रविवार, 25 दिसंबर 2011

आखिर दांव की ओर मुलायम के कदम


दिनेश शाक्य 
दांव तो सिर्फ दांव ही होता है जिसका इस्तेमाल हर मौके पर किया जा सकता है लेकिन राजनीति मे चलता है सबसे अधिक आखिर दांव। जिसे हर नेता अपने आप को सत्ता सीन होने की गरज से बार ऐसे ही दांव चलने का सिगुफा छोडता है जिसमे कुछ कामयाब होते है कुछ नाकामयाबी का दंश झेल करके आगे पीछे होते रहते है। साल 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव की तिथि का ऐलान कर दिया गया है उत्तर प्रदेश मे 5  राज्यों  के साथ ही चुनाव कराने का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न करवाये जाएंगे। पहले चरण के लिए अधिसूचना 10 जनवरी को जारी की जाएगी पहले चरण के लिए मतदान 4 फरवरी को संपन्न होगा। इसके बाद 8 फरवरी, 11 फरवरी, 15 फरवरी, 19, फरवरी, 23 फरवरी और 28 फरवरी को विभिन्न चरणों में मतदान करवाये जाएंगे। 
यह चुनाव कई राजनैतिक दलो के लिये आखिर दांव के माफिक होता हुआ नजर आ रहा है इस आखिर दांव मे सबसे बडा दांव लगा है मुख्यविपक्षी समाजवादी पार्टी का। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिये प्रभावी ढंग से संधर्षरत है लेकिन समाजवादी पार्टी मे हुये हालिया उठापटक के बाद सपा मे कई स्तर का संकट दिख रहा है। साल 2012 के विधानसभा मे चुनाव मे समाजवादी पार्टी को अपना वजूद बरकरार रखने का खतरा मडरा रहा है यह तभी संभव है जब समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश मे सरकार बने लेकिन आज के हालात इस बात की पुष्टि नही करती कि सपा की एक बार फिर से उत्तर प्रदेश मे सरकार बनने जा रही है। भले ही तमाम एक्जिट पोल समाजवादी पार्टी के पक्ष मे आकंडे सबसे बडे दल के रूप मे काबिज होने के दे रहे हो लेकिन ऐसी गिनती का कोई आकांडा सामने नही आ पा रहा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे सपा की सरकार उत्तर प्रदेश मे बनने का संकेत दे रहे हो। 
खेत खलिहान और किसानो के हिमायती समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के जीवन का करीब करीब यह ऐसा आखिर चुनाव माना जा सकता है जिसमे सपा कुछ कमाल करने का सपना संजो करके रखे हुये है। ऐसे मे क्या मुलायम सिंह यादव का यह सपना हकीकत मे अमली जामा पहन पायेगा या फिर सिर्फ सपना ही बन करके रह जायेगा। मुलायम सिंह यादव के सामने कई किस्म का संकट बताया जा रहा है एक बात सपा मे अभी तक सीटो का सही ढंग से बटबारा नही हो सका है रोज रोज किसी ना किसी प्रत्याशी को बदला जा रहा है इससे साफ हो रहा है कि सपा की टिकट वितरण प्रणाली मे कही ना कही लोच साफ समझ मे आ रही है तभी तो ऐसा माहौल देखा जा रहा है। 
समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का गांव इटावा से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है सैफई गांव। जहा के लोग मुलायम सिंह यादव से इस बाबत उम्मीद लगाये बैठे हुये है कि सपा की आने वाले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनेगी और गांव देहात और किसानो का भला होगा। मुलायम सिंह यादव से उम्र मे एक दो साल बडे सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह का कहना है कि मुलायम सिंह यादव किसान के बेटे है इस लिये वे किसानो की तकलीफो को भली भाति समझते है किसान इस समय बेहद परेशान है मायावती के राज मे किसानो की कोई मदद किसी भी स्तर पर नही हो रही हे चाहे उसे खाद की जरूरत हो या फिर बीज की। किसी भी चीज की भरपाई नही हो पा रही है ऐसे मे सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही उत्तर प्रदेश की बिगडी हुई किस्मत का सितारा बुलंद कर सकते है। मुलायम सिंह यादव के सहपाठी रहे दर्शन सिंह करीब 35 साल से सैफई से मुलायम सिंह यादव के प्रेम के चलते प्रधान बनते चले आ रहे है। मुलायम सिंह यादव की वजह से दर्शन सिंह के खिलाफ कोई भी आदमी चुनाव मैदान मे उतरने की हिम्मत नही कर पाता ऐसे मे दर्शन को प्रधान तो बनना ही होगा। किसी भी के लिये इतना सब कुछ करने वाले के लिये दुआ तो निकलेगी ही इसी लिये दर्शन सिंह भी मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का ताज पहनाने के लिये दुआ करने मे लगे है। 
2007 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता से मुलायम सिंह यादव बेदखल हो गये थे और मायावती की ताजपोशी होते ही मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई मे जारी विकास कार्य को विराम लग गया। यहा पर कई करोड की लागत से बन रहा है मल्टी परपच स्टेडियम,सैफई हवाई अडडे,इटावा मैनपुरी रेल परियोजना और किसानो को रोजगार देने की नीयत से बनाया जा रहा दुग्ध विकास केंद्र का निर्माण अधर मे लटक गया है। इसी इलाके के कुइया गांव के प्रधान चंदगीराम का मानना है कि मुलायम सिंह यादव की जब तब ताज पोशी नही होती तब यह विकास योजनाये ठप ही पडी रहेगी और मुलायम की वापसी के बिना इनका कोई भी तारणहार नही हो सकता है। इसलिये अब की बार मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री बने। यह तो रही मुलायम सिंह यादव के गांव के लोगो की ऐसा ही उनके जिले इटावा के लोगो का भी सोचना है। 
2012 के चुनाव मे जहा मे सत्तारूढ बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत का एहसास करने के लिये एक बार फिर से वापसी का सपना सजोये बैठी हुई है वही समाजवादी पार्टी बसपा को पद से हटाने के लिये संधर्षरत नजर आ रही है इसके लिये उनको पूरे उत्तर प्रदेश के दौरे पर अपने पिता के उस क्रांतिरथ को लेकर निकले हुये है जिससे 1989 मे मुलामय सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने मे कामयाबी पाई थी उसी तर्ज पर अखिलेश यादव को क्रांतिरथ सौपा गया है। जो अब तक करीब करीब पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा सत्ता हासिल करने के लिये कर चुके है उनके मुकाबले काग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी उनके ही आगे पीछे यात्राये करने मे लगे हुये है। दोनो युवाओ के बीच इस बात की भी र्स्पधा बनी हुई है कि अपने अपने दल का जनाधार बढा करके अपने अपने दल को मजूबती प्रदान करना।
मुलायम सिंह यादव के प्रभाव वाले मध्य उत्तर प्रदेश मे सपा कई किस्म के संकटो के दौर से गुजर रही है जहा मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी मे उनकी समधिन उर्मिला यादव ने बगाबत कर दी है वो काग्रेस मे आकर इसी क्षेत्र के करहल विधानसभा से सपा को ही चुनौती देने के लिये अखाडे मे कूद चुकी है उर्मिला यादव धिरोर विधानसभा से 1992 और 1997 मे सपा से एमएलए रह चुकी है। इसके अलावा एटा संसदीय इलाके के पूर्व सपा सांसद देवेंद्र यादव भी ताल ठोक करके बसपा मे जाने के बाद एक बार फिर से नये दल काग्रेंस मे चले गये है। 24 दिसबंर को देवेंद्र के कद को नापने के लिये काग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कासगंज मे काग्रेस की रैली करा के देवेंद्र की ताकत को नाप गये सबसे हैरत की बात है कि रैली से पहले ही देवेंद्र की विवाहित बेटी बासु यादव को पटियाली विधानसभा का टिकट भी दे डाला गया है। 
2009 के संसदीय चुनाव मे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के मेहबरबानी के चलते राममंदिर आंदोलन के कभी नायक रहे कल्याण सिंह एटा सांसद बन चुके है। इस सीट से कल्याण को जितवाने के लिये मुलायम सिंह यादव ने अपने दल के प्रत्याशी को चुनाव मैदान मे नही उतारा था। मुलायम सिंह यादव के सहयोग से सांसद बनने के बाद दोनो के बीच अमर सिंह के बयानो के बाद बेहद कटुता आ हो गई है। कल्याण के विकल्प के रूप मे मुलायम अपने पुराने साथी मुस्लिम नेता आजम खा को वापस ले आये है जिन पर सपा के मजबूत वोट बैंक को एक जुट करने का दारोमदार है। 
बात कर लेते है फिरोजाबाद संसदीय सीट से पार्टी के कद्दावर लोगों को जनता की अदालत में खड़ा करने की बजाय जिस प्रकार से उन्होंने अपनी कुल वधु पर दांव खेला जिसमे घर की बहू डिंपल यादव की हार के बाद तो वास्तविकता में मुलायम अपना आत्मसम्मान ही खो बैठे और इसकी बजह साफ है कि मुलायम के परिवार की यह पहली घटना है कि वर्चस्व बनाने के बाद मुलायम परिवार का कोई सदस्य पहली मर्तवा जनता की अदालत में अपने ही परिवार के उस सदस्य के सामने बौना साबित हुआ, जिसने राजनीति के गुर उन्हीं सपा मुखिया से सीखे थे।  अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की हार ने आज मुलायम को तोड़ दिया हैं हालांकि अब वह इससे निजात पाने की मुहिम छेड़ना चाहते हैं परंतु शायद अब उनके तरकस में वह तीर नहीं रह गए जिनकी बिना पर वे अपने रूठों को मना सके और पार्टी की मुख्य धारा से जोड़ सकें। 
मुलायम सिंह यादव एक बार नहीं तीन-तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इतना ही नहीं मुलायम केंद्र में एच.डी. देवेगौडा और इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्व काल में देश के रक्षा मंत्री भी रहे। मुलायम जिस राजनीति को साधते हुये कांग्रेस के दरवाजे पर पहुँचे हैं, असल में वह राजनीति देश में उस वक्त की पहचान है, ऐसे में मुलायम की लोहिया से सोनिया के दरवाजे तक की यात्रा के मर्म को समझना होगा। यहां पर इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि काग्रेंस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मुददे को जितना देश के दूसरे नेताओ ने नहीं उछाला हेगा उससे कहीं अधिक मुलायम सिंह यादव ने उछाल कर एक खाई पैदा कर ली थी एक समय तो ऐसा लगता था कि जैसे मुलायम सिंह यादव से बडा कोई दूसरा राजनैतिक दुश्मन सोनिया गांधी नहीं होगा लेकिन मुलायम सिंह यादव के इस गुस्से का शायद बदला सोनिया गांघी ने परमाणु मुददे पर कांग्रेस के लिये सपा से समर्थन लेकर मुलायम सिंह यादव को ठेंगा दिया। 
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी का उदय कांग्रेस के विरोध की राजनीति के साथ शुरू हुआ था परंतु जिस प्रकार से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस की जड़ों को खोखला कर दिया था कमोवेश उसी तरीके से जुलाई 2009 में परमाणु करार के मुद्दे पर केन्द्र सरकार बचा कर एक बार फिर से राजनैतिक एंव ऐतिहासिक भूल कर डाली ,इस भूल ने मुलायम को वामपंथियों से दूर कर दिया,यह भूलें यहीं पर थम जाती तब भी ठीक था। मुलायम सिंह यादव काग्रेंस को अपना खास समझने लगे कि 2009 के संसदीय चुनाव में फिर चुनावी खाका बना डाला,मुलायम को अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब आखिरी दौर में काग्रेंस के युवराज राहुल गांधी ने गठबंधन की राजनीत बंद करने की घोषणा कर दी।
1997 मे मायावती ने राजनैतिक तौर पर मुलायम सिंह यादव को कमजोर करने की गरज से इटावा को बांट करके औरैया को जिले का दर्जा दिया था उसके बाद इस जिले मे भी सपा की हालत अच्छी नही मानी जा रही है मुलायम के सबसे खास रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धनीराम वर्मा अपने बेटे को नेता बनाने के चक्कर मे मुलायम सिंह से दूर जा चुके है। महेश वर्मा धनीराम वर्मा के बेटे है जो बसपा के चुनाव पर मुलायम के बेटे अखिलेश यादव से कन्नौज लोकसभा के चुनाव 2009 मे हारने के बाद औरैया जिले की बिधूना सीट पर हुये उपचुनाव मे महेश वर्मा बसपा से जीत पाकर एमएलए बन गये। इससे पहले महेश के पिता और मुलायम सिंह यादव के सबसे खास धनीराम वर्मा एमएलए थे।
मैनपुरी लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद है इस सीट पर किशनी विधानसभा से सपा की एमएमए संध्या  कठेरिया भी बागी हो कर बसपा मे जा चुकी है। मैनपुरी जिले की धिरोर विधानसभा को नये परिसीमन मे खत्म करके उसका आधा हिस्सा करहल और आधा फिरोजाबाद जिले की नवसृजित सीट सिरसागंज मे जोड दिया गया है। इस सीट से कभी एमएलए और मुलायम सरकार मे राजस्व मंत्री रहे बाबूराम यादव के बेटे अनिल यादव को भाजपा ने करहल से प्रत्याशी बना करके सपा के लिये मुश्किल खडी कर दी है। 
मुलायम सिंह यादव के गृहनगर इटावा मे भी सपा के दिन बेहतर नही कहे जा सकते है क्यो कि मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर से बसपा ने एक बागी सपाई मनीष यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। मनीष यादव परंपरागत सपाई है साल 2003 मे इनके भाई समाजवादी पार्टी की छात्र ईकाई के अध्यक्ष दलवीर सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी इस हत्या के बाद से मनीष यादव के खिलाफ कई अपराधिक मामले सपा सरकार मे दर्ज कराये गये परिणामस्वरूप मनीष ने बदले स्वरूप शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ चुनाव मैदान मे उतरने की मन बनाया तो मायावती ने उसे पूरा भी कर दिया। मनीष यादव कहते है कि मुलायम सिंह यादव का तिलस्म अब टूट रहा है पिछले साल हुये पंचायत चुनाव मे इसी इलाके से शिवपाल सिंह यादव का बेटा आदित्य यादव जिला पंचायत पद के लिये खडा हुआ था लेकिन मुलायम के तिलस्म के बाबजूद भी वो हार गया। इस लिये यह कहा जा सकता है कि मुलायम चूक गये है। 
इटावा सदर सीट से मुलायम सिंह यादव के सबसे खास और 2002 मे पहली बार जीते महेंद्र सिंह राजपूत 2007 के चुनाव मे सपा से जीते लेकिन उनका मन सपा नेताओ से उचट गया तो बसपा मे चले गये इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमे बसपा ने महेंद्र को उम्मीदवार बनाया और महेंद्र लगातार तीसरी बार जीत करके हैट्रिक कायम की। यह तो यह है मुलायम सिंह यादव के घर का हाल तो पूरे उत्तर प्रदेश का हाल खुद आंका जा सकता है। 
मुलायम ने अपने घर की सीट इटावा सदर से सपा को काबिज कराने के लिये अपने दल से दो बार के सांसद रहे रधुराज सिंह शाक्य पर दांव खेला है जो बसपा के महेंद्र सिंह राजपूत से मुकाबला करेगे। 
इस सबके बाबजूद सपा के छोटे बडे नेताओ को पूरा भरोसा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत ही नही मिलेगा बल्कि सपा सरकार बना करके एक नया आयाम कायम करेगी और माया के लूट राज से लोगो को राहत देगी। ऐसे मे यही कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव का आखिर दांव जरूर कामयाब होगा क्यो कि राजनैतिक विशेषज्ञ यह मानते है कि मायाराज मे जो कुछ भी काला सफेद हुआ लोगो ने देखा है उससे निजात दिलाने मे सपा ही कामयाब हो सकती है इसलिये जिस समय जनमत का दिन आयेगा उस दिन आम मतदाता मायाराज के कारनामो को ही मददेनजर रख करके मतदान करेगा।