुना पार दिनरात यूपी के लोग घूमनपुरा घाट पर अवैध खनन करके सैकड़ों ट्रालिया रेत उठा रहे है। लेकिन, जिला प्रशासन व खनन विभाग के अधिकारी केवल जिले की सड़को पर दौड़ने वाले भारी वाहनों को ही खनन करने पर पक ड़ने का काम करने में लगे हुए है। यमुना नदी के दूसरे छोर पर खनन माफिया बिना किसी भय के अपनी कार्यवाही को अंजाम देने में लगा हुआ है। 
गाव घूमनपुरा के कई लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले काफी समय से रेत माफिया घूमनपुरा घाट पर रात के समय जेसीबी मशीनो से खनन करने का काम कर रहा है। खनन माफिया के लोग रात के समय वाहनों में रेत लोड करके उनके गाव से गुजरते है। प्रशासन के अधिकारी रात के समय घूमनपुरा घाट पर नहीं आते। काफी समय से रेत माफिया इस घाट पर खनन का कार्य कर रहा है। दिन के समय भी रेत माफिया खनन की कार्यवाही को अंजाम देता है। रोजाना इस घाट से रेत माफिया सौ से अधिक  ट्रैक्टर  ट्रालिया रेत लोड करके ले जाते है। माफिया रेत का खनन करते समय हथियारों से लैस होते है
कई  ट्रैक्टरो को बालू का खनन करते हुये कैद करने मे कामयाबी पाई मौके पर किये जा रहे है बालू खनन के बारे मे पता चला है कि करीब 1 साल से यमुना नदी बालू खनन किया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इलाकाई पुलिस की मिलीभगत के चलते यह सब खुलेआम किया जा रहा है इसी वजह से आज तक कोई भी अवैध बालू खनन का धंधा  रोका नही जा सका है। 
इन बालू खनन माफियाओ की हिम्मत तो देखिये कि इनसे कोई भी कुछ नही कह सकता है क्यो कि पुलिस और प्रशासनिक अफसरो का संरक्षण मिला हुआ है। इसी वजह से इन बालू माफियाओ का कुछ नही बिगड रहा है उधर अपर जिला अधिकारी बताते है कि मध्यप्रदेश से बालू इटावा लाई जाती है और इसी का फायदा उठा करके बालू माफिया यमुना नदी से बालू खनन कर लेते है। 
इटावा जिले के शासन और प्रशासनिक विभाग की जानकारी में यमुना से बालू का हो रहा अवैध खनन, कई वर्षो से नहीं उठा खनन का ठेका, रात-दिन हो रही यमुना से वालू की निकासी, प्रतिदिन लाखों रूपये का हो रहा विभाग को राजस्व का नुकसान।
शासन-प्रशासन द्वारा किसी भी क्षेत्र में नियम कानून पर प्रतिबन्ध तो आये दिन लगाये जाते हैं लेकिन अब शासन के कुछ नुमाइंदे की शह पर कानून को ताक पर रखकर अवैध काम को अन्जाम दिया जाता है क्योंकि पैसे के लिये कुछ भी किया जा सकता है कई वर्षों से यमुना नदी में वालू की निकासी का ठेका नहीं उठा है उसके बावजूद चोरी छुपे पुलिस की मदद से इस अवैध खनन का कार्य लगातार जारी है यमुना तलहटी के ग्राम धूमनपुरा से जाने वाली सड़क आने व जाने वाले वालू के  ट्रैक्टरो  से लदी हुई देखी जा सकती है। 
इसी गांव के कुछ स्थानीय लोग जो यमुना के किनारे अपनी खेतीवाड़ी से परिवार का भरण पोषण करते है उनका कहना है कि इस गांव में करीब दस   ट्रैक्टर  है जिनकी पुलिस से अच्छी खासी जान पहचान है उनकी ही मदद से रात दिन इस यमुना से वालू की निकासी का काम लगातार जारी है इसी गांव के राजवीर का कहना है कि कई बार हमने उन्हें मना किया, मगर निकासी करने वालों का कहना है कि हम लोगों के पास वालू निकासी का आर्डर है । 
उसका कहना है कि प्रतिदिन इस खनन से 100 से 300  ट्रैक्टर  प्रतिदिन वालू की निकासी की जा रही है। प्रति  ट्रैक्टर  300 रूपये पुलिस लेती है। इस खनन से प्रतिदिन विभाग को लाखों रू. का राजस्व को नुकसान हो रहा है। एक ट्रैक्टर  करीब 2500 से 3500 तक का बिक जाता है। 
अवैध बालू खनन के मामले को लेकर इटावा के अपर जिलाधिकारी महेंद्र सिंह  का कहना है कि इटावा मे यमुना नदी से काई बालू खनन का ठेका नही है इसके बावजूद पडोसी राज्य मध्यप्रदेश से जो बालू कारोबारी बालू लेकर आते है वही अवैध तरीके से यमुना नदी से बालू की निकासी कर लेते है ऐसे कई बालू माफियाओ के वाहनो को बालू समेत जब्त किया गया है और उनसे खासी जुर्माने की रकम भी वसूली की गई है।
जब अपर जिलाधिकारी का ध्यान इस ओर खीचा गया कि बालू माफियाओ की स्थानीय पुलिस से मिली भगत है तो उनका जबाब गोलमोल ही था। अवैध बालू खनन का मामला जब जिलाधिकारी पी.गुरूप्रसाद के सामने रखा गया तो उन्होने सिर्फ इतना कह कर के पल्ला झाड लिया कि पूरे मामले की जांच गंभीरता से कराई जा रही है और जांच रिर्पोट के आते ही बालू माफियाओ के खिलाफ कार्यवाही तय की जायेगी लेकिन अवैध बालू खनन के बारे मे उनका चुप्पी साधना यह बताता है कि मामला कुछ ना कुछ तो है ही। 
इटावा के एसएसपी राजेश मोदक भी बालू खनन के मामले पर चुप्पी साधने मे ही अपनी भलाई समझते है क्यो कि उनकी पुलिस पर खुलेआम इलाकाई पुलिस ने ना केवल आरोप लगाया बल्कि दावे के साथ बताया कि पुलिस बालू खनन करने वाले माफियाओ से मिली हुई है तभी तो उनको यमुना नदी मे हो रहे बालू खनन नजर नही आ रहा है फिर उनसे बालू खनन पर पुलिस के खिलाफ कार्यवाही करने से जुडे हुये सवाल पूछने का कोई मतलब ही नही रह जाता है। असल मे पुलिस भी पूरी तरह से प्रशासनिक रिर्पोट का इंतजार कर रही है जिसमे कहा गया है कि जिलाधिकारी स्तर पर जांच कराई जा रही है। 
अवैध बालू खनन को लेकर पर्यावरीणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर ने भी खासी नाराजगी जताई है समिति के सचिव डा.राजीव चौहानने कहा कि यमुना नदी मे खनन से जलीय जीव जंतुओ मे जैसे कछुओ का बहुत अधिक नुकसान होता है जब नदी मे पानी कम हो जाता है तो बीच मे आइलैंड बन जाने से कछुये अपने अंडे उन आइलैंड बने बालू मे अंडो को छुपा देते है और खनन से अंडे को नुकसान होता है जिससे उनकी जनसंख्या कम होनी शुरू हो जाती है। 
बालू खनन के मामले पर जिस तरह की नजरंदाजी प्रशासनिक अमले की और से की जा रही है उसे देख करके यही कहा जा सकता है की बालू खनन मे कही ना कही प्रशासनिक मिली भगत की बू साफ नजर आ रही है  

शनिवार, 17 सितंबर 2011

डकैतो के भेष मे पुलिस ने की मुठभेड

                                               दिनेश शाक्य
अगर यह न्यूज आपके सामने आये कि पुलिस लाइन मे घुस करके चंबल के डाकुओ ने धावा बोल करके हमला कर दिया है तो कोई आसानी से यकीन नही करेगा लेकिन तस्वीरो को देखने के बाद हर कोई यही कहेगा कि हां डाकुओ ने पुलिस लाइन मे हकीकत मे हमला कर दिया है।
जी हां, बिल्कुल सही है डाकुओ ने इटावा की पुलिस लाइन मे हमला कर दिया करीब 2 धंटे से अधिक देर तक चली जोरदार मुठभेड मे 22 से अधिक डाकू मारे गये ऐसे मे मुठभेड मे हिस्सा लेने वाले कई पुलिस कर्मी घायल हो गये ।
इतनी जोरदार मुठभेड के बाद भी सभी डाकू मरने के बाद एक बार फिर से जीवित हो गये और घायल पुलिस जन सही हो गये यह चमत्कार इस लिये हुआ क्यो कि यह ना तो असली डाकू थे और ना ही इस मुठभेड मे चलने वाली गोलिया असली थी लेकिन मुठभेड के नाम पर जो कुछ भी किया गया वो सब कुछ था असली।
चंबल के खूखांर डाकुओ से मुठभेड की यह तस्वीरे आपको नजर आ रही है इटावा पुलिस लाइन की। इटावा पुलिस लाइन मे एसएसपी इटावा डा.अशोक कुमार राधव के निर्देशन मे 415 पुलिस कर्मी का प्रशिक्षण चल रहा है। प्रशिक्षण के दौरान चंबल के डाकुओ के आंतक को लेकर भी एक डोमोस्टेशन रखा गया। एसएसपी की देररेख मे हुये इस डोमोस्टेशन मे कई कमिया रही जिसको लेकर खुद एसएसपी ने सभी प्रशिक्षण पा रहे पुलिसकर्मियो को मशविरा दिया।
बताते चले कि चंबल घाटी के डाकुओ ने उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्य की पुलिस की नाक मे भले ही दम कर रखा हो गया है लेकिन पुलिस अफसरो ने चंबल के इन्ही डाकुओ के आंतक से कुछ तो सबक लिया ही है तभी तो नये रंगरूटो को डाकुओ से निपटने के लिये उनके ही गुरू सिखाये जा रहे है। चंबल की बीहड हमेशा से फिल्मकारो के लिये आर्कषण के केंद्र बने रहे इसी वजह से नये पुराने कई मजे हुये फिल्मकार चंबल की वादियो पर फिल्म बना कर अपना मिशन पूरा करते है। अब जिस तरह से नये पुलिसकर्मियो ने भी चंबल के डाकुओ से जुडे हुये आंतक का प्रशिक्षण दिला कर एक बात साबित कर दी गई है कि डाकुओ के आंतक के बीच नये पुलिसकर्मी इस प्रशिक्षण को लेकर डाकुओ से क्या सबक लेगे या फिर कहेगे कि नये पुलिसकर्मियो को इस प्रशिक्षण का क्या फायदा मिलेगा ?
आज चंबल के बीहडो मे इस तरह का आंतक नही देखा जा रहा है जैसा कभी एक समय मे देखा जाता रहा है उस समय कभी भी इस तरह का प्रशिक्षण चंबल मे पुलिस की ओर से नही देखा गया है इस तरह का ताजा प्रशिक्षण देखकरके अब लगने यह लगा है कि कही चंबल मे डाकुओ का आंतक एक बार फिर से हावी होने वाला तो नही है इसी वजह से डाकुओ के खात्मे का प्रशिक्षण पुलिस की ओर से किया जाने लगा है।
इस प्रशिक्षण मे जिन पुलिसकर्मियो ने हिस्सेदारी की वह सब के सब प्रशिक्षण पा रहे है। इस पूरे पुलिसिया मुठभेड मे एक ऐसी महिला डकैत का किरदार एक पुलिस कर्मी करके सबको चौका दिया है इस महिला डकैत का नाम जलेवी बाई रखा गया इस जलेवी बाई रूपी महिला डकैत ने गेटअप और उसके किरदार का पुरूष पुलिसकर्मियो ने जम करके जमे लिये।
पूरे प्रशिक्षण के दौरान इटावा के एसएसपी डा.अशोक कुमार राधव ने सभी प्रशिक्षणार्थी पुलिस कर्मियो को नसीहत दी कि इस प्रशिक्षण मे कुछ कमी रही जिसको आने वाले दिनो मे दूर करने की जरूरत है।



मंगलवार, 16 अगस्त 2011

अन्ना का साथ देने को उतरी चंबल की सुदंरी सीमा परिहार


दिनेश शाक्य
भ्रष्ट्राचार के खिलाफ जोरदार मुहिम के चलते लोकप्रिय समाजसेवी अन्ना हजारे की गिरफ्तारी  के बाद पूरे देश भर मे उबाल आ गया है। मुलायम सिंह यादव का इटावा जिला बैसे तो समाजवादी पार्टी के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है लेकिन जब कभी देश से जुडी गंभीर विषयो पर मोर्चो  की बात रही तो यहा के लोग कभी भी पीछे नही रहे है। अन्ना हजारे की गिरफतारी के तुरंत बाद खासी तादात मे इटावा के लोगो ने प्रर्दशन करके अन्ना के सर्मथन मे उतरना मुनासिब समझा। इस प्रर्दशन मे मुख्य रूप से शामिल रही चंबल घाटी के आत्मसमर्पित दस्यु सुदंरी सीमा परिहार। जिसने मरते दम तक अन्ना हजारे का साथ देने का वादा किया। कभी चंबल घाटी मे आंतक का पर्याय रही सीमा परिहार के नये रूप से हर कोई भौचक है खास कर सीमा परिहार का यह कहना कि अन्ना का साथ मरते दम तक देना है।
सीमा परिहार का बदला हुआ रूप देख करके हर कोई इस रूप की चर्चा करने मे लग गया है।
चंबल की खूंखार वादियो मे अपने आंतक का डंका मचाने के बाद अपनी हकीकत की कहानी मे खुद को उतारने वाली सीमा परिहार अब टेलीविजन पर नजर आ चुकी  है यह पहला मौका रहा जब बिग बॉस जैसे कार्यक्रम के जरिये किसी खूखांर महिला अपराधी को छोटे पर्दे पर दर्शको को देखने का मौका मिला है।
वुंडेड नामक फिल्म के जरिये सीमा परिहार की कहानी देशवासी पहले ही देख चुके है जिसमे खुद सीमा परिहार ने किरदार अदा किया है। चंबल के नामचीन डकैतों के साथ दहशत की पर्याय बनी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार एक नए रूप में कलर्स पर प्रसारित हो चुके बिग बॉस के घर की सदस्य बनकर अपने जीवन चक्र से दर्शक रूबरू करा चुकी है। सीमा परिहार वह पहली दस्यु सुंदरी के रूप में सामने आई थी जिसने अपने डकैती के जीवन काल में ही माँ का तो दर्जा हासिल कर लिया, परंतु पत्नी वह आज तक किसी की नहीं बन सकी। हालांकि कुख्यात दस्यु सरगना निर्भय सिंह गूर्जर के साथ बेशक कुठारा (अजीतमल) में सात फेरे लिए हों और दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने कन्यादान भी किया हो, परंतु निर्भय की मौत के बाद उसे न तो पति के अंतिम संस्कार की पुलिस प्रशासन ने ही और न ही समाज ने मान्यता दी।
बीहड़ में रहने के बावजूद हथियारों से दूर रहने वाली सीमा परिहार को विभिन्न दल जिस्म के लिए अपनाते रहे और सीमा सिर्फ गैंगवार से ही जूझती रही। अब जब पिछले एक दशक से सीमा ने बीहड़ को त्याग दिया तो अब वॉलीवुड की रंगीनियां उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहीं हैं। वुंडेड फिल्म से अपनी नई जिंदगी की इबारत लिखने वाली सीमा परिहार बिग बॉस में अपनी एंट्री कर चुकी है। बिग बास के जरिये देश के सामने सेलिब्रिटी बन कर सामने आयी सीमा परिहार की दास्तां कम दर्दनाक नहीं है। इटावा जिले के बिठौली थाना क्षेत्र के कालेश्वर की गढ़िया (अनेठा) में खासा दबदबा रखने वाले बलबल सिंह परिहार के पुत्र शिरोमणि सिंह की सबसे छोटी बेटी की जिंदगी इस कदर बदनुमा हो जाएगी, यह किसी को नहीं पता था। सीमा की तीनों बड़ी बहिन की शादी हो गई थी। इसके बाद शिरोमणि सिंह औरैया जनपद के अयाना थाना क्षेत्र के ग्राम बबाइन में जा बसे। इसी बीच अपनी बड़ी बहिन मंजू के घर चकरनगर क्षेत्र में गई सीमा की आंख सिपाही भारत सिंह से क्या लड़ी कि उसकी जिंदगी की तस्वीर ही बदल गई। बकौल सीमा परिहार महज तेरह साल की उम्र में रंजिश के चलते कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम ने उसे अगवा कर लिया और अठारह वर्ष उसने लालाराम के साथ बिताए।
इस बीच वह सामाजिक जीवन में वापस न जा सके इसके लिए उसके ऊपर पुलिस ने दर्जनों मुकदमे दर्ज कर लिए। सीमा परिहार को पाने के लिए लालाराम गिरोह के ही जय सिंह ने बगावत कर ली, परंतु पुलिस ने जब जय सिंह का जीना मुश्किल कर दिया तो फक्कड़ की शर्त पर जय सिंह ने निर्भय गूर्जर को सौंपा। इसके बाद 5 फरवरी, 1989 को फक्कड़ ने कन्यादान देकर निर्भय के साथ उसके सात फेरे करा दिए। जिंदगी का सुकून यहां भी खत्म नहीं हुआ। बीहड़ों में ही उसने मातृत्व सुख हासिल किया और निर्भय और लालाराम के बीच भंवर में वह फंस कर रह गई। दोनों में गैंगवार हो गया और अंततरू वर्ष 2000 में कानपुर देहात जनपद में लालाराम पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया। इसी के साथ सीमा ने भी बीहड़ी जीवन को त्याग आत्मसमर्पण कर दिया। 7 नवंबर, 2005 को निर्भय की मौत के बाद जब सीमा परिहार ने अपने पति का पुलिस प्रशासन से शव मांगा तो उसके अनुरोध को पुलिस ने सिरे से खारिज कर दिया, बावजूद इसके सीमा ने वाराणसी में निर्भय की अस्थि विसर्जित कर जबरन पत्नी का दर्जा हासिल करने की कोशिश की। सीमा परिहार महिला डकैतों में ऐसी पहली महिला है जिसने बीहड़ी जीवन में मां बनने का सुख हासिल किया। हालांकि सीमा के बाद चंदन की पत्नी रेनू यादव, सलीम गूर्जर की प्रेयसी सुरेखा उर्फ सुलेखा और जगन गूर्जर की पत्नी कोमेश गूर्जर भी मां के सुख को हासिल कर चुकी थीं। अब देखना होगा कि बिग बॉस के घर में क्या सीमा अपने अतीत को साथियों के साथ शेयर करेंगी।
चंबल घाटी के इतिहास को यदि देखा जाएं तो अस्सी के दशक के बाद से सक्रिय हुईं दस्यु सुंदरियां सिर्फ दस्यु सरगनाओं के मनोरंजन भर का साधन रहीं थीं। पुतलीबाई और फूलन देवी ने तो अपने ऊपर हुए अत्याचारों के प्रतिशोध की भावना में हथियार थाम कर अपने आतंक का साम्राज्य स्थापित किया परंतु अस्सी के दशक के बाद जितनी भी दस्यु सुंदरियां उभर कर सामने आईं, इनमें से अधिकाधिक अगवा कर लाईं गईं थी। बाद में दस्यु सरगनाओं को दिल दे कर गिरोह पर साम्राज्य स्थापित किया। कुछ ऐसी ही बिडंवना रही सीमा परिहार के साथ। अब सीमा परिहार बेशक फूलन के नक्शे कदम पर चल कर संसद का रास्ता अख्तियार करने की मंशा रखती हो परंतु फूलन का दर्द जगजाहिर हो चुका था और यही कारण था कि जब फूलन ने मिर्जापुर के भदोई लोकसभा चुनाव लड़ा तो मतदाताओं ने फूलन को हाथों हाथ लिया। ऐसा सीमा परिहार के साथ हो सकेगा, इसके बारे में फिलहाल तो कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है।
सीमा परिहार घाटी में महज दस्यु सरगनाओं के मोहरे तक ही सीमित रही। पहले सिपाही के साथ प्रेमपॉश में बंधने के साथ ही उसके जीवन का दुखद सिलसिला शुरु हो गया जिससे उसे अभी तक निजात नहीं मिल सकी है क्योंकि अभी भी वह दस्यु जीवन के मुकदमों से जूझ रही है। सीमा से जहां अपने जमाने के कुख्यात दस्यु सरगना लालाराम गिरोह ने जबरन जिस्मानी संबंध स्थापित किए वहीं दस्यु सरगना निर्भय गूर्जर को वह भेंट स्वरूप सौंपी गई थी। अपने जीवन में वह रखैल तो तमाम डकैतों की रही परंतु कन्यादान दस्यु सरगना रामआसरे तिवारी उर्फ फक्कड़ ने ही तब किया था जब निर्भय गूर्जर के साथ उसकी बीहड़ांचल के ही एक मंदिर में शादी कराई गई। अस्सी के दशक में सीमा परिहार के बाद लवली पांडे, अनीता दीक्षित, नीलम गुप्ता, सरला जाटव, सुरेखा, बसंती पांडे, आरती, सलमा, सपना सोनी, रेनू यादव, शीला इंदौरी, सीमा यादव, अनीता, सुनीता पांडे, गंगाश्री आदि ने भी बीहड़ में दस्तक दी परंतु इनमें से कोई सीमा परिहार जैसा नाम नहीं हासिल कर सकीं तथा सरला जाटव, नीलम गुप्ता और रेनू यादव के अतिरिक्त अन्य महिला डकैत पुलिस की गोलियों का शिकार हो गईं। हालांकि सीमा परिहार से लवली पांडे ज्यादा खतरनाक साबित हुई थी।
यौवनावस्था को बीहड़ में गुजार चुकी सीमा परिहार ने अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को चंबल की ऐसी घाटी में बिताया है जिसके बारे में सुनकर ही सिहरन हो उठती है। दस्यु जीवन में आमजनों के लिए खौफ का पर्याय बन चुकी सीमा परिहार के सीने में उठने वाला दर्द आज भी सीमा के चेहरे पर देखा जा सकता है। अपने इसी दर्द का उजागर करते हुए सीमा परिहार ने सपा में शामिल होने के बाद कई बिंदुओं पर खुलकर चर्चा की। समाजवादी पार्टी में शामिल हो चुकी सीमा परिहार ने राजनीतिक सफर तय करने के लिए चुनी सपा के बारे में कहा कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा ही शोषितों के दर्द को समझा है। वह बतातीं हैं कि उसने दस्यु सुंदरी बनने का कोई सपना नहीं देखा था। उसे वक्त ने समय-समय पर छला और सपने पूरे होते इससे पहले ही उसके सपनों को तार-तार कर दिया जाता था। सपा नेत्री बन चुकी पूर्व दस्यु सुंदरी सीमा परिहार बतातीं हैं कि उन्होंने दस्यु जीवन को अलविदा कहने के बाद अपने ऊपर हुए अत्याचारों की लड़ाई लड़ने के लिए पहले इंडियन जस्टिस पार्टी को चुना मगर उसमें जस्टिस नाम की कोई चीज ही नहीं थी।
उसकी आवाज उसे इंसाफ दिला पाने में नाकामयाब साबित होती थी। वह बतातीं हैं दस्यु जीवन में जो दर्द उसने महसूस किया, वह चाहती हैं कि किसी अन्य महिला के जीवन में ऐसा मंजर न आए जो वह बंदूक थामे। अपनी इसी मंशा के तहत उसने राजनीति करने का निर्णय लिया और वह सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह का आभार जताया कि उन्होंने मुझे ऐसा मंच दिया है जिसके माध्यम से वह जनता के दर्द को महसूस करेंगीं और उनकी समस्याओं का समाधान कराने में वह अपनी भूमिका का निर्वाहन करेंगीं। दस्यु जीवन के बारे में वह कहतीं हैं कि घाटी के उन खौफनाक पलों को वह भूलना चाहतीं हैं। सीमा परिहार आज जब अन्ना के सर्मथन मे सडको पर उतरी उस समय उसके साथ करीब एक सैकडा से अधिक लोग उसके साथ थे लाल टीशर्ट और काली जींस के साथ अपनी क्रूर आंखो को छुपाने के लिये सीमा ने काला रंग के चश्मे को पहन रखा था नये रूप की सीमा को देखने के लिये बाद मे खासी तादात मे जुट गये कोई यह नही समझ पाये कि कभी हाथो मे बंदूक थाम कर अपराध करने वाली सीमा आखिरकार कैसे भ्रष्टाचार की मुहिम मे अन्ना के साथ आ खडी हुई है ?

सोमवार, 15 अगस्त 2011

अफसरो ने इटावा में तिरंगे को फहराया उल्टा, बंदर ने फाड कर अफसरो को सिखाया सबक

दिनेश शाक्य
राष्ट्रीय पर्वो पर अब राष्ट्रीय ध्वज का फहराया जाना सिर्फ औचारिकता भर रह गया है देश की शान तिरंगा झंडा सीधा फहराया जा रहा है या फिर उल्टा इससे किसी भी सरकारी अफसर को कोई मतलब नही रह गया है तभी तो उत्तर प्रदेश के इटावा मुख्यालय पर मेडिकल केयर यूनिट भवन पर तिरंगे को उल्टे फहरा कर इतिश्री कर ली गई पढे लिखे इंसानो की ओर से की गई तिरंगे के अपमान को लेकर की चूक पर बंदर ने अपना गुस्सा जता कर तिरंगे  को फाड डाला।
हर सरकारी कार्यलय पर तिरंगो को फहराये जाने के क्रम मे इटावा मुख्यालय पर स्थित स्वास्थ्य विभाग की मेडिकल केयर यूनिट भवन पर आज सुबह करीब 8 बजे तिरंगे  को फहराया गया और तिरंगो को फहराये जाने के बाद सभी अधिकारी और कर्मी मजे से चले गये लेकिन तिरंगे का कोई भी रखवाला केयर यूनिट मे नही रह गया।
इसके बाद जो हुआ उसे कैमरे मे वखूबी कैद किया । एक बंदर केयर यूनिट भवन पर चढ कर उल्टे फहराये गये तिरंगे को पहले तो हाथ से पकड करके देखता है उसके बाद उसे तार तार करके चलता बनता है।
राष्ट्रीय ध्वज को उल्टा फहरा कर सरकारी अफसरो ने जो अपमान किया वो एक बंदर को भी रास नही आया इसलिये उसने इंसानो को सबक सिखाने के लिये ध्वज को ही फाडना मुनासिब समझा है।
सरकारी व्यवस्था के अनुसार सुबह झंडारोहण के बाद देर शाम तक ध्वज की रखवाली करने की भी जिम्मेदारी विभागीय कर्मियो की ही रहती है लेकिन ध्वज सुरिक्षत कैसे रह सकता है जब कोई सरकारी कर्मी मौके पर रहेगा तब ना।
देश के राष्ट्रीय घ्वज के अपमान को लेकर इलाकाई लोग खासे नाखुश नजर आ रहे है उन्होने इस अपमान को लेकर सरकारी कर्मियो और अफसरो के खिलाफ कार्यवाही की मांग की है।
इटावा मे उल्टा राष्टीय ध्वज फहराये जाने को लेकर बहुतेरे लोग मेडिकल केयर यूनिट के सामने हालात देखने के लिये आ गये। इटावा व्यापार मंडल ईकाई के अध्यक्ष अंनत प्रताप अग्रवाल का कहना है कि यह देश के साथ खुला मजाक है सरकारी अफसरो ने स्वतंत्रता दिवस जैसे देशप्रेम भरे पर्व को सिर्फ औचारिकता भर समझ करके देश प्रेम की सही भावनाओ को निर्भाह नही किया है ऐसे अफसरो के खिलाफ ना केवल कार्यवाही अमल मे पाई जाये बल्कि ऐसी कार्यवाही की जाये ताकि भविष्य मे कोई दूसरा अफसर देश के सम्मान के साथ खिलवाड ना कर सके। वही दूसरी ओर अखिल भारतीय काग्रेस कमेटी के सदस्य श्रीमती सलमा बेगम का कहना है कि राष्ट्रीय का ऐसा अपमान इससे पहले ना तो देखा गया और ना ही सुना गया है। हकीकत मे मौके पर देखने पर ऐसा लग रहा है कि मेडिकल केयर यूनिट के अफसरो ने पहले तो देश के तिरंगो को उल्टा फहरा कर उसका अपमान किया फिर इन अफसरो पर गुस्सा खाकर एक बंदर ने अफसरो को सबक सिखाने की गरज से ध्वज को ही फाड डाला।
अब सवाल यह खडा होता है कि यह कैसे पढे लिखे अफसर रहे जो देश के तिरंगे मे अंतर नही पा सके कि वो सीधा है फिर उल्टा।

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

हमारे दोस्त है अजगर


दिनेश शाक्य
सांप का नाम सुनते ही लोगो के शरीर मे सिरहन दौड जाती है लेकिन इटावा के लोगो को सांप से डर नही लगता है जो कुछ यहा पर देखा जा रहा है उसी आधार पर इस बात को प्रमाणिकता से कहा जा रहा है। इटावा मे करीब 2 साल से एक के बाद एक करके खासी तादात मे अजगर निकलते चले आ रहे है। लेकिन किसी भी अजगर को मारना तो दूर उल्टे लोगो ने अजगरो को पकडने मे वन विभाग की मदद की और अजगरो को जंगल मे छुडवाया है इसको लेकर वन अफसर तो खुश है ही साथ ही वन्य जीव संस्था के पदाधिकारी भी काफी प्रसन्नचित है।
उत्तर प्रदेश के दस्यु प्रभावित इटावा जिले मे वैसे तो एक समय खूखांर डाकुओ का बसेरा हुआ करता था लेकिन आज की तारीख मे डाकू शब्द सुनने के लिये यहा के वासिंदे तरस गये है डाकुओ का खात्मे ने लोगो के चेहरो की रोशनी को वापस लौटा दिया है अब एक नई मुसीबत अजगरो के तौर पर सामने आती हुई देखी जा रही है।
भले ही लोग सांप का नाम सुनते ही लोगो का हलक सूख जाता हो लेकिन भय या गुस्से मे इटावा के लोगो ने वो काम नही किया जिससे वन अफसरो के सामने कोई मुसीबत आकर के खडी हो। इटावा के लोगो ने शहरी या फिर ग्रामीण इलाको मे निकलने वाले अजगरो को पकडने के बाद वन विभाग को सुर्पद करवाया और जंगल मे छुडवाने मे मदद की है। इटावा के लोगो मे आये इस आश्र्चयजनक बदलाव को लेकर वन अफसर कहते है कि इटावा के लोग जागरूक हो गये है इसी वजह से किसी भी अफसर को क्षति नही हुई।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव डा.राजीव चैहान का कहना है कि इटावा मे निकल रहे अजगरो को लेकर यह बात सामने आई है प्राकृतिक वास स्थलो के साथ छेडछाड की वजह से ही अजगरो का निकलना जारी है दूसरे इन दिनो हो रही वारिस की वजह से अजगरो के प्राकृतिवासो मे पानी भर जाता है इस कारण अजगरो को पानी के उपर आना पडता है और जब अजगर पानी के उपर आ जाता है तो जाहिर है कि लोगो मे भय देख जा सकता है।  अजगर को संरक्षित श्रेणी एक मे गिना जाता है जिस ढंग से अजगरो के निकलने का सिलसिला जारी है उससे लोगो मे भय का माहौल बना हुआ है। अभी तक इटावा मे निकले अजगरो का साइज 5 फुट से लेकर 15 फुट तक रिकार्ड किया गया है जिनका वजन 40 किलो तक आंका गया है। जिन इलाको मे अभी तक अजगर निकले है वहां के लोगो ने वन विभाग के कर्मियो को बुलावा कर अजगरो को जंगलो मे छुडवाया है।
अजगरो मे जहर नही होता है इस लिये अजगरो को पकडने मे कोई खास कठिनाई नही होती है। वन्य जीव विशेषज्ञ मान कर चलते है कि इटावा मे अजगरो की तादात खासी मानी जा रही है।
ऐसा माना जा सकता है कि इटावा के लोगो वन्य जीवो के प्रति खासे चिंतित है तभी तो यहा के लोग डर पैदा करने वाले अजगरो से भी कतई नही डरे है।
दस्यु गतिविधियों के लिए कुख्यात समझी जाने वाली चंबल घाटी के लोगों ने दस्यु गिरोहों की दहशत से निजात पाई ही थी कि अब घाटी में निकलने वाले अजगरों ने घाटी वासियों की दहशत और बढ़ा दी है। आबादी वाले क्षेत्रों में अजगरों के आ जाने के कारण यहां के वाशिंदों की दिनचर्या बुरी तरह प्रभावित होने लगी है। अजगरों का खौफ यहां के लोगों में इस कदर बस गया है कि उन्होंने अपने जानवरों एवं बच्चों को भी गांव से बाहर भेजना बंद कर दिया है।
चंबल घाटी में बच्चों का बचपन घरों की चाहरदीवारी में कैद होकर रह गया है। खेलने-कूदने व धमाल मचाने की तमन्ना तो दिल में हिलौरे मारती है परंतु परिजनों की बंदिशें उनकी तमन्नाओं को दमन कर देतीं हैं। परिजनों की अपनी मजबूरी है। वह अपने लाड़लों को असमय ही खोना नहीं चाहते हैं। वह चाहते हैं कि उनके लाड़ले कहीं किसी जहरीले सांप अथवा अजगर की चपेट में न आ जाएं। बच्चे तो बच्चे बड़ों में भी दहशत इस कदर पसरी हुई है कि उन्हें दिन-रात सिर्फ सर्प और अजगर ही नजर आते हैं। आलम यह है कि सुकून से वह दो वक्त की रोटी भी नहीं खा सकते हैं। कब कहां अजगर सामने आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है।
करीब 2 साल पहले सहसो इलाके के अजीत की गढिया गांव मे एक लडकी को अजगर ने निकलने की कोशिश की जिसको लेकर गांव मे लंबे समय तक दहशत बनी रही है। गौरतलब है कि इससे पहले घाटी के सधूपुरा में अजगर ने एक बकरी को अपना शिकार बनाया था। कचहरी शेरगढ़ में भी अजगर का निवाला बकरी ही बनी थी। लवेदी क्षेत्र के ग्राम टकरूपुर, बकेवर क्षेत्र के इकनौर में भी अजगर की दहशत ने ग्रामीणों को दहशत में डाल दिया था। लोगों के भय का आंकलन  इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अब अपने जानवरों को चराने भेजना तक भी बंद करा दिया है। इससे चंबल क्षेत्र के किसानों की फसलें भी बुरी तरह प्रभावित होने की संभावना है।
प्रशासनिक अधिकारियों अथवा चंबल सेंचुरी क्षेत्र के अधिकारियों के पास सिर्फ सतर्कता बरतने की अपील के अलावा कोई बिकल्प नहीं है। वन अफसर बताते हैं कि ग्रामवासी घर से निकलने से पहले सतर्कता बरतें और सुबह शाम विशेष रूप अलर्ट रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा जहरीले सांपों का खतरा भी चंबलवासियों के लिए कम नहीं हैं। सोसायटी फॉर कंजर्वेसन ऑफ नेचर के सचिव डा. राजीव चैहान बताते हैं कि घाटी के यमुना तथा चंबल क्षेत्र के मध्य तथा इन नदियों के किनारों पर सैकड़ों की संख्या में अजगर हैं। हालांकि इन अजगरों की कोई तथ्यात्मक गणना नहीं की गई है। वह बताते हैं कि इसके अलावा यहां के लोगों के लिए जहरीले सांपों का भी खतरा लगातार बना रहता है। बरसात के मौसम में जहरीले सांपों में कोबरा, करैत तथा वाइसर जैसे सांपों के विचरण से जान का खतरा हो सकता है। सोसायटी फॉर कंजर्वेसन ऑफ नेचर के सेक्रेटरी एवं वन्य जीव विशेषज्ञ डा. राजीव चैहान बताते हैं कि अजगरों के शहरी क्षेत्र में आने की प्रमुख बजह यह है कि जंगलों के कटान होने के कारण इनके प्राकृतिक वास स्थल समाप्त होते जा रहे हैं। जंगलों में जहां दूब घास पाई जाती है, वहीं यह अपने आशियाने बनाते हैं। अब जंगलों के कटान के कारण दूब घास खत्म होती जा रही है। इसके अलावा अजगर अपने वास स्थल उस स्थान पर बनाते हैं जहां नमी की अधिकता होती है परंतु जंगलों में तालाब खत्म होने से नमी भी खत्म होती जा रही है
चंबल के वाशिंदे बताते हैं कि देश की आजादी के बाद वह लगातार कुख्यात दस्यु गिरोहों के खौफ से जूझते रहे हैं। इन डकैतों के संरक्षण के नाम पर पुलिस की दहशत भी हमने झेली है परंतु जब पुलिस ने दर्जनों कुख्यात दस्यु सरगनाओं को मार दिया अथवा समर्पण करने को मजबूर कर दिया तो अब अजगर सहित जहरीले सांपों की दहशत से निजात मिलने की संभावनाएं कम ही नजर आ रहीं हैं। जानकार बताते हैं कि बरसात के मौसम में जहरीले सांप तथा अजगर अपने-अपने बिलों से निकल कर स्वंच्छंद विचरण करते हैं और ऐसे में यदि इनके सामने कोई आ जाए तो यह उस पर हमलावर रूख अपना लेते हैं। चंबल क्षेत्र में अब तक दर्जनों लोगों सांप के काटने से अपनी जिंदगी खो चुके हैं।
अजगर के बारे में जानकार बताते हैं कि अजगर एक संरक्षित जीव है परंतु इसके संरक्षण के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकारें कोई नीति नहीं बना रहीं हैं। जिला वन अधिकारी सुर्दशन सिंह  बताते हैं कि हिंदुस्तान में सुडूल-वन प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम हैं। इस प्रकार के अजगरों के सरंक्षण के लिए सरकारों को शीघ्र ही एक नीति बनानी पड़ेगी। वे बताते हैं कि अजगर एक संरक्षित प्राणी है। यह मानवीय जीवन के लिए बिलकुल खतरनाक नहीं है परंतु सरीसृप प्रजाति का होने के कारण लोगों की ऐसी धारणा बन गई और इसकी विशाल काया के कारण लोगों में अजगर के प्रति दहशत फैल गई है। वे बताते हैं कि हिंदुस्तान में इस प्रजाति के अजगरों की संख्या काफी कम है, यही कारण है कि इन्हें संरक्षित घोषित कर दिया गया है परंतु इसके बावजूद इनके संरक्षण के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार ने कोई योजना नहीं की है। वह बताते हैं कि जंगलों के कटान के कारण दूव घास नष्ट होती जा रही है इसके लिए अब जंगलों में दूव घास बढ़ाने के लिए अध्ययन किया जाएगा। हालांकि वह स्वीकारते हैं कि विलुप्तता के कगार पर पहुंचते जा रहे इन अजगरों के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकारों को कोई न कोई शीघ्र ही योजना तैयार करनी होगी अन्यथा अजगर जैसा जीव किताबों में ही सिमट कर रह जाएगा।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

कैमरे मे कैद हुई सांपो की मौज मस्ती





दिनेश शाक्य
बरसात ऋतु में पड़ने वाले यह महीना रोमांटिक भी माना जाता है। यही वह मौसम है जिसमें कि तन के साथ-साथ मन-मस्तिष्क भी मस्ती में डूब जाता है। फिर भला मौसम की इस मस्ती से सरीसृप वर्ग के सांप इससे कैसे अछूते रह सकते हैं। जमीन में पानी भर जाने के बाद सांप जैसे कीट बाहर निकल आते हैं और मस्ती के आगे भूल जाते हैं सब कुछ।
इन दिनो खेत खलिहान के अलावा खुले मैदान मे तमाम किस्म के सांपो को नैस्टिंग डांस करते हुये देखा जा सकता है हाल के दिनो मे दो ऐसे सीन कैमरे मे कैद हुये है जो यह बताने के लिये काफी समझे जा सकते है कि सांप अब आदमी के सामने भी मौज मस्ती करने की कुब्बत रखते थे पहले कभी इन सांपो को ऐसी दशा मे देख पाना आसानी से संभव ही नही था।
उत्तर प्रदेश के इटावा मुख्यालय पर सांपो की इस मौज मस्ती को दो बार कैमरे मे कैद किया गया सबसे खास बात यह रही कि करीब एक सैकडा से अधिक लोगो के बीच यह सांपो का जोडा मौज मस्ती के दौर से दूर नही हुआ है। पहली बार यह सांप मुख्यालय से महज तकरीबन छः किमी दूर स्थित ग्राम सराय ऐशर के पास ईंटों की ढेर में से एक विशालकाय तकरीबन छः फुट लंबा नर-मादा सांप का एक जोड़ा निकला और मौसम की रुमानियत में बेसुध होकर प्रेमालाप में लीन हो गया। इसके बाद इटावा मे नुमाइश मैदान के पास भी ऐसा ही देखने मे लोग खासी तादात मे कामयाब हुये है। नुमाइश मैदान मे तो यह सांपो का जोडा करीब 30 मिनट तक आम लोगो की आंखो के सामने मौज मस्ती वाली मुद्रा मे बना रहा। नर एवं मादा सांप की इस क्रिया को नैस्टिंग डांस कहा जाता है। यह एक ऐसा नजारा था जो होता तो आम है परंतु आंखों से देख पाना आसान नहीं होता फिर सांपों की इस प्रक्रिया को तो कैमरे में कैद किया गया था।
सांपों के जीवन के बारे में यूं तो काफी किवदंतियां प्रचलित हैं। इसी में कहा जाता है कि नाग-नागिन को यदि इस अवस्था में देख लिया जाए तो नागिन उसे जिंदा नहीं छोड़ती है लेकिन यह अवधारणा गलत साबित हुई क्योंकि इस मंजर को दर्जनों लोग देख रहे थे। सांप इस कदर मस्ती में थे कि उन्हें लोगों के शोरगुल से भी कोई सरोकार नहीं रहा और तकरीबन 12 मिनट तक काम-क्रीड़ा के उपरांत नर एवं मादा सांप चुपचाप ईंटों के ढेर में जा कर गुम हो गए।
नैस्टिंग डांस में लीन सांपों के इस जोड़े के बारे में बताया जाता है कि बरसात के मौसम में पानी जब जमीन के अंदर जाने लगता है तो सांप खुद को बचाने के लिए जमीन के बाहर निकल आते हैं और उनका यही समय प्रजनन काल भी होता है। आम तौर पर मानवीय शोर शराबे की स्थिति में सांप खुद को छिपा लेते हैं परंतु विषेशज्ञों का मानना है कि यदि उनकी कामेच्छा चरम पर हो तो वह मानवीय शोरगुल की परवाह नहीं करते है। कुछ ऐसा ही इस नजारे में हुआ।
सांपों के बारे में इस दृश्य  ने यह भी सिद्ध कर दिया कि सांप फन उस वक्त फैलाता है जब वह गुस्से से भरा होता है परंतु यदि वह उन्मुक्त अवस्था में हो तो उसका फन नहीं निकलता है। सांपों के जोड़े के नैस्टिंग डांस के दौरान नर-मादा सांप जहां धरातल से तीन-तीन फुट उंचे भी उठे तो तमाम मर्तबा वो आपस में इस कदर लिपट-चिपट गए मानो मोटी रस्सी हो।
सांप को देखकर भले ही शरीर में सिहरन दौड़ पड़े परंतु यदि कोई ऐसा अद्भुत नजारा आंखों के सामने नजर आया तो लोग खुद का आत्मविश्वास भी बढ़ा लेते हैं। कुछ ऐसा ही नजर आया सांप के नैस्टिंग डांस के दौरान। सांप को देखकर जहां लोग भागने का मन बना रहे थे परंतु उनकी गतिविधियों से जब सांप की प्रक्रिया में कोई भी परिवर्तन नहीं हुआ तो यह नजारा देखने वालों की संख्या बढ़ती ही गई।

गिदद को जीवनदान देने मे जुटा वन विभाग



दिनेश शाक्य
लुप्तप्राय हो रहे गिददो की एक बार फिर से वापसी की उम्मीद बंधी है ऐसी संभावनाये इसलिये भी बनी है क्यो कि इटावा मे कई गिदद के जोडे देखे गये है और उन्ही मे से एक कंरट लग कर घायल हुआ है अब इस जख्मी गिदद को जीवनदान देने के दौरान यह खुलासा हुआ है हाल के दिनो मे नेशनल हाइवे पर करीब 4 जोडे गिददो के देखे गये है। 
वैसे तो वन अफसरो का काम ही पशु पक्षियो और वन्य जीवो को जीवन दान देने का लेकिन लुप्त प्राय एक गिदद को बचाने की कोशिशो के चलते इटावा का वन अमला खासा सुर्खियो मे है।
हुआ यू कि इटावा शहर मे एसएसपी आवास के पास दो गिदद बिजली के तारो के उपर से गुजर रहे थे कि अचानक एक गिदद कंरट की चपेट मे आ गया जिससे उसको मामूली से चोट आ गई लेकिन यह गिदद फिलहाल उड पाने की दशा मे नही है इस लिये शहर के ही कुछ लोग इस गिदद को लेकर खुद ही वन अफसरो के पास आ गये है। अब यह वन अफसर इस गिदद को बचाने की कोशिश मे लग गये है।
फिलहाल मामूली रूप से घायल गिदद जिला वन अधिकारी सुर्दशन सिंह के आवास मे ही रह रहा है उसकी देख भाल के लिये 4 वन कर्मियो को लगाया गया है। जिला वन अधिकारी बताते है कि इटावा मे नेशनल हाइवे जब कभी जाये तो देखेगे कि किनारे किनारे करीब 4 से अधिक जोडे देखे जा रहे है जिससे यह भी उम्मीद बंधी हुई है कि लुप्तप्राय गिदद एक बार फिर से बसेरा बनाने की फिराक मे है। इजीपशन बल्चर कंरट लगने से घायल हुआ है जो आम तौर छोडे हुये मांस को खाकर अपना गुजरा करता है।

सोमवार, 27 जून 2011

खंडित मूर्तियो की पूजा वाला गांव


दिनेश शाक्य
अगर  आप से  कहा जाये कि खंडित मूर्तियो की पूजा करोगे तो जाहिर है आप का जबाब हो नही लेकिन इटावा मे यमुना नदी के किनारे बसा गांव आसई देश दुनिया का एक ऐसा गांव माना जा सकता है जहां के वाशिंदे खंडित मूर्तियो की पूजा अर्चना करने मे ही खुश होते है। इस गांव के लोगो की श्रद्धा खंडित मूर्तियो से इस कदर है कि गांव वालो ने अपने घरो के बाहर तो इन मूर्तियो को स्थापित किया घरो के भीतर भी काबिज करने से नही चूके।
देश में इटावा जिले का आसई एकमात्र ऐसा गांव है जहां के वाशिंदे किसी मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं बल्कि हर घर में उनके आराध्य की मूर्तियां पाई जातीं हैं। घरों में प्रतिस्थापित यह मूर्तियां साधारण नहीं हैं अपितु दसवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य की बताई जातीं हैं। दुर्लभ पत्थरों से बनी यह मूर्तियों देश के पुराने इतिहास एवं सभ्यता की पहचान कराती हैं
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में काशी के बाद धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाने वाला एवं जैन दर्शन में काशी से भी श्रेष्ठ आसई क्षेत्र पूर्व की दस्यु गतिविधियों के बाद से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्शित नहीं कर पा रहा है।
जैन दर्शन के मुताबिक मुख्यालय से तकरीबन पंद्रह किमी दूर स्थित आसई क्षेत्र में जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने तकरीबन दो हजार साल से अधिक समय पूर्व दीक्षा ग्रहण करने के बाद इसी स्थान पर बर्शात का चातुर्मास व्यतीत किया था। तभी से यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया था। इसके अलावा तकरीबन दसवीं शताब्दी में राजा जयचंद्र ने आसई को अपने कन्नौज राज्य की उपनगरी के रूप में विकसित किया था और जैन दर्षन से प्रभावित राजा जयचंद्र ने अपने शासन के दौरान जैन धर्म के तमाम तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित कराई।
औरंगजेब ने जब धार्मिक स्थलों पर हमले किए तो यह क्षेत्र भी इस उसके हमलों से अछूता नहीं रहा। तमाम धर्मों से जुड़ी दुर्लभ मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया जो समय-समय पर इन क्षेत्रों में मिलती रहीं। अफसोस यह है कि आसई क्षेत्र में मिली तकरीबन पांच सैकड़ा मूर्तियों में से अब महज तकरीबन दर्जन भर मूर्तियां ही शेष रह गई है बीते कुछ वर्षों में जब दस्यु समस्या चरम पर थी और आसई में भय के चलते जब कोई घुस नहीं पाता था तभी मूर्तियों की तस्करी करने वाले लोग इन मूर्तियों को ले जाते रहे। अब यहां भगवान महावीर स्वामी सहित जैन धर्म के तीन तीर्थंकरों की खंडित मूर्तियों सहित कुछ अन्य मूर्ति ही रह गईं हैं। वह बताते हैं कि इन मूर्तियों को भी चोर ले जाते यदि इन मूर्तियों में चमत्कार नहीं होता। इन मूर्तियों को ले जाने के लिए चोरों ने मूर्तियों को उंट पर लाद भी लिया था मगर इन मूर्तियों में यकायक ही इतना अधिक बजन हो गया कि उन्हें ले जाना नामुमकिन रहा।
आसई गांव के प्रधान रवींद्र दीक्षित कहना है कि आदि काल से इस तरह की मूर्तियां निकल रही है और श्रद्धाभाव से लोगो ने अपने घरो मे लगा रखी है और पूजा करते है। उनका कहना है कि गांव पर कभी यमुना के बीहडो मे सक्रिय रहे कुख्यात डाकुओ का प्रभाव देखा जाता रहा है तभी तो एक समय करीब करीब पूरा गांव खाली हो गया था लेकिन जैसे जैसे पुलिस डाकुओ का खात्मा किया गांव वाले अपनी जमीनो और घरो की ओर वापस लौट आये इसी दरम्यान कुछ परिवार पूरी तरह से ही शहरो मे बस गये।
आसई निवासिनी विमला देवी बतातीं हैं कि उनके घर में स्थापित दसवीं शताब्दी की लंबोदर भगवान गणेष की मूर्ति पहले घर के बाहर ही स्थापित की गई थी परंतु लगभग एक दशक पूर्व मूर्ति चोर तस्कर गिरोह के लोग इस मूर्ति को चुरा ले गए परंतु यह मूर्ति अपने चमत्कार के कारण ही तस्कर इस मूर्ति को नहीं ले जा पाए। वह कहते हैं कि इस घटना के बाद से उन्होंने गणेश जी की मूर्ति को घर के अंदर ही स्थापित कर लिया। वह कहते हैं कि मूर्ति स्थापना के बाद से उनके घर में समृद्धि आई है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऐसा ही गांव की दूसरी महिलाये ओमकांती और शकुंतला भी मानती है उनका कहना है कि खंडित मूर्तियो की पूजा करने के बाबजूद आजतक कोई नुकसान नही हुआ बल्कि फायदा ही हो रहा है।

शुक्रवार, 24 जून 2011

पिया ने तोडा मिथक

दिनेश शाक्य
वैसे तो चंबल घाटी के प्रभाव वाले जिले इटावा की पहचान आम तौर पर खूखांर डाकू की शरणस्थली के तौर ही मानी जाती है इस डाकू छवि का प्रभाव तोडने का काम वैसे तो समय पर समय तमाम लोगो की ओर से किया जाता रहा है लेकिन उनका कोई खास नाम होता हुआ नही दिखा है लेकिन इटावा की एक लडकी की वदौलत अब इस डाकू छवि से कही ना कही निजात मिलती हुई नजर आ रही है जिस लडकी का यहा पर जिक्र किया जा रहा है वह लडकी बहुत ही मामूली सी लडकी मानी जा सकती है लेकिन जिस मुकाम तक यह जा पहुची है उसे देख कर यही कहा जा सकता है इस लडकी ने इस मिथक को तोड दिया है कि डाकू छवि वाले इस इटावा जिले के लोगो को अगर मौका दिया जाये तो इटावा को डाकुओ के प्रभाव के वजाये प्रतिभासम्पन्न जिले के तौर पर ही पहचाना जायेगा।
अब बात कर ली जाये उस लडकी की जिसका जिक्र करके डाकू छवि को तोडने की बात कही जा रही है यह लडकी कोई ओर नही पिया बाजपेई है। अब सवाल यह खडा होता है कि आखिर कार इस पिया बाजपेई ने ऐसा कौन सा कमाल कर दिया है कि पिया को लेकर चर्चाओ का बाजार गर्म हो गया है।
असल मे पिया ने वो काम किया है जो किसी ने आसानी ने इससे पहले करना तो दूर उसके बारे मे ना तो सोचा है और ना ही किया है। पिया बाजपेइर्, एक ऐसी लडकी है जो हिंदी भाषी होने के बाबजूद तमिल फिल्मो की लोकप्रिय अभिनेत्री बन गई है ।
गर्मी की छुटिटयो मे अपने घर इटावा आई पिया अपने परिजनो के बीच खासी खुश दिख रही है। दक्षिण भारत की फिल्मो मे जोरदार कामयाबी हासिल करने के बाद अब पिया को भरोसा है कि उसे बालीबुड की फिल्मो मे काम तो मिलेगा ही कामयाबी भी दक्षिण की फिल्मो की ही तरह मिलेगी। इटावा की बेटी पिया को पूरी उम्मीद है कि दक्षिण की फिल्मो की तरह हिन्दी सिनेमा मे भी नाम कमाने मे कामयाब हो जायेगी। दक्षिण मे दर्जनो हिट फिल्मे देने वाली पिया का मानना है कि उसे बीलीबुड की ओर से कई अहम आफर मिल रहे है लेकिन वो किसी खास कहानी के अनुरूप हिन्दी फिल्मो मे काम करने के लिये तैयार है। पिया ने उम्मीद जताई है कि साल 2011 मे वह हिन्दी सिनेमा मे बतौर अभिनेत्री के रूप मे नजर आयेगी।
अपने 5 साल के सिनेमाई कैरियर के बारे मे बताया कि वह अब तक एक दर्जन से अधिक हिट फिल्मो मे काम कर चुकी है। सबसे पहले  हिन्दी भाषा मे बनी धोसला का घोसला का तमिल भाषा मे रीमिक्स मे लीड रोल मे काम किया। इस साल 2011 मे तमिल भाषा मे रिलीज हुई को नाम की फिल्म सुपर हिट रही है। इस फिल्म ने अकेले यूके मे 4 दिन मे 4 करोड से अधिक का कारोबार करने मे कामयाबी मिली है।
पिया की शुरूआती शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर से हुई इंटर तक पढाई पिया ने इटावा के ही राजकीय बालिका इंटर कालेज से किया और बीसीए किया है मध्यप्रदेश के ग्वालियर से। पिया को डांस और अभिनय करने का शौक बचपन से ही था इसी शौक के चलते कई बार दिल्ली ओर मुंबई मे काफी सधंर्ष किया है। कई बार मुंबई मे आडिशन देने के बाद प्रियदर्शन के साथ एक विज्ञापन मे काम करने का मौका मिला इसी के साथ प्रियदर्शन के साथ पहली फिल्म भी करने को मिली है। पिया अब तक मेगा स्टार अमिताभ बच्चन और किके्रटर महेंद्र सिंह धोनी सहित नामी हस्तियो के साथ 100 से अधिक विज्ञापन मे काम किया है।
पिया को आगे बढाने मे सबसे अधिक मेहनत की है उसकी मां कांती ने जिन्होने पिया को आगे बढाने मे कोई कसर नही छोडी इसी वजह से पिया की इस तरक्की पर सबसे अधिक खुश उसकी ही मां है। पिता बी के बाजपेई भी अपनी बेटी की कामयाबी पर मां की ही तरह से बेहद खुश है।
बताते चले कि हिंदी भाषा मे हिट फिल्म रही मै हू ना मे अमृता राव के रोल को इससे पहले तमिल भाषा मे बनी एगन मे पिया ने ही लीड रोल किया था। इसके अलावा गोवा नामक स्तरीय फिल्म मे भी पिया काम कर चुकी है। सबसे हैरत की बात तो यह है कि पिया को ना तो तमिल और तेलुगू दोनो भाषाओ मे से कोई भी भाषा नही आती है। पिया को माधुरी दीक्षित और मेगा स्टार अमिताभ बच्चन खासे पंसद है।