सोमवार, 27 जून 2011

खंडित मूर्तियो की पूजा वाला गांव


दिनेश शाक्य
अगर  आप से  कहा जाये कि खंडित मूर्तियो की पूजा करोगे तो जाहिर है आप का जबाब हो नही लेकिन इटावा मे यमुना नदी के किनारे बसा गांव आसई देश दुनिया का एक ऐसा गांव माना जा सकता है जहां के वाशिंदे खंडित मूर्तियो की पूजा अर्चना करने मे ही खुश होते है। इस गांव के लोगो की श्रद्धा खंडित मूर्तियो से इस कदर है कि गांव वालो ने अपने घरो के बाहर तो इन मूर्तियो को स्थापित किया घरो के भीतर भी काबिज करने से नही चूके।
देश में इटावा जिले का आसई एकमात्र ऐसा गांव है जहां के वाशिंदे किसी मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं बल्कि हर घर में उनके आराध्य की मूर्तियां पाई जातीं हैं। घरों में प्रतिस्थापित यह मूर्तियां साधारण नहीं हैं अपितु दसवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य की बताई जातीं हैं। दुर्लभ पत्थरों से बनी यह मूर्तियों देश के पुराने इतिहास एवं सभ्यता की पहचान कराती हैं
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में काशी के बाद धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाने वाला एवं जैन दर्शन में काशी से भी श्रेष्ठ आसई क्षेत्र पूर्व की दस्यु गतिविधियों के बाद से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्शित नहीं कर पा रहा है।
जैन दर्शन के मुताबिक मुख्यालय से तकरीबन पंद्रह किमी दूर स्थित आसई क्षेत्र में जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने तकरीबन दो हजार साल से अधिक समय पूर्व दीक्षा ग्रहण करने के बाद इसी स्थान पर बर्शात का चातुर्मास व्यतीत किया था। तभी से यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया था। इसके अलावा तकरीबन दसवीं शताब्दी में राजा जयचंद्र ने आसई को अपने कन्नौज राज्य की उपनगरी के रूप में विकसित किया था और जैन दर्षन से प्रभावित राजा जयचंद्र ने अपने शासन के दौरान जैन धर्म के तमाम तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित कराई।
औरंगजेब ने जब धार्मिक स्थलों पर हमले किए तो यह क्षेत्र भी इस उसके हमलों से अछूता नहीं रहा। तमाम धर्मों से जुड़ी दुर्लभ मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया जो समय-समय पर इन क्षेत्रों में मिलती रहीं। अफसोस यह है कि आसई क्षेत्र में मिली तकरीबन पांच सैकड़ा मूर्तियों में से अब महज तकरीबन दर्जन भर मूर्तियां ही शेष रह गई है बीते कुछ वर्षों में जब दस्यु समस्या चरम पर थी और आसई में भय के चलते जब कोई घुस नहीं पाता था तभी मूर्तियों की तस्करी करने वाले लोग इन मूर्तियों को ले जाते रहे। अब यहां भगवान महावीर स्वामी सहित जैन धर्म के तीन तीर्थंकरों की खंडित मूर्तियों सहित कुछ अन्य मूर्ति ही रह गईं हैं। वह बताते हैं कि इन मूर्तियों को भी चोर ले जाते यदि इन मूर्तियों में चमत्कार नहीं होता। इन मूर्तियों को ले जाने के लिए चोरों ने मूर्तियों को उंट पर लाद भी लिया था मगर इन मूर्तियों में यकायक ही इतना अधिक बजन हो गया कि उन्हें ले जाना नामुमकिन रहा।
आसई गांव के प्रधान रवींद्र दीक्षित कहना है कि आदि काल से इस तरह की मूर्तियां निकल रही है और श्रद्धाभाव से लोगो ने अपने घरो मे लगा रखी है और पूजा करते है। उनका कहना है कि गांव पर कभी यमुना के बीहडो मे सक्रिय रहे कुख्यात डाकुओ का प्रभाव देखा जाता रहा है तभी तो एक समय करीब करीब पूरा गांव खाली हो गया था लेकिन जैसे जैसे पुलिस डाकुओ का खात्मा किया गांव वाले अपनी जमीनो और घरो की ओर वापस लौट आये इसी दरम्यान कुछ परिवार पूरी तरह से ही शहरो मे बस गये।
आसई निवासिनी विमला देवी बतातीं हैं कि उनके घर में स्थापित दसवीं शताब्दी की लंबोदर भगवान गणेष की मूर्ति पहले घर के बाहर ही स्थापित की गई थी परंतु लगभग एक दशक पूर्व मूर्ति चोर तस्कर गिरोह के लोग इस मूर्ति को चुरा ले गए परंतु यह मूर्ति अपने चमत्कार के कारण ही तस्कर इस मूर्ति को नहीं ले जा पाए। वह कहते हैं कि इस घटना के बाद से उन्होंने गणेश जी की मूर्ति को घर के अंदर ही स्थापित कर लिया। वह कहते हैं कि मूर्ति स्थापना के बाद से उनके घर में समृद्धि आई है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऐसा ही गांव की दूसरी महिलाये ओमकांती और शकुंतला भी मानती है उनका कहना है कि खंडित मूर्तियो की पूजा करने के बाबजूद आजतक कोई नुकसान नही हुआ बल्कि फायदा ही हो रहा है।