दिनेश शाक्य
ए.ओ.हयूम और सोनिया गांधी, दोनों ऐसे विदेशी नाम हैं, जिनका कांग्रेस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ए.ओ.हयूम जंहा काग्रेस के संस्थापक है और सोनिया गांधी काग्रेस की अध्यक्ष है। लेकिन, जहां एक ओर विदेशी मूल की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांघी को कांग्रेसी स्वीकार कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के संस्थापक ए. ओ. हयूम से कांग्रेसियों को गुरेज है।
दो-तीन पार्टियों को छोड़कर दुनिया में शायद ही किसी राजनीतिक पार्टी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जितनी लंबी जिंदगी नसीब हुई हो। देश की परिस्थितियां इतनी बदल चुकी है कि 28 दिसंबर 1885 और 28 दिसंबर 2011 के बीच एक भी साझा बात खोजना असंभव लगता है लेकिन कांग्रेस में कुछ साझा बातें सहज ही देखी जा सकती हैं। करीब 126 साल पहले इस पार्टी के केंद्र में थियोसॉफिकल सोसाइटी से जुड़े एक अनोखे यूरोपीय व्यक्तित्व ए.ओ.हयूम थे,जबकि आज इसके केंद्र में यूरोपीय मूल की एक अन्य व्यक्तित्व सोनिया गांधी हैं।
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम ! एक ऐसा नाम है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उसने गुलामी के दौर मे अपने अंदाज मे ना केवल जिंदगी को जिया बल्कि अपनी सूझबूझ से देश को काग्रेस के रूप मे एक ऐसा नाम दिया जो आज देश की तस्वीर और तदवीर बन गया है।
4 फरवरी 1856 को इटावा के कलक्टर के रूप मे ए.ओ.हयूम की तैनाती अग्रेज सरकार की ओर से की गई। हयूम की एक अग्रेज अफसर के तौर पर कलक्टर के रूप मे पहली तैनाती है।
ए.ओ.हयूम इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। आते ही हयूम ने अपनी कार्यक्षमता का परिचय देना शुरू कर दिया। 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से हयूम ने खुद के अंश से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर ना के बराबर रहा होगा तभी तो सिर्फ 2 ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आई।
हयूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम हयूम से हयूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है।
हयूम ने अपने कार्यकाल के दौरान इटावा शहर मे मैट्रिक शिक्षा के उत्थान की दिशा मे काम करना शुरू किया। जिस स्कूल का निर्माण हयूम ने 17500 की रकम के जरिये कराया वो 22 जनवरी 1861 को बन कर के तैयार हुआ और हूयम ने इसको नाम दिया हयूम एजोकेशन स्कूल। इस स्कूल के निर्माण की सबसे खास बात यह रही कि हयूम के प्रथमाअक्षर एच शब्द के आकार का रूप दिया गया। आज इस स्कूल का संचालन इटावा की हिंदू एजूकेशलन सोसाइटी सनातन धर्म इंटर कालेज के रूप मे कर रही है।
हयूम ने इटावा मे गुलामी के दौर मे अग्रेजो के लिये एक प्रार्थना स्थल चर्च का निर्माण कराया उसके पास ही इटावा क्लब की स्थापना इसलिये कराई ताकि बाहर से आने वाले मेहमानो को रूकवाया जा सके क्यो कि इससे पहले कोई दूसरा ऐसा स्थान नही था जहा पर मेहमानो को रूकवाया जा सके। सिंतबर 1944 को हुई जोरदार वारिस मे यह भवन धरासाई हो गया जिसे नंबवर 1946 मे पैतीस हजार रूपये खर्च करके पुननिर्मित कराया गया था।
1857 के गदर के बाद इटावा मे हयूम ने एक शासक के तौर पर जो कठिनाईया आम लोगो को देखी उसको जोडते हुये 27 मार्च 1861 को भारतीयो के पक्ष मे जो रिपोर्ट अग्रेज सरकार को भेजी उससे हूयूम के लिये अग्रेज सरकार ने नाक भौह तान ली और हयूम को तत्काल बीमारी की छुटटी नाम पर ब्रिटेन भेज दिया। एक नंबवर 1861 को हूयूम ने अपनी रिर्पोट को लेकर अग्रेज सरकार ने माफी मागी तो 14 फरवरी 1963 को पुनः इटावा के कलक्टर के रूप मे तैनात कर दी गई।
हूयूम को अग्रेज अफसर के रूप मे माना जाता है जिसने अपने समय से पहले बहुत आगे के बारे मे ना केवल सोचा बल्कि उस पर काम भी किया। वैसे तो इटावा का वजूद हयूम के यहा आने से पहले ही हो गया था लेकिन हूयूम ने जो कुछ दिया उसके कोई दूसरी मिसाल देखने को कही भी नही मिलती एक अग्रेज अफसर होने के बावजूद भी हूयूम का यही इटावाप्रेम हूयूम के लिये मुसीबत का कारण बना।
हयूम ने गुलामी के दौर मे इटावा को जो कुछ दिया उसकी अस्क आज भी बाकायदा देखने को मिलता है हूयम को कू्रर शासक माना जाता है इसमे कोई दो राय नही है लेकिन हूयूम ने इटावा मे यह जरूर पा लिया था अगर इन लोगो पर शासन करना तो क्रूरता के बजाये नम्रता का भाव प्रदर्शित करना पडेगा और हयूम ने किया भी वही लेकिन हयूम की यही नम्रता हयूम के लिये मुसीबत बन गई।
साल 1858 के मघ्य मे हयूम ने राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया,जिसका उददेश्य इटावा में शांति स्थापित करना था। अपने उददेश्य के मुताबिक इस सेना को यहां पर शांति स्थापित करने में काफी हद तक सफलता मिली थी। रक्षक सेना की सफलता को देखते हुये 28 दिसंबर 1885 को मुबंई में ब्रिटिश प्रशासक ए.ओ.हयूम ने काग्रेंस की नीवं डाली जो आज देश की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी हैं। इटावा में स्थानीय रक्षक सेना के गठन की भी बडी दिलचस्प कहानी है। 1856 में ए.ओ.हयूम इटावा के कलक्टर बन कर आये।
देश के प्रमुख राजनैतिक दल काग्रेंस की स्थापना उत्तर प्रदेश के इटावा में 1858 के मध्य में क्रांतिकारियों से निपटने के लिये गठित की गई रक्षक सेना की सफलता से प्ररित हो कर की गई थी। आजादी पूर्व इटावा के कलक्टर रहे काग्रेंस संस्थापक ए.ओ.हयूम ने इटावा में क्रांतिकारियों से निपटने में कामयाबी पाई। रक्षक सेना से प्रेरण लेकर 28 दिसंबर 1885 को बंबई में काग्रेंस की स्थापना अंग्रेज सरकार के लिये सेफ्टीवाल्व के रूप में की थी। फिर भी कांग्रेस के स्थानीय नेता विदेशी मूल की होने के बावजूद सोनिया गांधी को तो अपना सर्वोच्च नेता मानते हैं लेकिन ए ओ हयूम से कोई नाता नहीं जोड़ना चाहते।
ए.ओ.हयूम ने वर्ष 1885 में मुंबई में अखिल भारतीय काग्रेंस की नींव डाली परन्तु इटावा में इसका प्रभाव बहुत पहले ही देखने को मिलने लगा था। एक छोटे से पंडाल में एकत्रित होकर कभी कभी प्रस्ताव पास कर लेना इसका उददेश्य था।
इटावा में अपने कलक्टर कार्यकाल के दौरान हयूम ने अपने नाम के अग्रेंजी शब्द के एच.यू.एम.ई.के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी हयूम की दूरदर्शिता की याद दिलाते है लेकिन इटावा के काग्रेंसी किसी भी तरह का हयूम का महिमामंडन करने से परहेज करते हुये नजर आते है। भले ही इटावा के कांग्रेसी इस बात पर गर्व महसूस करते हो की हयूम को इटावा में कार्यकाल के दौरान इस तरह का इल्म हुआ की भारतीयो को एक तार में जोडने के इरादे से एक दल की जरूरत है लेकिन जब बात आती है कि उन्हे याद करने के सवाल पर तो इटावा के काग्रेसी एक दूसरे की ओर देखने लगते है। अब बदलते हुए दौर में इटावा के काग्रेंसियों का कोई गुरेज नहीं होगा कि ए.ओ.हयूम की कोई प्रतिमा या स्टेचू स्थापित किया जाये।
स्कॉटलैंड से चुने जाने वाले एक ब्रिटिश सांसद की संतान एलन ऑक्टेवियन ह्यूम 1857 के गदर के दौरान इटावा के कलेक्टर थे और वहां उनकी क्रूरता की कुछ कहानियां भी प्रचलित हैं। लेकिन बाद में उनकी पहचान एक अडियल घुमंतू पक्षी विज्ञानी और शौकिया कृषि विशेषज्ञ की बनी।
ए.ओ.ह्यूम भारत देश के अपमान से जुडा हुआ शब्द है इस लिये देश के काग्रेंसी उनसे नफरत करते है,आजादी के दौरान देश के स्वतंत्रता सेनानियों के नरसंहार के लिये हयूम को दोषी मानते हुये काग्रेंसी उनसे परहेज करते दिख रहे है। 1857 के गदर के दौरान हयूम अग्रेज शासक के साथ कू्रर तानाशाह के रूप मे सामने आ चुके है उनके कारनामे इतिहास के पन्नो मे दर्ज है इसलिये हयूम के कारानामो का ज्रिक करना उचित नही रहेगा।
हिंदु एजूकेशन सोसायटी इस बाबत बेहद खुश है क्यो कि वो काग्रेस सस्ंथापक निर्मित स्कूल की रखवाली करके अपने आप को अभीभूत महसूस करते है। इस सोसायटी के मौजूदा सचिव अतुल शर्मा का कहना है कि हयूम साहब ने स्कूल का निर्माण तो कराया लेकिन संचालन के लिये इस स्कूल को हिंदु एजूकेशन सोसायटी को ही बेच दिया करीब 40 हजार रूपये मे हयूम साहब ने इस स्कूल को बेचा और आज यह स्कूल सनातन धर्म इंटर कालेज के नाम से संचालित हो रहा है।
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को पक्षियो से खासा प्रेम काफी रहा है। इटावा मे अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर हयूम ने 165 से अधिक चिडियो का संकलन करके रखा था एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी। इसके अलावा कलक्टर आवास मे ही बरगद का पेड पर 35 प्रजाति की चिडिया हमेशा बनी रहती थी। साइवेरियन क्रेन को भी हयूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड मे देखे गये सारस क्रेन से भी लोगो को रूबर कराया था।
+ डा.राजीव चौहान,सचिव,सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर
15 अगस्त,1947 को जब देश आजाद हुआ था तब देश में विदेशी आक्रांताओ के खिलाफ जोरदारी के साथ माहौल बना हुआ था ऐसे में हयूम की कोई भी तस्वीर या फिर प्रतिमा की स्थापना देश हित में नहीं हो सकती थी इस लिये अपने संस्थापक की कोई भी प्रतिमा इटावा तो क्या देश किसी भी दूसरे हिस्से में स्थापित नहीं है लेकिन जब उनसे सोनिया के विदेशी होने के सिलसिले से जुडा हुआ सवाल किया गया तो वे सही ढंग से जबाब दे पाने की हालत में नही दिखे अलबत्ता वे इतना जरूर कहते है कि अगर अब हयूम की कोई तस्वीर या फिर प्रमिता की स्थापना की जाती है तो उन्हें क्या शायद किसी भी काग्रेंसी को कोई गुरेज नहीं होगा। इसके अलावा वो यह कहने से कतई नही चूकते है कि हयूम का इटावा के उत्थान मे किये गये योगदान को किसी भी सूरत मे भुलाया नही जा सकता है एक विदेशी होने के बावजूद हयूम के मन कही ना कही भारत प्रेम था।
+ सूरज सिंह यादव,वरिष्ठ काग्रेस नेता
ए.ओ.हयूम और इटावा का गहरा नाता रहा है और हमेशा रहेगा। हयूम के बारे मे हर कोई जानता है कि उन्होने इटावा मे ही काग्रेस की स्थापना का खाका खींच लिया था। आज भले ही इटावा को मुलायम सिंह यादव के जिले के रूप मे पहचाना जाता हो लेकिन हकीकत मे इटावा मुलायम का नही बल्कि हयूम का शहर है क्यो कि हयूम ही वो शख्स थे जो इटावा को वजूद मे लाये हयूम से पहले इटावा सिर्फ कागजो मे ही इटावा था धरातल पर इटावा बनाने का काम हयूम ने किया। कहा जाता है कि 1857 के गदर के बाद हयूम के मन मे यह बात घर कर गई कि प्रखर राष्ट्रवाद की जो आग सारे देश मे फैल गई है उसको बिना भारतीयो का साथ लेकर किसी भी सूरत मे कामयाबी नही पाई जा सकती है। तभी हयूम ने 1858 मे दुबारा अपनी तैनाती के दौरान स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया जिसके जरिये हयूम ने इटावा मे पनपे जनअसंतोष को शांत करने मे ना केवल कामयाबी पाई बल्कि अपने मिशन मे कामयाब भी हुआ और 1867 मे इटावा से हटने के बाद 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय यूनियन का गठन किया जो बाद मे इंडियन नेशनल काग्रेस के रूप मे तब्दील हो गई।
+ वाचस्पति द्विवेदी,प्रवक्ता,काग्रेस ईकाई,इटावा
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