मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

सोनिया का आदर हयूम का अनादर


दिनेश शाक्य 
ए.ओ.हयूम और सोनिया गांधी, दोनों ऐसे विदेशी नाम हैं, जिनका कांग्रेस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। ए.ओ.हयूम जंहा काग्रेस के संस्थापक है और सोनिया गांधी काग्रेस की अध्यक्ष है। लेकिन, जहां एक ओर विदेशी मूल की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांघी को कांग्रेसी स्वीकार कर चुके हैं, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के संस्थापक ए. ओ. हयूम से कांग्रेसियों को गुरेज है। 
दो-तीन पार्टियों को छोड़कर दुनिया में शायद ही किसी राजनीतिक पार्टी को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जितनी लंबी जिंदगी नसीब हुई हो। देश की परिस्थितियां इतनी बदल चुकी है कि 28 दिसंबर 1885 और 28 दिसंबर 2011 के बीच एक भी साझा बात खोजना असंभव लगता है लेकिन कांग्रेस में कुछ साझा बातें सहज ही देखी जा सकती हैं। करीब 126 साल पहले इस पार्टी के केंद्र में थियोसॉफिकल सोसाइटी से जुड़े एक अनोखे यूरोपीय व्यक्तित्व ए.ओ.हयूम थे,जबकि आज इसके केंद्र में यूरोपीय मूल की एक अन्य व्यक्तित्व सोनिया गांधी हैं।
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम ! एक ऐसा नाम है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उसने गुलामी के दौर मे अपने अंदाज मे ना केवल जिंदगी को जिया बल्कि अपनी सूझबूझ से देश को काग्रेस के रूप मे एक ऐसा नाम दिया जो आज देश की तस्वीर और तदवीर बन गया है। 
4 फरवरी 1856 को इटावा के कलक्टर के रूप मे ए.ओ.हयूम की तैनाती अग्रेज सरकार की ओर से की गई। हयूम की एक अग्रेज अफसर के तौर पर कलक्टर के रूप मे पहली तैनाती है।
ए.ओ.हयूम  इटावा मे अपने कार्यकाल के दौरान 1867 तक तैनात रहे। आते ही हयूम ने अपनी कार्यक्षमता का परिचय देना शुरू कर दिया। 16 जून 1856 को हयूम ने इटावा के लोगो की जनस्वास्थ्य सुविधाओ को मददेनजर रखते हुये मुख्यालय पर एक सरकारी अस्पताल का निर्माण कराया तथा स्थानीय लोगो की मदद से हयूम ने खुद के अंश से 32 स्कूलो को निर्माण कराया जिसमे 5683 बालक बालिका अध्ययनरत रहे खास बात यह है कि उस वक्त बालिका शिक्षा का जोर ना के बराबर रहा होगा तभी तो सिर्फ 2 ही बालिका अध्ययन के लिये सामने आई। 
हयूम ने इटावा को एक बडा व्यापारिक केंद्र बनाने का निर्णय लेते हुये अपने ही नाम के उपनाम हयूम से हयूमगंज की स्थापना करके हाट बाजार खुलवाया जो आज बदलते समय मे होमगंज के रूप मे बडा व्यापारिक केंद्र बन गया है।
हयूम ने अपने कार्यकाल के दौरान इटावा शहर मे मैट्रिक शिक्षा के उत्थान की दिशा मे काम करना शुरू किया। जिस स्कूल का निर्माण हयूम ने 17500 की रकम के जरिये कराया वो 22 जनवरी 1861 को बन कर के तैयार हुआ और हूयम ने इसको नाम दिया हयूम एजोकेशन स्कूल। इस स्कूल के निर्माण की सबसे खास बात यह रही कि हयूम के प्रथमाअक्षर एच शब्द के आकार का रूप दिया गया। आज इस स्कूल का संचालन इटावा की हिंदू एजूकेशलन सोसाइटी सनातन धर्म इंटर कालेज के रूप मे कर रही है। 
हयूम ने इटावा मे गुलामी के दौर मे अग्रेजो के लिये एक प्रार्थना स्थल चर्च का निर्माण कराया उसके पास ही इटावा क्लब की स्थापना इसलिये कराई ताकि बाहर से आने वाले मेहमानो को रूकवाया जा सके क्यो कि इससे पहले कोई दूसरा ऐसा स्थान नही था जहा पर मेहमानो को रूकवाया जा सके। सिंतबर 1944 को हुई जोरदार वारिस मे यह भवन धरासाई हो गया जिसे नंबवर 1946 मे पैतीस हजार रूपये खर्च करके पुननिर्मित कराया गया था। 
1857 के गदर के बाद इटावा मे हयूम ने एक शासक के तौर पर जो कठिनाईया आम लोगो को देखी उसको जोडते हुये 27 मार्च 1861 को भारतीयो के पक्ष मे जो रिपोर्ट  अग्रेज सरकार को भेजी उससे हूयूम के लिये अग्रेज सरकार ने नाक भौह तान ली और हयूम को तत्काल बीमारी की छुटटी नाम पर ब्रिटेन भेज दिया। एक नंबवर 1861 को हूयूम ने अपनी रिर्पोट को लेकर अग्रेज सरकार ने माफी मागी तो 14 फरवरी 1963 को पुनः इटावा के कलक्टर के रूप मे तैनात कर दी गई। 
हूयूम को अग्रेज अफसर के रूप मे माना जाता है जिसने अपने समय से पहले बहुत आगे के बारे मे ना केवल सोचा बल्कि उस पर काम भी किया। वैसे तो इटावा का वजूद हयूम के यहा आने से पहले ही हो गया था लेकिन हूयूम ने जो कुछ दिया उसके कोई दूसरी मिसाल देखने को कही भी नही मिलती एक अग्रेज अफसर होने के बावजूद भी हूयूम का यही इटावाप्रेम हूयूम के लिये मुसीबत का कारण बना।
हयूम ने गुलामी के दौर मे इटावा को जो कुछ दिया उसकी अस्क आज भी बाकायदा देखने को मिलता है हूयम को कू्रर शासक माना जाता है इसमे कोई दो राय नही है लेकिन हूयूम ने इटावा मे यह जरूर पा लिया था अगर इन लोगो पर शासन करना तो क्रूरता के बजाये नम्रता का भाव प्रदर्शित करना पडेगा और हयूम ने किया भी वही लेकिन हयूम की यही नम्रता हयूम के लिये मुसीबत बन गई। 
साल 1858 के मघ्य मे हयूम ने  राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया,जिसका उददेश्य इटावा में शांति स्थापित करना था। अपने उददेश्य के मुताबिक इस सेना को यहां पर शांति स्थापित करने में काफी हद तक सफलता मिली थी। रक्षक सेना की सफलता को देखते हुये 28 दिसंबर 1885 को मुबंई में ब्रिटिश प्रशासक ए.ओ.हयूम ने काग्रेंस की नीवं डाली जो आज देश की एक प्रमुख राजनैतिक पार्टी हैं। इटावा में स्थानीय रक्षक सेना के गठन की भी बडी दिलचस्प कहानी है। 1856 में ए.ओ.हयूम इटावा के कलक्टर बन कर आये। 
देश के प्रमुख राजनैतिक दल काग्रेंस की स्थापना उत्तर प्रदेश के इटावा में 1858 के मध्य में क्रांतिकारियों से निपटने के लिये गठित की गई रक्षक सेना की सफलता से प्ररित हो कर की गई थी। आजादी पूर्व इटावा के कलक्टर रहे काग्रेंस संस्थापक ए.ओ.हयूम ने इटावा में क्रांतिकारियों से निपटने में कामयाबी पाई। रक्षक सेना से प्रेरण लेकर 28 दिसंबर 1885 को बंबई में काग्रेंस की स्थापना अंग्रेज सरकार के लिये सेफ्टीवाल्व के रूप में की थी। फिर भी कांग्रेस के स्थानीय नेता विदेशी मूल की होने के बावजूद सोनिया गांधी को तो अपना सर्वोच्च नेता मानते हैं लेकिन ए ओ हयूम से कोई नाता नहीं जोड़ना चाहते। 
ए.ओ.हयूम ने वर्ष 1885 में मुंबई में अखिल भारतीय काग्रेंस की नींव डाली परन्तु इटावा में इसका प्रभाव बहुत पहले ही देखने को मिलने लगा था। एक छोटे से पंडाल में एकत्रित होकर कभी कभी प्रस्ताव पास कर लेना इसका उददेश्य था।
इटावा में अपने कलक्टर कार्यकाल के दौरान हयूम ने अपने नाम के अग्रेंजी शब्द के एच.यू.एम.ई.के रूप में चार इमारतों का निर्माण कराया जो आज भी हयूम की दूरदर्शिता की याद दिलाते है लेकिन इटावा के काग्रेंसी किसी भी तरह का हयूम का महिमामंडन करने से परहेज करते हुये नजर आते है।  भले ही इटावा के कांग्रेसी इस बात पर गर्व महसूस करते हो की हयूम को इटावा में कार्यकाल के दौरान इस तरह का इल्म हुआ की भारतीयो को एक तार में जोडने के इरादे से एक दल की जरूरत है लेकिन जब बात आती है कि उन्हे याद करने के सवाल पर तो इटावा के काग्रेसी एक दूसरे की ओर देखने लगते है। अब बदलते हुए दौर में इटावा के काग्रेंसियों का कोई गुरेज नहीं होगा कि ए.ओ.हयूम की कोई प्रतिमा या स्टेचू स्थापित किया जाये।
स्कॉटलैंड से चुने जाने वाले एक ब्रिटिश सांसद की संतान एलन ऑक्टेवियन ह्यूम 1857 के गदर के दौरान इटावा के कलेक्टर थे और वहां उनकी क्रूरता की कुछ कहानियां भी प्रचलित हैं। लेकिन बाद में उनकी पहचान एक अडियल घुमंतू पक्षी विज्ञानी और शौकिया कृषि विशेषज्ञ की बनी। 
ए.ओ.ह्यूम भारत देश के अपमान से जुडा हुआ शब्द है इस लिये देश के काग्रेंसी उनसे नफरत करते है,आजादी के दौरान देश के स्वतंत्रता सेनानियों के नरसंहार के लिये हयूम को दोषी मानते हुये काग्रेंसी उनसे परहेज करते दिख रहे है। 1857 के गदर के दौरान हयूम अग्रेज शासक के साथ कू्रर तानाशाह के रूप मे सामने आ चुके है उनके कारनामे इतिहास के पन्नो मे दर्ज है इसलिये हयूम के कारानामो का ज्रिक करना उचित नही रहेगा।
हिंदु एजूकेशन सोसायटी इस बाबत बेहद खुश है क्यो कि वो काग्रेस सस्ंथापक निर्मित स्कूल की रखवाली करके अपने आप को अभीभूत महसूस करते है।  इस सोसायटी के मौजूदा सचिव अतुल शर्मा का कहना है कि हयूम साहब ने स्कूल का निर्माण तो कराया लेकिन संचालन के लिये इस स्कूल को हिंदु एजूकेशन सोसायटी को ही बेच दिया करीब 40 हजार रूपये मे हयूम साहब ने इस स्कूल को बेचा और आज यह स्कूल सनातन धर्म इंटर कालेज के नाम से संचालित हो रहा है। 
एलन ऑक्टेवियन हयूम यानि ए.ओ.हयूम को पक्षियो से खासा प्रेम काफी रहा है। इटावा मे अपनी तैनाती के दौरान अपने आवास पर हयूम ने 165 से अधिक चिडियो का संकलन करके रखा था एक आवास की छत ढहने से सभी की मौत हो गई थी। इसके अलावा कलक्टर आवास मे ही बरगद का पेड पर 35 प्रजाति की चिडिया हमेशा बनी रहती थी। साइवेरियन क्रेन को भी हयूम ने सबसे पहले इटावा के उत्तर सीमा पर बसे सोंज बैंडलैंड मे देखे गये सारस क्रेन से भी लोगो को रूबर कराया था। 
+ डा.राजीव चौहान,सचिव,सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर
15 अगस्त,1947 को जब देश आजाद हुआ था तब देश में विदेशी आक्रांताओ के खिलाफ जोरदारी के साथ माहौल बना हुआ था ऐसे में हयूम की कोई भी तस्वीर या फिर प्रतिमा की स्थापना देश हित में नहीं हो सकती थी इस लिये अपने संस्थापक की कोई भी प्रतिमा इटावा तो क्या देश किसी भी दूसरे हिस्से में स्थापित नहीं है लेकिन जब उनसे सोनिया के विदेशी होने के सिलसिले से जुडा हुआ सवाल किया गया तो वे सही ढंग से जबाब दे पाने की हालत में नही  दिखे अलबत्ता वे इतना जरूर कहते है कि अगर अब हयूम की कोई तस्वीर या फिर प्रमिता की स्थापना की जाती है तो उन्हें क्या शायद किसी भी काग्रेंसी को कोई गुरेज नहीं होगा। इसके अलावा वो यह कहने से कतई नही चूकते है कि हयूम का इटावा के उत्थान मे किये गये योगदान को किसी भी सूरत मे भुलाया नही जा सकता है एक विदेशी होने के बावजूद हयूम के मन कही ना कही भारत प्रेम था। 
+ सूरज सिंह यादव,वरिष्ठ काग्रेस नेता
ए.ओ.हयूम और इटावा का गहरा नाता रहा है और हमेशा रहेगा। हयूम के बारे मे हर कोई जानता है कि उन्होने इटावा मे ही काग्रेस की स्थापना का खाका खींच लिया था। आज भले ही इटावा को मुलायम सिंह यादव के जिले के रूप मे पहचाना जाता हो लेकिन हकीकत मे इटावा मुलायम का नही बल्कि हयूम का शहर है क्यो कि हयूम ही वो शख्स थे जो इटावा को वजूद मे लाये हयूम से पहले इटावा सिर्फ कागजो मे ही इटावा था धरातल पर इटावा बनाने का काम हयूम ने किया। कहा जाता है कि 1857 के गदर के बाद हयूम के मन मे यह बात घर कर गई कि प्रखर राष्ट्रवाद की जो आग सारे देश मे फैल गई है उसको बिना भारतीयो का साथ लेकर किसी भी सूरत मे कामयाबी नही पाई जा सकती है। तभी हयूम ने 1858 मे दुबारा अपनी तैनाती के दौरान स्थानीय रक्षक सेना का गठन किया जिसके जरिये हयूम ने इटावा मे पनपे जनअसंतोष को शांत करने मे ना केवल कामयाबी पाई बल्कि अपने मिशन मे कामयाब भी हुआ और 1867 मे इटावा से हटने के बाद 1885 मे भारतीय राष्ट्रीय यूनियन का गठन किया जो बाद मे इंडियन नेशनल काग्रेस के रूप मे तब्दील हो गई। 
+ वाचस्पति द्विवेदी,प्रवक्ता,काग्रेस ईकाई,इटावा 

मौत की पटरियो से गुजरती रेलगाडिया


दिनेश शाक्य 
देश के सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिल्ली हावडा रेलमार्ग पर इन दिनो रेल यात्रियो की जान मुश्किल मे फंसी हुई नजर आ रही है रेल यात्रियो की जान मुश्किल मे फंसने की वजह मानी जा रही इस रेलवे मार्ग पर आये दिन रेल पटरियो का टूटना। लगातार टूट रही रेल पटरियो को लेकर अब रेल यात्रियो को रेल हादसो का खतरा सताने लगा है।
इटावा मे रेल पटरियो के टूटने के वाक्ये थमने का नाम नही ले रहे है। इटावा मे बलरई से लेकर साम्हो तक रेलमार्ग सबसे अधिक खतरे वाला माना जा रहा है क्यो कि सर्दी का मौसम अभी सही से शुरू भी नही हुआ और रेल पटरिया टूटना शुरू हो गयी है साल 2010 मे डाउन लाइन की करीब 60 से अधिक बार रेल पटरिया कई स्थानो पर टूटी थी। उसके बाद रेल विभाग ने प्रभावित समझे जाने वाली रेल पटरिया को बदल दिया था लेकिन इस बार आया है अप लाइन की रेल पटरियो पर कहर । 
रेलवे की तरफ से बताया जा रहा है कि इन पटरियो की मियाद 12 साल के करीब और 800 मिलियन जीएमटी तक का भार ढोने की होती है लेकिन यह पटरिया तो उससे भी अधिक भार ढो चुकी है।
इटावा के कर्मक्षेत्र पोस्ट ग्रेजुएट कालेज के फिजिक्स के रीडर डा0सतेंद्र कुमार सिंह का मानना है कि रेलवे ठेके प्रथा के तहत काम कर रहा है हो सकता है कि जो रेल पटरियो को पहले बिछाया गया रहा होगा उसकी क्वालिटी मानक के अनुरूप सही ना रही हो।
फतेहपुर मे कालका मेल हादसे के बाद कई यात्री रेल गाडियो के अलावा मालगाडिया दुर्घटनाग्रस्त हुई। इन हादसो के पीछे सबसे अहम बिंदु रेल पटरियो का या तो कमजोर होना या फिर क्षतिग्रस्त होना माना गया। खराब रेल पटरियो को लेकर रेलवे विभाग को काफी समय से चेताया जाता रहा है उसके बाद रेल विभाग ने खराब रेल पटरियो को दुरूस्त कराने के लिये रेल ग्रेडिंग मशीन को अमरीका से मंगवाया एक ऐसी ही मशीन देश से सबसे अहम माने जाने वाले रेलमार्ग पर दिल्ली हावडा पर कमजोर और क्षतिग्रस्त रेलपटरियो को दुरूस्त करवा दिया गया लेकिन अभी भी रेल पटरियो को टूटने से रोका नही जा सका है। 
वैसे तो रेल पटरियो को बहुत मजबूत माना जाता है लेकिन जब कोई रेल गाडी हादसे का शिकार होती है तो रेल पटरी ताश के पत्तो की भांति बिखर जाती है।
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर मे हुये कालका मेल हादसे के बाद भी रेल अमले की जांच मे यह बात सामने आई की रेल हादसा का कारण रेल पटरी का पहले से टूटा होना पाया गया उसके बाद इसी रेलवे रूट पर कई रेल हादसे पेश आये। 27 जुलाई को इटावा मे सराय भूपत के पास पैसेंजर रेल गाडी के पलटने को लेकर रेल पटरी ही क्षतिग्रस्त होना माना गया। पहले से ही रेल पटरियो के टूटने को लेकर मंथन मे जुटे रेल अमले ने आनन फानन मे अमरीकन रेल ग्रेडिंग मशीन को मंगवा कर कमजोर पटरियो को खोजने का काम शुरू कर दिया है।
रेलवे अफसरो के अनुसार फिलहाल अभी देश मे सिर्फ दो ही ऐसी मशीन आई है जो कमजोर रेल पटरियो को खोजने का काम कर रही है। जिनमे एक देश की सबसे अहम रेलवे रूट दिल्ली हावडा पर कमजोर पटरियो को खोज रही है। इस मशीन की खासियत यह है यह मशीन पूरी की पूरी कम्प्यूटरीकृत है जिसमे सब कुछ आन स्क्रीन ही होता है। इटावा और इटावा के आसपास रेल पटरियो को दुरूस्त करने का काम करने मे लगी हुई यह मशीन दिल्ली हावडा रेल मार्ग पर अब तक करीब 700 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी है। इस मशीन मे आगे और पीछे कई कैमरे लगे हुये है। यह मशीन लुधियाना से हावडा तक की रेलवे पटरियो को जांचने का काम कर चुकी है। 
बताते चले कि इटावा मे करीब 60 किलोमीटर के दायरे मे सर्दी के मौसम से लेकर अब तक करीब 100 से अधिक जगह पर रेल पटरियो को टूटने के मामले सामने आ चुके है जिसके बाद से लगातार रेल पटरियो को बदलने की मांग कई बार होती रही है। 

रविवार, 25 दिसंबर 2011

आखिर दांव की ओर मुलायम के कदम


दिनेश शाक्य 
दांव तो सिर्फ दांव ही होता है जिसका इस्तेमाल हर मौके पर किया जा सकता है लेकिन राजनीति मे चलता है सबसे अधिक आखिर दांव। जिसे हर नेता अपने आप को सत्ता सीन होने की गरज से बार ऐसे ही दांव चलने का सिगुफा छोडता है जिसमे कुछ कामयाब होते है कुछ नाकामयाबी का दंश झेल करके आगे पीछे होते रहते है। साल 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव की तिथि का ऐलान कर दिया गया है उत्तर प्रदेश मे 5  राज्यों  के साथ ही चुनाव कराने का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सात चरणों में संपन्न करवाये जाएंगे। पहले चरण के लिए अधिसूचना 10 जनवरी को जारी की जाएगी पहले चरण के लिए मतदान 4 फरवरी को संपन्न होगा। इसके बाद 8 फरवरी, 11 फरवरी, 15 फरवरी, 19, फरवरी, 23 फरवरी और 28 फरवरी को विभिन्न चरणों में मतदान करवाये जाएंगे। 
यह चुनाव कई राजनैतिक दलो के लिये आखिर दांव के माफिक होता हुआ नजर आ रहा है इस आखिर दांव मे सबसे बडा दांव लगा है मुख्यविपक्षी समाजवादी पार्टी का। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने के लिये प्रभावी ढंग से संधर्षरत है लेकिन समाजवादी पार्टी मे हुये हालिया उठापटक के बाद सपा मे कई स्तर का संकट दिख रहा है। साल 2012 के विधानसभा मे चुनाव मे समाजवादी पार्टी को अपना वजूद बरकरार रखने का खतरा मडरा रहा है यह तभी संभव है जब समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश मे सरकार बने लेकिन आज के हालात इस बात की पुष्टि नही करती कि सपा की एक बार फिर से उत्तर प्रदेश मे सरकार बनने जा रही है। भले ही तमाम एक्जिट पोल समाजवादी पार्टी के पक्ष मे आकंडे सबसे बडे दल के रूप मे काबिज होने के दे रहे हो लेकिन ऐसी गिनती का कोई आकांडा सामने नही आ पा रहा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे सपा की सरकार उत्तर प्रदेश मे बनने का संकेत दे रहे हो। 
खेत खलिहान और किसानो के हिमायती समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव के जीवन का करीब करीब यह ऐसा आखिर चुनाव माना जा सकता है जिसमे सपा कुछ कमाल करने का सपना संजो करके रखे हुये है। ऐसे मे क्या मुलायम सिंह यादव का यह सपना हकीकत मे अमली जामा पहन पायेगा या फिर सिर्फ सपना ही बन करके रह जायेगा। मुलायम सिंह यादव के सामने कई किस्म का संकट बताया जा रहा है एक बात सपा मे अभी तक सीटो का सही ढंग से बटबारा नही हो सका है रोज रोज किसी ना किसी प्रत्याशी को बदला जा रहा है इससे साफ हो रहा है कि सपा की टिकट वितरण प्रणाली मे कही ना कही लोच साफ समझ मे आ रही है तभी तो ऐसा माहौल देखा जा रहा है। 
समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव का गांव इटावा से करीब 22 किलोमीटर दूरी पर स्थित है सैफई गांव। जहा के लोग मुलायम सिंह यादव से इस बाबत उम्मीद लगाये बैठे हुये है कि सपा की आने वाले विधानसभा चुनाव मे सरकार बनेगी और गांव देहात और किसानो का भला होगा। मुलायम सिंह यादव से उम्र मे एक दो साल बडे सैफई गांव के प्रधान दर्शन सिंह का कहना है कि मुलायम सिंह यादव किसान के बेटे है इस लिये वे किसानो की तकलीफो को भली भाति समझते है किसान इस समय बेहद परेशान है मायावती के राज मे किसानो की कोई मदद किसी भी स्तर पर नही हो रही हे चाहे उसे खाद की जरूरत हो या फिर बीज की। किसी भी चीज की भरपाई नही हो पा रही है ऐसे मे सिर्फ मुलायम सिंह यादव ही उत्तर प्रदेश की बिगडी हुई किस्मत का सितारा बुलंद कर सकते है। मुलायम सिंह यादव के सहपाठी रहे दर्शन सिंह करीब 35 साल से सैफई से मुलायम सिंह यादव के प्रेम के चलते प्रधान बनते चले आ रहे है। मुलायम सिंह यादव की वजह से दर्शन सिंह के खिलाफ कोई भी आदमी चुनाव मैदान मे उतरने की हिम्मत नही कर पाता ऐसे मे दर्शन को प्रधान तो बनना ही होगा। किसी भी के लिये इतना सब कुछ करने वाले के लिये दुआ तो निकलेगी ही इसी लिये दर्शन सिंह भी मुलायम सिंह यादव को उत्तर प्रदेश का ताज पहनाने के लिये दुआ करने मे लगे है। 
2007 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता से मुलायम सिंह यादव बेदखल हो गये थे और मायावती की ताजपोशी होते ही मुलायम सिंह यादव के गांव सैफई मे जारी विकास कार्य को विराम लग गया। यहा पर कई करोड की लागत से बन रहा है मल्टी परपच स्टेडियम,सैफई हवाई अडडे,इटावा मैनपुरी रेल परियोजना और किसानो को रोजगार देने की नीयत से बनाया जा रहा दुग्ध विकास केंद्र का निर्माण अधर मे लटक गया है। इसी इलाके के कुइया गांव के प्रधान चंदगीराम का मानना है कि मुलायम सिंह यादव की जब तब ताज पोशी नही होती तब यह विकास योजनाये ठप ही पडी रहेगी और मुलायम की वापसी के बिना इनका कोई भी तारणहार नही हो सकता है। इसलिये अब की बार मुलायम सिंह यादव ही मुख्यमंत्री बने। यह तो रही मुलायम सिंह यादव के गांव के लोगो की ऐसा ही उनके जिले इटावा के लोगो का भी सोचना है। 
2012 के चुनाव मे जहा मे सत्तारूढ बहुजन समाज पार्टी अपनी ताकत का एहसास करने के लिये एक बार फिर से वापसी का सपना सजोये बैठी हुई है वही समाजवादी पार्टी बसपा को पद से हटाने के लिये संधर्षरत नजर आ रही है इसके लिये उनको पूरे उत्तर प्रदेश के दौरे पर अपने पिता के उस क्रांतिरथ को लेकर निकले हुये है जिससे 1989 मे मुलामय सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने मे कामयाबी पाई थी उसी तर्ज पर अखिलेश यादव को क्रांतिरथ सौपा गया है। जो अब तक करीब करीब पूरे उत्तर प्रदेश का दौरा सत्ता हासिल करने के लिये कर चुके है उनके मुकाबले काग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी उनके ही आगे पीछे यात्राये करने मे लगे हुये है। दोनो युवाओ के बीच इस बात की भी र्स्पधा बनी हुई है कि अपने अपने दल का जनाधार बढा करके अपने अपने दल को मजूबती प्रदान करना।
मुलायम सिंह यादव के प्रभाव वाले मध्य उत्तर प्रदेश मे सपा कई किस्म के संकटो के दौर से गुजर रही है जहा मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी मे उनकी समधिन उर्मिला यादव ने बगाबत कर दी है वो काग्रेस मे आकर इसी क्षेत्र के करहल विधानसभा से सपा को ही चुनौती देने के लिये अखाडे मे कूद चुकी है उर्मिला यादव धिरोर विधानसभा से 1992 और 1997 मे सपा से एमएलए रह चुकी है। इसके अलावा एटा संसदीय इलाके के पूर्व सपा सांसद देवेंद्र यादव भी ताल ठोक करके बसपा मे जाने के बाद एक बार फिर से नये दल काग्रेंस मे चले गये है। 24 दिसबंर को देवेंद्र के कद को नापने के लिये काग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने कासगंज मे काग्रेस की रैली करा के देवेंद्र की ताकत को नाप गये सबसे हैरत की बात है कि रैली से पहले ही देवेंद्र की विवाहित बेटी बासु यादव को पटियाली विधानसभा का टिकट भी दे डाला गया है। 
2009 के संसदीय चुनाव मे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के मेहबरबानी के चलते राममंदिर आंदोलन के कभी नायक रहे कल्याण सिंह एटा सांसद बन चुके है। इस सीट से कल्याण को जितवाने के लिये मुलायम सिंह यादव ने अपने दल के प्रत्याशी को चुनाव मैदान मे नही उतारा था। मुलायम सिंह यादव के सहयोग से सांसद बनने के बाद दोनो के बीच अमर सिंह के बयानो के बाद बेहद कटुता आ हो गई है। कल्याण के विकल्प के रूप मे मुलायम अपने पुराने साथी मुस्लिम नेता आजम खा को वापस ले आये है जिन पर सपा के मजबूत वोट बैंक को एक जुट करने का दारोमदार है। 
बात कर लेते है फिरोजाबाद संसदीय सीट से पार्टी के कद्दावर लोगों को जनता की अदालत में खड़ा करने की बजाय जिस प्रकार से उन्होंने अपनी कुल वधु पर दांव खेला जिसमे घर की बहू डिंपल यादव की हार के बाद तो वास्तविकता में मुलायम अपना आत्मसम्मान ही खो बैठे और इसकी बजह साफ है कि मुलायम के परिवार की यह पहली घटना है कि वर्चस्व बनाने के बाद मुलायम परिवार का कोई सदस्य पहली मर्तवा जनता की अदालत में अपने ही परिवार के उस सदस्य के सामने बौना साबित हुआ, जिसने राजनीति के गुर उन्हीं सपा मुखिया से सीखे थे।  अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं की हार ने आज मुलायम को तोड़ दिया हैं हालांकि अब वह इससे निजात पाने की मुहिम छेड़ना चाहते हैं परंतु शायद अब उनके तरकस में वह तीर नहीं रह गए जिनकी बिना पर वे अपने रूठों को मना सके और पार्टी की मुख्य धारा से जोड़ सकें। 
मुलायम सिंह यादव एक बार नहीं तीन-तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इतना ही नहीं मुलायम केंद्र में एच.डी. देवेगौडा और इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्रित्व काल में देश के रक्षा मंत्री भी रहे। मुलायम जिस राजनीति को साधते हुये कांग्रेस के दरवाजे पर पहुँचे हैं, असल में वह राजनीति देश में उस वक्त की पहचान है, ऐसे में मुलायम की लोहिया से सोनिया के दरवाजे तक की यात्रा के मर्म को समझना होगा। यहां पर इस बात का भी जिक्र करना जरूरी है कि काग्रेंस अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मुददे को जितना देश के दूसरे नेताओ ने नहीं उछाला हेगा उससे कहीं अधिक मुलायम सिंह यादव ने उछाल कर एक खाई पैदा कर ली थी एक समय तो ऐसा लगता था कि जैसे मुलायम सिंह यादव से बडा कोई दूसरा राजनैतिक दुश्मन सोनिया गांधी नहीं होगा लेकिन मुलायम सिंह यादव के इस गुस्से का शायद बदला सोनिया गांघी ने परमाणु मुददे पर कांग्रेस के लिये सपा से समर्थन लेकर मुलायम सिंह यादव को ठेंगा दिया। 
मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी का उदय कांग्रेस के विरोध की राजनीति के साथ शुरू हुआ था परंतु जिस प्रकार से कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी ने सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस की जड़ों को खोखला कर दिया था कमोवेश उसी तरीके से जुलाई 2009 में परमाणु करार के मुद्दे पर केन्द्र सरकार बचा कर एक बार फिर से राजनैतिक एंव ऐतिहासिक भूल कर डाली ,इस भूल ने मुलायम को वामपंथियों से दूर कर दिया,यह भूलें यहीं पर थम जाती तब भी ठीक था। मुलायम सिंह यादव काग्रेंस को अपना खास समझने लगे कि 2009 के संसदीय चुनाव में फिर चुनावी खाका बना डाला,मुलायम को अपनी गलती का एहसास तब हुआ जब आखिरी दौर में काग्रेंस के युवराज राहुल गांधी ने गठबंधन की राजनीत बंद करने की घोषणा कर दी।
1997 मे मायावती ने राजनैतिक तौर पर मुलायम सिंह यादव को कमजोर करने की गरज से इटावा को बांट करके औरैया को जिले का दर्जा दिया था उसके बाद इस जिले मे भी सपा की हालत अच्छी नही मानी जा रही है मुलायम के सबसे खास रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष धनीराम वर्मा अपने बेटे को नेता बनाने के चक्कर मे मुलायम सिंह से दूर जा चुके है। महेश वर्मा धनीराम वर्मा के बेटे है जो बसपा के चुनाव पर मुलायम के बेटे अखिलेश यादव से कन्नौज लोकसभा के चुनाव 2009 मे हारने के बाद औरैया जिले की बिधूना सीट पर हुये उपचुनाव मे महेश वर्मा बसपा से जीत पाकर एमएलए बन गये। इससे पहले महेश के पिता और मुलायम सिंह यादव के सबसे खास धनीराम वर्मा एमएलए थे।
मैनपुरी लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद है इस सीट पर किशनी विधानसभा से सपा की एमएमए संध्या  कठेरिया भी बागी हो कर बसपा मे जा चुकी है। मैनपुरी जिले की धिरोर विधानसभा को नये परिसीमन मे खत्म करके उसका आधा हिस्सा करहल और आधा फिरोजाबाद जिले की नवसृजित सीट सिरसागंज मे जोड दिया गया है। इस सीट से कभी एमएलए और मुलायम सरकार मे राजस्व मंत्री रहे बाबूराम यादव के बेटे अनिल यादव को भाजपा ने करहल से प्रत्याशी बना करके सपा के लिये मुश्किल खडी कर दी है। 
मुलायम सिंह यादव के गृहनगर इटावा मे भी सपा के दिन बेहतर नही कहे जा सकते है क्यो कि मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर से बसपा ने एक बागी सपाई मनीष यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। मनीष यादव परंपरागत सपाई है साल 2003 मे इनके भाई समाजवादी पार्टी की छात्र ईकाई के अध्यक्ष दलवीर सिंह की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी इस हत्या के बाद से मनीष यादव के खिलाफ कई अपराधिक मामले सपा सरकार मे दर्ज कराये गये परिणामस्वरूप मनीष ने बदले स्वरूप शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ चुनाव मैदान मे उतरने की मन बनाया तो मायावती ने उसे पूरा भी कर दिया। मनीष यादव कहते है कि मुलायम सिंह यादव का तिलस्म अब टूट रहा है पिछले साल हुये पंचायत चुनाव मे इसी इलाके से शिवपाल सिंह यादव का बेटा आदित्य यादव जिला पंचायत पद के लिये खडा हुआ था लेकिन मुलायम के तिलस्म के बाबजूद भी वो हार गया। इस लिये यह कहा जा सकता है कि मुलायम चूक गये है। 
इटावा सदर सीट से मुलायम सिंह यादव के सबसे खास और 2002 मे पहली बार जीते महेंद्र सिंह राजपूत 2007 के चुनाव मे सपा से जीते लेकिन उनका मन सपा नेताओ से उचट गया तो बसपा मे चले गये इस सीट पर उपचुनाव हुआ जिसमे बसपा ने महेंद्र को उम्मीदवार बनाया और महेंद्र लगातार तीसरी बार जीत करके हैट्रिक कायम की। यह तो यह है मुलायम सिंह यादव के घर का हाल तो पूरे उत्तर प्रदेश का हाल खुद आंका जा सकता है। 
मुलायम ने अपने घर की सीट इटावा सदर से सपा को काबिज कराने के लिये अपने दल से दो बार के सांसद रहे रधुराज सिंह शाक्य पर दांव खेला है जो बसपा के महेंद्र सिंह राजपूत से मुकाबला करेगे। 
इस सबके बाबजूद सपा के छोटे बडे नेताओ को पूरा भरोसा है कि 2012 के विधानसभा चुनाव मे समाजवादी पार्टी को पूर्ण बहुमत ही नही मिलेगा बल्कि सपा सरकार बना करके एक नया आयाम कायम करेगी और माया के लूट राज से लोगो को राहत देगी। ऐसे मे यही कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव का आखिर दांव जरूर कामयाब होगा क्यो कि राजनैतिक विशेषज्ञ यह मानते है कि मायाराज मे जो कुछ भी काला सफेद हुआ लोगो ने देखा है उससे निजात दिलाने मे सपा ही कामयाब हो सकती है इसलिये जिस समय जनमत का दिन आयेगा उस दिन आम मतदाता मायाराज के कारनामो को ही मददेनजर रख करके मतदान करेगा।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

सब्जियो का राजा आलू बना राजनेताओ का मुददा



दिनेश शाक्य
सब्जियो के राजा आलू की बरबादी को लेकर देश भर का किसान जंहा एक ओर फूट फूट करके आंसू बहा कर दुखी है वही दूसरी ओर देश के राजनेता किसानो के दर्द मे उनके साथ खडे होने के बजाय आलू को राजनीति का मुख्यमुददा बनाये हुये है। 
काग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने भले ही खेतो मे फेंके जा चुके आलू की भारी खेप देखने के बाद  आलू की बरबादी पर चिंता जता करके किसानो की सहानुभूति बटोरने की कोशिश की लेकिन किसानो का दर्द किसी भी मायने मे कम नही हुआ है। वही दूसरी ओर राज्य की मुखिया मायावती आलू किसानो की बरबादी पर अपनी कडी प्रतिक्रिया देते हुये केंद्र की यूपीए सरकार को जिम्मेदार ठहराती है इस सबसे इतर समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव माया सरकार को आलू की बरबादी के लिये जिम्मेदार ठहराते है। ऐसे मे सिर्फ यही कहा जा सकता है कि किसानो की आलू बरबादी राजनेताओ को अपनी राजनीति चमकाने का मौका दे रही है। 
आलू उत्पादन में अग्रणी माना जाने वाले उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद में आलू किसानों की कमर तोड़ दी है। आलू उत्पादकों के साथ ही कोल्ड स्टोरेज संचालकों का भी दिवाला निकलता हुआ नजर आ रहा है। हजारों कुंटल आलू को कोल्ड स्टोरेज से निकाल कर बाहर फेंका जा रहा है। यह स्थिति स्वास्थय के नजरिए से भी समाज के लिए काफी घातक साबित होगी। दुर्भाग्य यह है कि अभी तक इन बदहाल आलू किसानों के बारे में न तो राज्य सरकार ने ही कोई विचार किया है और न ही केंद्र सरकार के पास ही इन गरीब किसानों के बारे में कोई योजना है।
इटावा जनपद में आलू किसानों की बदहाली की बजह ही आलू बन गया है। नए आलू की आवक ने शीतगृह में रखे पुराने आलू को सीधी चुनौती दी। परिणामस्वरूप बाजार में बिक रहे नए आलू की कीमत तीन रुपए प्रति किग्रा होने के कारण किसानों ने अपने पुराने आलू के बारे में सोचना ही छोड़ दिया। इसकी बजह है कि आगरा, कानपुर व लखनऊ जैसे महानगरों में भी पुराना आलू बीस रुपए प्रति पैकेट की दर से बिक रहा है। जबकि यदि किसान शीतगृह से अपना आलू निकालता है तो उसे एक सौ 25 रुपए प्रति पैकेट शीतगृह संचालकों को किराए के रूप में देना होगा। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट, वारदाना तथा मजदूरी अलग से। ऐसे में आलू किसानों ने अपना आलू शीतगृहों से नहीं निकालना ही मुनासिब समझा।
इस वर्ष किसान आलू उत्पादन करने के साथ से ही पछता रहे हैं। गत वर्ष आलू उत्पादन अच्छी तरह होने के कारण पहले जहां शीतगृह में आलू रखना इन किसानों के लिए एक चुनौती थी तो अब आलू निकालना उनके लिए आसान नहीं है। 
अब स्थिति ऐसी हो गई है कि आलू किसान अपने आलू को शीतगृहों से उठाने की स्थिति में नहीं है। इसकी बजह है कि बाजारों में आलू की कीमतों में रिकार्ड गिरावट माना जा रहा है। ऐसी स्थिति में शीतगृह संचालकों के पास भी शीतगृह खाली कराने के लिए अथवा आलू को सड़ने से बचाने के लिए पहले ही आलू फंेकना मजबूरी बन गया है। वर्तमान में हालात ऐसे हैं कि शीतगृहों के बाहर आलू के ढेरों के गुबार आसानी से देखे जा सकते हैं। ऐसे में गरीब तबके के लोग कई-कई किमी दूर से आलू बीनने के लिए आ रहे हैं और आलू ले जा रहे हैं परंतु आलू किसान अपने इस आलू को देख-देखकर रोने को बाध्य हैं।
कई शीतगृहो के संचालक राहुल गुप्ता कहना है  कि इस बार नए आलू की आवक जल्दी हो गई और उस पर भी आर्थिक मंदी का दंश। ऐसे में बेचारे आलू किसान अपना आलू जेब से खर्च कर कैसे निकालें। वह कहते हैं कि आलू की कीमतों में आई गिरावट के कारण शीतगृह संचालकों को भी भारी क्षति का सामना करना पड़ रहा है। वह बताते हैं कि इस वर्ष एक-एक शीतगृह संचालक को कम से कम एक करोड़ रूपए की क्षति का सामना करना पड़ेगा। इस प्रकार से आलू उत्पादन में जहां किसान बर्बाद हुआ है वहीं शीतगृह संचालकों का भी दिवाला निकला है।
समाजवादी पार्टी के एमएलए और उत्तर प्रदेश मे नेता प्रतिपक्ष शिवपाल सिंह यादव के निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर के सियाराम शीतगृह संचालक पंकज यादव बताते हैं कि यदि राज्य व केंद्र सरकार चाहे तो किसानों की दुखती रगों पर मुआवजे का मरहम लगा सकतीं हैं। हालांकि इसमें काफी देर हो गई है लेकिन अभी भी किसानों को राहत दी जा सकती है। वह बताते हैं कि पहले एक बार इसी प्रकार की स्थिति बनने पर राज्य सरकार ने शीतगृहों पर कैंप लगवा कर सौ रूपए प्रति कुंटल के हिसाब से आर्थिक सहायता दी थी।
आलू उत्पादन में किसानों एवं शीतगृह संचालकों को हुई आर्थिक क्षति के बाद अब लोगों के स्वास्थय पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं। शीतगृहों से निकाले गए आलू में सड़े आलू की मात्रा भी काफी है। ऐसे में आलू बीन रहे समीपवर्ती क्षेत्रों के लोग आलू बीन रहे हैं और इस प्रकार से वह अपने स्वास्थय के साथ खिलबाड़ कर रहे हैं। 
डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त जिला अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सक डा.जी.पी.चौधरी कहते हैं कि शीतगृहों से आलू बाहर फेंकने के कारण एक तो वातावरण प्रदूशित हो रहा है और वातावरण दुर्गंधयुक्त होगा। आलू सड़ने के बाद उसमें उत्पन्न होने वाले वैक्टीरिया पानी के माध्यम से आसपास के लोगों के शरीर में प्रवेश करेंगें तो डायरिया, कोलरा व फूड पॉयजनिंग जैसे रोग उत्पन्न होंगें। इससे बचने के लिए डा. जी.पी.चौधरी बताते हैं कि जिला प्रशासन एवं स्थानीय लोग शीतगृहों के आसपास उस क्षेत्र की सफाई कराएं जहां आलू फेंका गया है और आलू को बस्ती से दूर जाकर कहीं फिंकवाएं अन्यथा माहमारी की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
ऐसे मे जब नीयत और नीति खोटी हो तो कोई भी योजना फलीभूत नहीं होती। ये बात शायद हुक्मरान समझते हुए भी समझना नहीं चाहते। इसीलिए वर्ष 2010 में आलू की सरकारी खरीद कराने की योजना का आगाज होने से पहले ही अंत हो गया। नतीजतन आलू किसान एक बार फिर हाय-हाय मचाते हुए खून के आंसू रोने को मजबूर हैं।
गन्ना, गेहूं और धान की तर्ज पर आलू की फसल की सुधि बीते वर्ष ली गई, लेकिन देर से जोर-शोर तैयारी के साथ अप्रैल महीने में शासन ने आलू की सरकारी खरीद का शासनादेश जारी किया था, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। ज्यादातर आलू कोल्ड में भंडारित हो जाने के कारण इटावा जनपद में एक किलो आलू भी नहीं खरीदा जा सका। उद्यान विभाग के सूत्रों की मानें तो अपनी कमियों पर नजर दौड़ाने के बजाय सरकारी तंत्र ने खामियां गिनाकर योजना को ही फ्लाप करार दे दिया। जिले स्तर से भी सही जमीनी जानकारियां ऊपर तक नहीं पहुंचाई गईं, जिससे किसानों की किस्मत संवरने का सपना आज तक अधूरा है।
वर्ष 2011 में तो आलू खरीद के मुद्दे का किसी को ख्याल ही नहीं आया। नतीजन परवान चढ़ने से पहले ही आलू किसानों के भले के लिए शुरू यह नेक कोशिश धड़ाम हो गई। आलू की सरकारी खरीद की योजना कहां गई ? इस सवाल का जवाब अब कोई नहीं दे रहा है। किसानों की मानें तो सरकार आलू खरीद कराने लगे तो बिचौलियों पर ब्रेक लगेगा। जब कमाई का नंबर आता है तो मुनाफा व्यापारी कमाते हैं, लेकिन मंदी की मार से बरबाद सदैव किसान होते हैं। 


सोमवार, 19 दिसंबर 2011

दिन और रात मे चीरा जा रहा है यमुना का सीना





दिनेश शाक्य 
अवैध खनन पर रोक लगाने के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री के आदेशो को बलाये ताक मे रख कर इटावा मे यमुना नदी मे बडे पैमाने पर पुलिस और प्रशासनिक अफसरो की मिली भगत से अवैध बालू खनन किया जा रहा है।
दिन के उजाले मे तो बालू का खनन किया जा रहा है रात के अंधेरे मे भी बडे पैमाने पर बालू खनन को किया जा रहा है । एक नही करीब 300 से अधिक टैक्टरो के जरिये बालू खनन करके यमुना नदी के स्वरूप बिगाडा जा रहा है। यमुना नदी में अवैध खनन बेरोकटोक जारी है।     सैकड़ों ट्रैक्टर-ट्राली चोरी का रेत विभिन्न इलाकों में ले जा रहे हैं। इस गोरखधंधे को विभागीय व पुलिसिया संरक्षण भी खुले आम मिला हुआ है। तभी तो पुलिस और प्रशासनिक अफसरो इस बालू खनन पर चुप्पी साधे हुये है और यमुना नदी का सीना चीरने मे बालू माफिया युद्वस्तर पर लगे है। जिस जगह से यमुना नदी से बालू खनन किया जा रहा है उससे चंद कदम की दूरी पर यमुना तलहटी मे पुलिस चौकी बनी हुई है जहा पर करीब एक दर्जन से अधिक पुलिस वाले हमेशा तैनात रहते है जिनका काम इस इलाके मे होने वाले अवैध काम पर अकुंश लगाने का होता है लेकिन इस चौकी के पुलिस कर्मी इस अवैध खनन को मनमाफिक वसूली के जरिये को संरक्षण देकर यमुना का बरवाद करवाने मे जुटे हुये है। 
सबसे हैरत की बात तो यह है कि इलाकाई पुलिस केवल उन्हीं ट्रैक्टर चालको के खिलाफ कार्रवाई करती है जो समय पर सुविधा शुल्क नहीं पहुंचाते। इसी कारण यमुना नदी की सीमावर्ती थानो को मलाईदार थाने मे गिना जाता है। गौरतलब है कि यह गोरखधंधा हाईकोर्ट के आदेश को ठेंगा दिखाकर चल रहा है।
यमुना नदी में प्रतिबंध के बावजूद अवैध खनन बदस्तूर जारी है। यमुना में और यमुना के साथ लगते इलाकों में दिन ढलते ही बालू भरना शुरू हो जाता है। कोर्ट की रोक के बावजूद यमुना के साथ लगते इलाको में खनन का कार्य जोरो पर है। इन क्षेत्रों में खनन सरेआम देखा जा सकता है। जेसीबी मशीनों द्वारा टैक्टर ट्रालियो मे रेत भरी जा रही है। रात भर यहां पर अवैध खनन करने वालों का राज हो जाता है। जो कि पूरी रात यमुना में से बालू निकालते हैं और रात को ही इसे दूर दराज के इलाको मे भेज देते हैं। खनन होने के बाद माल लेकर अंधेरे-अंधेरे ही हजारों की तादाद में गाडिय़ां रवाना हो जाती है। 
प्रशासन के लाख दावों के बावजूद यमुना नदी पार अवैध खनन रू कने का नाम नहीं ले रहा है। यमुना पार दिनरात यूपी के लोग घूमनपुरा घाट पर अवैध खनन करके सैकड़ों ट्रालिया रेत उठा रहे है। लेकिन, जिला प्रशासन व खनन विभाग के अधिकारी केवल जिले की सड़को पर दौड़ने वाले भारी वाहनों को ही खनन करने पर पक ड़ने का काम करने में लगे हुए है। यमुना नदी के दूसरे छोर पर खनन माफिया बिना किसी भय के अपनी कार्यवाही को अंजाम देने में लगा हुआ है। 
गाव घूमनपुरा के कई लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पिछले काफी समय से रेत माफिया घूमनपुरा घाट पर रात के समय जेसीबी मशीनो से खनन करने का काम कर रहा है। खनन माफिया के लोग रात के समय वाहनों में रेत लोड करके उनके गाव से गुजरते है। प्रशासन के अधिकारी रात के समय घूमनपुरा घाट पर नहीं आते। काफी समय से रेत माफिया इस घाट पर खनन का कार्य कर रहा है। दिन के समय भी रेत माफिया खनन की कार्यवाही को अंजाम देता है। रोजाना इस घाट से रेत माफिया सौ से अधिक  ट्रैक्टर  ट्रालिया रेत लोड करके ले जाते है। माफिया रेत का खनन करते समय हथियारों से लैस होते है
कई  ट्रैक्टरो को बालू का खनन करते हुये कैद करने मे कामयाबी पाई मौके पर किये जा रहे है बालू खनन के बारे मे पता चला है कि करीब 1 साल से यमुना नदी बालू खनन किया जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि इलाकाई पुलिस की मिलीभगत के चलते यह सब खुलेआम किया जा रहा है इसी वजह से आज तक कोई भी अवैध बालू खनन का धंधा  रोका नही जा सका है। 
इन बालू खनन माफियाओ की हिम्मत तो देखिये कि इनसे कोई भी कुछ नही कह सकता है क्यो कि पुलिस और प्रशासनिक अफसरो का संरक्षण मिला हुआ है। इसी वजह से इन बालू माफियाओ का कुछ नही बिगड रहा है उधर अपर जिला अधिकारी बताते है कि मध्यप्रदेश से बालू इटावा लाई जाती है और इसी का फायदा उठा करके बालू माफिया यमुना नदी से बालू खनन कर लेते है। 
इटावा जिले के शासन और प्रशासनिक विभाग की जानकारी में यमुना से बालू का हो रहा अवैध खनन, कई वर्षो से नहीं उठा खनन का ठेका, रात-दिन हो रही यमुना से वालू की निकासी, प्रतिदिन लाखों रूपये का हो रहा विभाग को राजस्व का नुकसान।
शासन-प्रशासन द्वारा किसी भी क्षेत्र में नियम कानून पर प्रतिबन्ध तो आये दिन लगाये जाते हैं लेकिन अब शासन के कुछ नुमाइंदे की शह पर कानून को ताक पर रखकर अवैध काम को अन्जाम दिया जाता है क्योंकि पैसे के लिये कुछ भी किया जा सकता है कई वर्षों से यमुना नदी में वालू की निकासी का ठेका नहीं उठा है उसके बावजूद चोरी छुपे पुलिस की मदद से इस अवैध खनन का कार्य लगातार जारी है यमुना तलहटी के ग्राम धूमनपुरा से जाने वाली सड़क आने व जाने वाले वालू के  ट्रैक्टरो  से लदी हुई देखी जा सकती है। 
इसी गांव के कुछ स्थानीय लोग जो यमुना के किनारे अपनी खेतीवाड़ी से परिवार का भरण पोषण करते है उनका कहना है कि इस गांव में करीब दस   ट्रैक्टर  है जिनकी पुलिस से अच्छी खासी जान पहचान है उनकी ही मदद से रात दिन इस यमुना से वालू की निकासी का काम लगातार जारी है इसी गांव के राजवीर का कहना है कि कई बार हमने उन्हें मना किया, मगर निकासी करने वालों का कहना है कि हम लोगों के पास वालू निकासी का आर्डर है । 
उसका कहना है कि प्रतिदिन इस खनन से 100 से 300  ट्रैक्टर  प्रतिदिन वालू की निकासी की जा रही है। प्रति  ट्रैक्टर  300 रूपये पुलिस लेती है। इस खनन से प्रतिदिन विभाग को लाखों रू. का राजस्व को नुकसान हो रहा है। एक ट्रैक्टर  करीब 2500 से 3500 तक का बिक जाता है। 
अवैध बालू खनन के मामले को लेकर इटावा के अपर जिलाधिकारी महेंद्र सिंह  का कहना है कि इटावा मे यमुना नदी से काई बालू खनन का ठेका नही है इसके बावजूद पडोसी राज्य मध्यप्रदेश से जो बालू कारोबारी बालू लेकर आते है वही अवैध तरीके से यमुना नदी से बालू की निकासी कर लेते है ऐसे कई बालू माफियाओ के वाहनो को बालू समेत जब्त किया गया है और उनसे खासी जुर्माने की रकम भी वसूली की गई है।
जब अपर जिलाधिकारी का ध्यान इस ओर खीचा गया कि बालू माफियाओ की स्थानीय पुलिस से मिली भगत है तो उनका जबाब गोलमोल ही था। अवैध बालू खनन का मामला जब जिलाधिकारी पी.गुरूप्रसाद के सामने रखा गया तो उन्होने सिर्फ इतना कह कर के पल्ला झाड लिया कि पूरे मामले की जांच गंभीरता से कराई जा रही है और जांच रिर्पोट के आते ही बालू माफियाओ के खिलाफ कार्यवाही तय की जायेगी लेकिन अवैध बालू खनन के बारे मे उनका चुप्पी साधना यह बताता है कि मामला कुछ ना कुछ तो है ही। 
इटावा के एसएसपी राजेश मोदक भी बालू खनन के मामले पर चुप्पी साधने मे ही अपनी भलाई समझते है क्यो कि उनकी पुलिस पर खुलेआम इलाकाई पुलिस ने ना केवल आरोप लगाया बल्कि दावे के साथ बताया कि पुलिस बालू खनन करने वाले माफियाओ से मिली हुई है तभी तो उनको यमुना नदी मे हो रहे बालू खनन नजर नही आ रहा है फिर उनसे बालू खनन पर पुलिस के खिलाफ कार्यवाही करने से जुडे हुये सवाल पूछने का कोई मतलब ही नही रह जाता है। असल मे पुलिस भी पूरी तरह से प्रशासनिक रिर्पोट का इंतजार कर रही है जिसमे कहा गया है कि जिलाधिकारी स्तर पर जांच कराई जा रही है। 
अवैध बालू खनन को लेकर पर्यावरीणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर ने भी खासी नाराजगी जताई है समिति के सचिव डा.राजीव चौहानने कहा कि यमुना नदी मे खनन से जलीय जीव जंतुओ मे जैसे कछुओ का बहुत अधिक नुकसान होता है जब नदी मे पानी कम हो जाता है तो बीच मे आइलैंड बन जाने से कछुये अपने अंडे उन आइलैंड बने बालू मे अंडो को छुपा देते है और खनन से अंडे को नुकसान होता है जिससे उनकी जनसंख्या कम होनी शुरू हो जाती है। 
बालू खनन के मामले पर जिस तरह की नजरंदाजी प्रशासनिक अमले की और से की जा रही है उसे देख करके यही कहा जा सकता है की बालू खनन मे कही ना कही प्रशासनिक मिली भगत की बू साफ नजर आ रही है