सोमवार, 27 जून 2011

खंडित मूर्तियो की पूजा वाला गांव


दिनेश शाक्य
अगर  आप से  कहा जाये कि खंडित मूर्तियो की पूजा करोगे तो जाहिर है आप का जबाब हो नही लेकिन इटावा मे यमुना नदी के किनारे बसा गांव आसई देश दुनिया का एक ऐसा गांव माना जा सकता है जहां के वाशिंदे खंडित मूर्तियो की पूजा अर्चना करने मे ही खुश होते है। इस गांव के लोगो की श्रद्धा खंडित मूर्तियो से इस कदर है कि गांव वालो ने अपने घरो के बाहर तो इन मूर्तियो को स्थापित किया घरो के भीतर भी काबिज करने से नही चूके।
देश में इटावा जिले का आसई एकमात्र ऐसा गांव है जहां के वाशिंदे किसी मंदिर में पूजा अर्चना नहीं करते हैं बल्कि हर घर में उनके आराध्य की मूर्तियां पाई जातीं हैं। घरों में प्रतिस्थापित यह मूर्तियां साधारण नहीं हैं अपितु दसवीं से ग्यारहवीं सदी के मध्य की बताई जातीं हैं। दुर्लभ पत्थरों से बनी यह मूर्तियों देश के पुराने इतिहास एवं सभ्यता की पहचान कराती हैं
हिंदू धर्म की पौराणिक कथाओं में काशी के बाद धार्मिक आस्था का केंद्र माना जाने वाला एवं जैन दर्शन में काशी से भी श्रेष्ठ आसई क्षेत्र पूर्व की दस्यु गतिविधियों के बाद से श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्शित नहीं कर पा रहा है।
जैन दर्शन के मुताबिक मुख्यालय से तकरीबन पंद्रह किमी दूर स्थित आसई क्षेत्र में जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने तकरीबन दो हजार साल से अधिक समय पूर्व दीक्षा ग्रहण करने के बाद इसी स्थान पर बर्शात का चातुर्मास व्यतीत किया था। तभी से यह स्थान जैन धर्मावलंबियों के लिए श्रद्धा का केंद्र बन गया था। इसके अलावा तकरीबन दसवीं शताब्दी में राजा जयचंद्र ने आसई को अपने कन्नौज राज्य की उपनगरी के रूप में विकसित किया था और जैन दर्षन से प्रभावित राजा जयचंद्र ने अपने शासन के दौरान जैन धर्म के तमाम तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को दुर्लभ बलुआ पत्थर से निर्मित कराई।
औरंगजेब ने जब धार्मिक स्थलों पर हमले किए तो यह क्षेत्र भी इस उसके हमलों से अछूता नहीं रहा। तमाम धर्मों से जुड़ी दुर्लभ मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया जो समय-समय पर इन क्षेत्रों में मिलती रहीं। अफसोस यह है कि आसई क्षेत्र में मिली तकरीबन पांच सैकड़ा मूर्तियों में से अब महज तकरीबन दर्जन भर मूर्तियां ही शेष रह गई है बीते कुछ वर्षों में जब दस्यु समस्या चरम पर थी और आसई में भय के चलते जब कोई घुस नहीं पाता था तभी मूर्तियों की तस्करी करने वाले लोग इन मूर्तियों को ले जाते रहे। अब यहां भगवान महावीर स्वामी सहित जैन धर्म के तीन तीर्थंकरों की खंडित मूर्तियों सहित कुछ अन्य मूर्ति ही रह गईं हैं। वह बताते हैं कि इन मूर्तियों को भी चोर ले जाते यदि इन मूर्तियों में चमत्कार नहीं होता। इन मूर्तियों को ले जाने के लिए चोरों ने मूर्तियों को उंट पर लाद भी लिया था मगर इन मूर्तियों में यकायक ही इतना अधिक बजन हो गया कि उन्हें ले जाना नामुमकिन रहा।
आसई गांव के प्रधान रवींद्र दीक्षित कहना है कि आदि काल से इस तरह की मूर्तियां निकल रही है और श्रद्धाभाव से लोगो ने अपने घरो मे लगा रखी है और पूजा करते है। उनका कहना है कि गांव पर कभी यमुना के बीहडो मे सक्रिय रहे कुख्यात डाकुओ का प्रभाव देखा जाता रहा है तभी तो एक समय करीब करीब पूरा गांव खाली हो गया था लेकिन जैसे जैसे पुलिस डाकुओ का खात्मा किया गांव वाले अपनी जमीनो और घरो की ओर वापस लौट आये इसी दरम्यान कुछ परिवार पूरी तरह से ही शहरो मे बस गये।
आसई निवासिनी विमला देवी बतातीं हैं कि उनके घर में स्थापित दसवीं शताब्दी की लंबोदर भगवान गणेष की मूर्ति पहले घर के बाहर ही स्थापित की गई थी परंतु लगभग एक दशक पूर्व मूर्ति चोर तस्कर गिरोह के लोग इस मूर्ति को चुरा ले गए परंतु यह मूर्ति अपने चमत्कार के कारण ही तस्कर इस मूर्ति को नहीं ले जा पाए। वह कहते हैं कि इस घटना के बाद से उन्होंने गणेश जी की मूर्ति को घर के अंदर ही स्थापित कर लिया। वह कहते हैं कि मूर्ति स्थापना के बाद से उनके घर में समृद्धि आई है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऐसा ही गांव की दूसरी महिलाये ओमकांती और शकुंतला भी मानती है उनका कहना है कि खंडित मूर्तियो की पूजा करने के बाबजूद आजतक कोई नुकसान नही हुआ बल्कि फायदा ही हो रहा है।

शुक्रवार, 24 जून 2011

पिया ने तोडा मिथक

दिनेश शाक्य
वैसे तो चंबल घाटी के प्रभाव वाले जिले इटावा की पहचान आम तौर पर खूखांर डाकू की शरणस्थली के तौर ही मानी जाती है इस डाकू छवि का प्रभाव तोडने का काम वैसे तो समय पर समय तमाम लोगो की ओर से किया जाता रहा है लेकिन उनका कोई खास नाम होता हुआ नही दिखा है लेकिन इटावा की एक लडकी की वदौलत अब इस डाकू छवि से कही ना कही निजात मिलती हुई नजर आ रही है जिस लडकी का यहा पर जिक्र किया जा रहा है वह लडकी बहुत ही मामूली सी लडकी मानी जा सकती है लेकिन जिस मुकाम तक यह जा पहुची है उसे देख कर यही कहा जा सकता है इस लडकी ने इस मिथक को तोड दिया है कि डाकू छवि वाले इस इटावा जिले के लोगो को अगर मौका दिया जाये तो इटावा को डाकुओ के प्रभाव के वजाये प्रतिभासम्पन्न जिले के तौर पर ही पहचाना जायेगा।
अब बात कर ली जाये उस लडकी की जिसका जिक्र करके डाकू छवि को तोडने की बात कही जा रही है यह लडकी कोई ओर नही पिया बाजपेई है। अब सवाल यह खडा होता है कि आखिर कार इस पिया बाजपेई ने ऐसा कौन सा कमाल कर दिया है कि पिया को लेकर चर्चाओ का बाजार गर्म हो गया है।
असल मे पिया ने वो काम किया है जो किसी ने आसानी ने इससे पहले करना तो दूर उसके बारे मे ना तो सोचा है और ना ही किया है। पिया बाजपेइर्, एक ऐसी लडकी है जो हिंदी भाषी होने के बाबजूद तमिल फिल्मो की लोकप्रिय अभिनेत्री बन गई है ।
गर्मी की छुटिटयो मे अपने घर इटावा आई पिया अपने परिजनो के बीच खासी खुश दिख रही है। दक्षिण भारत की फिल्मो मे जोरदार कामयाबी हासिल करने के बाद अब पिया को भरोसा है कि उसे बालीबुड की फिल्मो मे काम तो मिलेगा ही कामयाबी भी दक्षिण की फिल्मो की ही तरह मिलेगी। इटावा की बेटी पिया को पूरी उम्मीद है कि दक्षिण की फिल्मो की तरह हिन्दी सिनेमा मे भी नाम कमाने मे कामयाब हो जायेगी। दक्षिण मे दर्जनो हिट फिल्मे देने वाली पिया का मानना है कि उसे बीलीबुड की ओर से कई अहम आफर मिल रहे है लेकिन वो किसी खास कहानी के अनुरूप हिन्दी फिल्मो मे काम करने के लिये तैयार है। पिया ने उम्मीद जताई है कि साल 2011 मे वह हिन्दी सिनेमा मे बतौर अभिनेत्री के रूप मे नजर आयेगी।
अपने 5 साल के सिनेमाई कैरियर के बारे मे बताया कि वह अब तक एक दर्जन से अधिक हिट फिल्मो मे काम कर चुकी है। सबसे पहले  हिन्दी भाषा मे बनी धोसला का घोसला का तमिल भाषा मे रीमिक्स मे लीड रोल मे काम किया। इस साल 2011 मे तमिल भाषा मे रिलीज हुई को नाम की फिल्म सुपर हिट रही है। इस फिल्म ने अकेले यूके मे 4 दिन मे 4 करोड से अधिक का कारोबार करने मे कामयाबी मिली है।
पिया की शुरूआती शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर से हुई इंटर तक पढाई पिया ने इटावा के ही राजकीय बालिका इंटर कालेज से किया और बीसीए किया है मध्यप्रदेश के ग्वालियर से। पिया को डांस और अभिनय करने का शौक बचपन से ही था इसी शौक के चलते कई बार दिल्ली ओर मुंबई मे काफी सधंर्ष किया है। कई बार मुंबई मे आडिशन देने के बाद प्रियदर्शन के साथ एक विज्ञापन मे काम करने का मौका मिला इसी के साथ प्रियदर्शन के साथ पहली फिल्म भी करने को मिली है। पिया अब तक मेगा स्टार अमिताभ बच्चन और किके्रटर महेंद्र सिंह धोनी सहित नामी हस्तियो के साथ 100 से अधिक विज्ञापन मे काम किया है।
पिया को आगे बढाने मे सबसे अधिक मेहनत की है उसकी मां कांती ने जिन्होने पिया को आगे बढाने मे कोई कसर नही छोडी इसी वजह से पिया की इस तरक्की पर सबसे अधिक खुश उसकी ही मां है। पिता बी के बाजपेई भी अपनी बेटी की कामयाबी पर मां की ही तरह से बेहद खुश है।
बताते चले कि हिंदी भाषा मे हिट फिल्म रही मै हू ना मे अमृता राव के रोल को इससे पहले तमिल भाषा मे बनी एगन मे पिया ने ही लीड रोल किया था। इसके अलावा गोवा नामक स्तरीय फिल्म मे भी पिया काम कर चुकी है। सबसे हैरत की बात तो यह है कि पिया को ना तो तमिल और तेलुगू दोनो भाषाओ मे से कोई भी भाषा नही आती है। पिया को माधुरी दीक्षित और मेगा स्टार अमिताभ बच्चन खासे पंसद है।

मंगलवार, 21 जून 2011

कैद हुआ मासूम रिहा हुआ नौजवान



दिनेश शाक्य
अपने फायदे के लिये दंबगो ने एक मासूम को उस उम्र मे कैद कर लिया जब उसके खेलने खाने के दिन थे लेकिन बचपन को काल के गाल मे पहुचाने वालो को क्या मालूम था कि कोई मसीहा आकर एक दिन उसकी तस्वीर को संवार देगा।
करीब 10 साल तक कैद मे रह कर बंधुआ मजदूरी करने के बाद जब एक नौजवान को रिहा कराया गया तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना नही रहा मानो ऐसा लग रहा था कि उसका पुर्नजन्म हुआ है जी हां,बिल्कुल ही ऐसा लगा जब 10 साल की कैद से आजाद होकर नौजवान को मुक्त कराया गया ।
बंधुआ मजदूर के तौर पर कैद करके रखे गये युवक को मुक्त कराने की यह कार्यवाही की गई है उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के चैबिया इलाके के मोहनपुर राहिन गांव के नगला बरूआ मे । जहां पूर्व प्रधान इंद्रपाल यादव के भाई जिलेदार के घर पर पुलिस और श्रम विभाग की टीम ने उपजिलाघिकारी घर्मेन्द्र प्रताप सिंह के निर्देशन मे छापा मार कर करीब 10 साल से कैद करके रखे गये करीब 24 साल के नौजवान बुधियार पुत्र सुरेन्द्र ग्राम बरदहा थाना धिलार जिला मधेपुरा बिहार को मुक्त कराने मे कामयाबी पाई है।
मुक्त कराये गये युवक ने बताया कि करीब 14 साल की उम्र मे वो अपने कुछ साथियो के साथ देश की राजधानी दिल्ली मे काम करने के मकसद से जा रहा था लेकिन इटावा मे किसी तरह से उतरने के दौरान उसे कुछ लोग पकड करके मोहनपुर गांव ले गये और बंघक बना कर रखा कई बार भागने की कोशिश की लेकिन मारपीट करना और हमेशा पहरेदारी के कारण निकलने मे कामयाबी नही पाई। रिहाई के बाद पता चला कि 10 साल के काम बदले सिर्फ मिलता था खाना। जब इस नौजवान को मुक्त कराया गया तो जिलेदार सिंह की ओर से श्रम अफसरो की लताड के चलते मात्र 2500 रूपये ही दिये गये जिसे देख कर वो बहुत खुश नजर आ रहा ।
नौजवान दलित वर्ग का है और अपने परिवार का इकलौता चिराग है इसकी दो छोटी बहने भी है जिनको देखने के लिये वो इस समय बैचेन नजर आ रहा है। इटावा के उपजिलाघिकारी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह बताते है कि बंधुआ मजदूरी अघिनियम के तहत आरोपी जिलेदार के खिलाफ चैबिया थाने मे श्रम अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके कार्यवाही अमल मे लाई जा रही है और चैबिया थाने की पुलिस का एक दस्ता मुक्त कराये गये एक युवक को लेकर बिहार के लिये रवाना हो गया है।
भले ही मासूम अब नौजवान हो गया हो लेकिन उसका मन आज भी मासूम ही नजर आया जिस वक्त बुधियार को मुख्यालय पर अफसरो के सामने बयान के लिये पेश करने लाया गया उस वक्त उसके चेहरे की चमक देखने लायक थी कहे कुछ भी दंबगो ने अपने फायदे के लिये एक मासूम के जीवन को बरबाद कर दिया है।

यमुना नदी मे हुआ पहली बार घडियाल का प्रजनन


दिनेश शाक्य
देश मे यह पहला मौका है जब किसी घडियाल ने सबसे प्रदूषित समझी जाने वाली यमुना नदी मे प्रजनन किया है । निषेचन के उपरांत करीब घडियाल के बच्चे नजर आ रहे है। पहली बार यमुना नदी मे घडियाल के बच्चे पाये जाने को लेकर जंहा गांव वाले खासे खुश दिख रहे है वही पर्यावरणविद भी उत्साहित है। ऐसा माना जा रहा है कि जिस प्रकार घडियाल ने यमुना नदी मे प्रजनन किया है उससे एक उम्मीद यह भी बंध चली है कि आने वाले दिनो मे यमुना नदी भी घाडियालो के प्रजनन के लिये एक मुफीद प्राकृतिक वास बन सकेगा।
घडियाल के प्रजनन का यह वाक्या हुआ है उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के हरौली गांव के पास हुआ है जंहा इन बच्चो को लेकर गांव वाले खासे उत्साहित दिख रहे है। पहली बार घडियाल के प्रजनन को लेकर गांव वालो के साथ साथ आम इंसान भी गदगद हो गये है। एक पखवारे पहले यमुना नदी के किनारे जाने वाले एक स्कूली छात्र मुनेंद्र ने मादा घडियाल को अंडे फोड कर बच्चो को बाहर निकालने के बाद यमुना नदी मे डालने का वाक्या देखा । तब उसे पता चला कि घडियाल का यंहा पर घोसला है। मुनेंद्र बताता है कि वो अमूमन यमुना नदी के किनारे सुबह शाम आता रहता है और इस मादा घडियाल को अक्सर वो इस जगह पर ही देखा करता था। गांव के ही किनारे यमुना नदी का प्रवाह है इसलिये यमुना नदी के किनारे गांव वाले अक्सर आ जाया करते है इसी लिहाज से मुनेंद्र अपने करीब 5 साथियो के साथ आया तब उसने पहली बार घडियाल बच्चो को देखा है पहली बार बच्चे देखने के कारण मुनेंद्र इस बात का अंदाजा नही लगा पाया कि ये घडियाल या मगर के बच्चे है। लेकिन मुनेंद्र की खबर पर सबसे पहले पूरा का पूरा गांव मौके पर आया और इन बच्चो को देखा और अब पूरे इटावा मे चर्चा का बाजार गर्म है। जैसे आसपास के गांव वालो पता चलता है वे सैकडो की तादात मे जमा होकर घडियाल के बच्चो को देख रहे है।
गांव के ही अमर सिंह का कहना है कि अब गांव वाले करीब 10 फुट की दूरी से बैठ करके इन घडियाल के बच्चो को देखने मे जुटे हुये है क्यो कि गांव वालो ने अपने जीवन मे पहली बार यमुना नदी मे घडियाल के बच्चो को देखा है। करीब 62 साल के अमर सिंह का कहना है कि इससे पहले कभी भी यमुना नदी मे घडियालो का प्रजनन नही देखा गया था ऐसा मौका मेरे जीवन मे पहली बार आया हैं । वन्यजीव संरक्षण की दिशा मे काम रही संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के महासचिव डा.राजीव चैहान का कहना है कि यमुना नदी मे आई बाढ से इटावा के आसपास का पानी साफ हो गया है और इसी वजह से घडियाल यमुना नदी मे प्राकृतिक वास बनाया है। ऐसा लगने लगा है देश मे सबसे अधिक प्रदूषण मे धिरी यमुना नदी का पानी कही ना कही अब इटावा के आसपास साफ हो रहा है इसी वजह से अब घडियाल यमुना नदी मे प्रजनन करने लगे है।
इस बदलाव को लेकर ऐसी उम्मीद बंधी है कि अब यमुना नदी भी घडियालो को पालने के लिये मुफीद हो गई मानी जा रही है। इससे पहले कभी भी यमुना नदी मे घडियाल ने प्रजनन नही किया है। इस बदलाव के बाद ऐसा लगने लगा है कि अभी तक सबसे सुरक्षित समझी जाने वाले चंबल नदी कही ना कही दूषित हो चली है इस कारण घडियाल यमुना नदी की ओर मुखातिव हो रहे है। पूरी की पूरी यमुना नदी मे एक मात्र एक ही नेस्ट देखा गया जिसमे करीब 46 बच्चे घडियाल के देखे जा रहे है। अभी तक देश मे सिर्फ चंबल एक मुख्य प्राकृतिक वासस्थल माना जाता है लेकिन अन्य जगहो पर इनकी छोटी छोटी सख्या भी पाये जाते है गिरवा नदी केतरनिया घाट ,सतकोशिया महानदी,र्काविट नेशनल पार्क,सोन नदी व केन मे इनकी संख्या कहने भर के लिये रहती है।
साल 2007 आखिर मे दिनो मे इटावा मे चंबल नदी मे एक सैकडा से अधिक घडियालो की मौत के बाद इस बात को प्रभावी ढंग से उठाया गया कि यमुना नदी के व्यापक प्रदूषण के कारण दूर्लभ प्रजाति के घाडियालो की मौत हो गयी है। लेकिन अनगिनत घडियाल विशेषज्ञो ने कई लाख रूपये खर्च करके भी घडियालो की मौत का पता लगाने मे कामयाब नही हो सके है।
यंहा पर इस बात का जिक्र किया जाना बेहद जरूरी होगा कि 2007 मे जब इटावा मे घडियालो की मौत का सिलसिला शुरू हुआ तो यह बात घडियाल विशेषज्ञो की ओर से प्रभावी तौर पर कही जाने लगी कि यमुना नदी मे हुये प्रदू
षण की वजह से दुर्लभ प्रजाति के घडियालो की मौत हुई है लेकिन इस बात को कोई भी घडियाल विशेषज्ञ साबित नही कर पाया कि घाडियालो की मौत यमुना नदी के प्रदूषण का नतीजा है।
इसके अलावा वन्य जीव प्रेमियों के लिए चंबल क्षेत्र से एक बड़ी खुशखबरी सामने आई है। किसी अज्ञात बीमारी के चलते बड़ी संख्या में हुई विलुप्तप्राय घडियालों के कुनबे में सैकड़ों की संख्या में इजाफा हो गया है। अपने प्रजनन काल में घडियालों के बच्चे जिस बड़ी संख्या में चंबल सेंचुरी क्षेत्र में नजर आ रहे हैं वही दूसरी ओर यमुना मे घडियाल के बच्चो ने एक नई राह दिखाई है।
दिसंबर-2007 से जिस तेजी के साथ किसी अज्ञात बीमारी के कारण एक के बाद एक सैकड़ों की संख्या में इन घडियालों की मौत हुई थी उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडियाल किताब का हिस्सा बनकर न रह जाएं। घडियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका सहित तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले।
घडियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर रिरोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण को घडियालों की मौत का कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घडियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया। घडियालों की मौत की बजह तलाशने के लिए ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने करोड़ों रुपये व्यय कर घडियालों की गतिविधियों को जानने के लिए उनके शरीर में ट्रांसमीटर प्रत्यारोपित किए।
जिस यमुना नदी मे घडियाल ने पहली बार प्रजनन करके एक नया इतिहास लिखा है उसी यमुना नदी को अपने प्राकतिक स्वरूप को बनाये रखने के लिये देश की राजधानी दिल्ली में सर्वाधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तराखंड के शिखरखंड हिमालय से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद तक करीब 1,370 किलो मीटर की यात्रा तय करने वाली यमुना को ज्यादा संकट दिल्ली के करीब 22 किलोमीटर क्षेत्र में है, लेकिन बेदर्द दिल्ली को यमुना के आंसुओं पर कोई तरस नहीं आता। यही कारण है कि अभी तक यमुना की निर्मलता वापस नहीं लौट सकी। केन्द्र सरकार व कई राज्यों ने भले ही यमुना की निर्मलता के लिए ढाई दशक के दौरान 1,800 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च कर दी हो लेकिन यमुना के पानी की निर्मलता वापस लौटना तो दूर, वह साफ तक नहीं हो सका। जाहिर है कि अरबों की धनराशि पानी में बह गयी। विशेषज्ञों की मानें तो विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में यमुना का शीर्ष स्थानो मे से एक है लेकिन घडियालो के प्रजनन के बाद विशेषज्ञो के पास कोई जबाब इस बात का नही है कि यह चमत्कार आखिरकार कैसे और क्यो हुआ ?
यमुना नदी के किनारे दिल्ली, मथुरा व आगरा सहित कई बड़े शहर बसे हैं। ब्लैक वॉटर में तब्दील यमुना में करीब 33 करोड़ लीटर सीवेज गिरता है। ये हालात तब हैं, जब दिल्ली खुद यमुना के पानी से प्यास बुझाती है। पानी को साफ सुथरा व पीने योग्य बनाने के लिए दिल्ली सरकार को भी कम नहीं जूझना पड़ता क्योंकि पीने के लिए यमुना के पानी को साफ करने के लिए उसे काफी बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ती है। कानपुर, इलाहाबाद व वाराणसी के जल कल विभाग को पानी को पीने योग्य बनाने के लिए एक हजार लीटर पर औसत चार रुपये खर्च करने पड़ते हैं, लेकिन दिल्ली जल बोर्ड को आठ से नौ रुपये की धनराशि एक हजार लीटर पानी को साफ करने में खर्च करने पड़ते हैं। इससे साफ जाहिर है कि गंगा की तुलना में यमुना अधिक प्रदूषित व मैली है। हालांकि दिल्ली की आबादी के मल-मूत्र व अन्य गंदगी को साफ सुथरा करने के लिए करीब डेढ़ दर्जन ट्रीटमेंट प्लांट संचालित हैं फिर भी यमुना का मैलापन रोकने में कामयाबी नहीं मिल रही है। इसको साफ करने के लिए जापान बैंक फार इंटरनेशनल कारपोरेशन ने भी भारत सरकार को भारी रकम अदा की है लेकिन उससे भी सफलता नहीं मिली। देश की राजधानी दिल्ली मे यमुना के जल में कोई डेढ़ सौ अवैध आवासीय कॉलोनियों की गंदगी व कचरा गिरता है। इसके अलावा करीब 1,080 गांव व मलिन बस्तियां भी अपना कचरा व गंदगी यमुना की गोद में डालती हैं। इन हालातों में यमुना जल का धुलित आक्सीजन के शून्य होने का खतरा हमेशा बना रहता है। मानकों के अनुसार कोलीफार्म कंटामिनेशन लेबल 500 से अधिक नहीं होना चाहिए लेकिन यमुना में इसका स्तर खतरनाक सीमा से भी आगे बढ़ गया है। यों, यमुना को गंदा करने में केवल आबादी का मलमूत्र का प्रवाह ही जिम्मेदार नहीं है, बल्कि इसके लिए देश के औद्योगिक घराने कम जिम्मेदार नहीं हैं। दिल्ली, आगरा व मथुरा सहित कई शहरों का औद्योगिक कचरा गाहे बगाहे भी यमुना की निर्मलता को बदरंग करता है।
देश के नौकरशाहों को नदी सफाई की योजना बनाकर उसको क्रियान्वित करने पर ध्यान देना होगा। केवल योजना बनाने से ही कुछ नहीं होगा क्योंकि किसी भी योजना पर अपेक्षित अमल न होने से अरबों की धनराशि तो खर्च हो जाती है पर उसका लाभ नहीं मिलता है। सम्बंधित नौकरशाहों पर इसकी जिम्मेदारी का निर्धारण होना चाहिए जिससे कार्ययोजना की विफलता पर बचकर निकल न सकें क्योंकि आरोप-प्रत्यारोप व दोषारोपण योजनाओं को विफल कर देतीं हैं। इसके साथ ही यमुना किनारे बसी आबादी को भी नदी की निर्मलता के लिए जागरुक होना पड़ेगा क्योंकि आबादी की जागरुकता यमुना की निर्मलता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकेगी। आम आदमी को भी इस मुहिम से जुड़ना होगा क्योंकि तभी यमुना में गंदगी गिरने से रोका जा सकेगा।
इस सबके बावजूद यमुना नदी मे हुये प्रजनन ने यमुना नदी के प्रदूषण को लेकर एक सवाल खडा कर दिया है कि आखिरकार यह कैसी मैली है यमुना नदी ? अगर हकीकत मे यमुना नदी मैली है तो फिर घडियाल कैसे प्रजनन कर रहे है ? यह कुछ ऐसे सवाल है जो पर्यावरणविधो के लिये खडे हो गये है और इस पर शोध की जरूरत है।